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स्नायु रोग कारण,निवारण एवं बचाव

राजीव शर्मा

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2000
पृष्ठ :118
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3715
आईएसबीएन :81-7182-318-1

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स्नायु रोग के कारण, निवारण एवं बचाव...

Snayu Rog Karan Nivaran Evam Bachav

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रस्तावना

नसें (तंत्रिकाएं) सिर्फ शरीर की संवेदनाओं की वाहक नहीं होतीं वरन मस्तिष्क का महत्त्वपूर्ण भाग भी होती हैं।
नसों के रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। अत्यधिक कामुकता के कारण जहाँ जवानी में भी स्नायु दौर्बल्य जैसे रोग हो सकते हैं, वहीं चोंट लगने से ब्रेन हैमरेज व अचेतावस्था भी आ सकती है। मिरगी, सिरदर्द व सायिटिका दर्द आदि रोग स्नायु (नसों) के रोग ही हैं। प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे भी रोगों को समाहित किया गया है। उम्मीद करता हूँ, पुस्तक पाठकों के लिए उपयोगी व ज्ञानवर्द्धक सिद्ध होगी। पाठकगण जवाबी पत्र भेजकर इस रोग से सम्बन्धित कोई भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक की वेदों के देव, सृष्टि के रचयिता परमब्रह्म ब्रह्माजी के श्री चरणों में समर्पित करते हुए मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। शुभकामनाओं सहित, धन्यवाद, सादर

डॉ. राजीव शर्मा

जानिये अपने मस्तिष्क को

मस्तिष्क शरीर की सबसे प्रमुख रचना है और यह पूरे शरीर की कार्यविधि का संचालन करता है। चिकित्सा व विधि-सम्बन्धी मामलों में मृत्यु का अर्थ है मस्तिष्क की मृत्यु। यदि किसी कारण मस्तिष्क हमेशा कि लिए क्रियाहीन हो जाये और हृदय व फेफड़े कार्य करते रहें, अथवा उनका कृतिम तरीकों से उपयोग किया जाता रहे, तब भी शरीर अर्थहीन रहता और एक अवधि के बाद निश्चित है।

मस्तिष्क की रचना व कार्यविधि काफी जटिल है और उसे अभी पूरी तरह समझा नहीं जा सकता है। एम.आर.आई. और पैट परीक्षणों से इसके कार्यों को समझने में सहायता मिली है। मस्तिष्क के विभिन्न भाग अलग-अलग कार्यों में निपुण होते हैं और हर भाग हर समय अपने काम में लगा रहा है। मस्तिष्क को प्रकृति का एक सुपर कम्प्यूटर कहा जा सकता है।

मानव मस्तिष्क का औसत भार लगभग एक किलोग्राम 400 ग्राम होता है। पुरुष मस्तिष्क का भार महिला मस्तिष्क के भार से थोड़ा अधिक होता है। मस्तिष्क शरीर का बहुत नाजुक अंग है और इसी कारण यह कपाल अस्थियों के ठोस आवरण में सुरक्षित रहता है। इन हड्डियों के जुड़ने के स्थान पर प्रारम्भिक एक-डेढ़ वर्ष कुछ जगह छूटी रहती है जिससे जीवन के आरम्भिक क्षणों में मस्तिष्क की तीव्र वृद्धि में रुकावट न पड़े। इसी कारण छोटे बच्चो में आगे की ओर सिर में थोड़ा पोलापन महसूस होता है। जन्म के समय मस्तिष्क की सतह पर अखरोट की तरह अत्यधिक उभार वह गहराइयां होती हैं, जिससे सतह का क्षेत्रफल बहुत अधिक बढ़ जाता है। यदि मस्तिष्क की इन सलवटों को सपाट कर सतह को सीधे फैलाया जाये तो इसका क्षेत्रफल लगभग 4000 वर्ग सें.मी. आता है जो कि एक समाचार पत्र के दो पृष्ठों के बराबर होता है।

मस्तिष्क चारों ओर से तीन झिल्लियों से घिरा रहता है। सबसे बाहर की झिल्ली काफी मजबूत होती है और अंदर की दो झिल्लियों के बीच में एक द्रव बहता है जिसे मस्तिष्क सुषुम्ना द्रव कहते हैं। मस्तिष्क के कुछ संक्रमण रोगों व अन्य तकलीफों में इसी द्रव की कुछ बूदें रीढ़ की हड्डी में सुई लगवाकर, जांच के लिए प्राप्त की जाती हैं। यह द्रव मस्तिष्क को पोषण पहुंचाने के अतिरिक्त उछल-कूद, दौड़ने-भागने व अन्य गतिविधियों में कपाल गुहा के अंदर मस्तिष्क के कम्पन व झटकों को कम करता है।

मस्तिष्क के ऊतकों में कई प्रकार की कोशिकायें पायी जाती हैं। मस्तिष्क की मुख्य सक्रिय कोशिकाओं को ‘न्यूरॉन’ कहते हैं। इसमें एक कोशिका होती है और उससे जुड़े लम्बे, छोटे अथवा दोनों एक से अधिक तन्तु होते हैं। एक मानव मस्तिष्क में लगभग 50 करोड़ इस प्रकार के न्यूरॉन होते हैं। इनकी संख्या निश्चित होती है और आयु की एक अवस्था के बाद धीर-धीरे इनकी संख्या घटने लगती है। इसी कारण वृद्धावस्था में बुद्धि की कमी व व्यवहार में परिवर्तन नजर आता है।

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