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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आकृति देखकर मनुष्य की पहिचान

आकृति देखकर मनुष्य की पहिचान

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :41
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 372
आईएसबीएन :00-000-00

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लोगो की आकृति देखकर उनका स्वभाव पहचानना मनोरंजक तो होता ही है, परंतु इससे अधिक यह अनुभव आपको अन्य लोगों से सही व्यवहार करने में काम आता है।


गर्दन


बहुत मोटी गर्दन वाले हाथी, मेंढ़ा, सुअर आदि जानवर अपने चारों ओर नहीं देख सकते, क्योंकि बहुत मोटी गरदन को मोड़कर इधर-उधर देखना कठिन होता है। इसलिए इस प्रकार के जानवर सिर्फ आगे की ही चीजें देखते हैं। उन्हें पीछे की ओर अगल-बगल की चीजें दिखाई नहीं पड़तीं। यही स्वभाव मोटी गरदन वाले मनुष्यों में पाया जाता है। वे आज की अब की बात पर तो विचार करना चाहते हैं पर पीछे की बातों की उपेक्षा करते रहते हैं। ऐसे लोगों को मूर्ख भी कह सकते हैं।

पतली गरदन वाले अक्सर चतुर, बुद्धिमान और आगा-पीछा सोचकर काम करने वाले होते हैं। बहुत गंभीर विषयों पर विचार करने वालों की गर्दन आगे की ओर टेढ़ी हो जाती है जिसमें सिर कुछ झुका हुआ सा रहा करता है। किसी भारी चिन्ता तथा सोच-विचार में पड़े हुए लोगों की गरदन एक तरफ को ढुलकी हुई सी रहती है। घमण्डियों की गरदन तनी हुई, बहादुरों की अकड़ी हुई और हँसोड़ों की जरा पीछे की ओर झुकी रहती है।

लम्बी गरदन वाले पशु-पक्षियों पर दृष्टिपात कीजिए। जिराफ, कंगारू, दुबले पतले, होते हैं, उनमें कुछ बौद्धिक विशेषता भी नहीं पाई जाती, यही बातें लम्बी गरदन के मनुष्यों में देखी जाती हैं। मजबूत, भरी हुई, गोल, मैंझोली गरदन वाले मनुष्य भारी भरकम, गम्भीर तथा तेजस्वी होते हैं। जिसकी लम्बाई बहुत छोटी हो, सिर कन्धों के बिल्कुल पास हो ऐसे मनुष्य खोटे, दुव्र्यसनी तथा ओछी तबियत के देखे जाते हैं। जिसमें नसें और हड्डियाँ चमक रही हैं ऐसी गरदन वाले बीमारियों से ग्रस्त रहते हैं। आये दिन उनके शरीर में कुछ न कुछ व्यथा खड़ी रहती है।

गोल भरी हुई गरदन उत्तम स्वास्य का चिन्ह है। जिस गरदन में जहाँ-तहाँ मांस झूल रहा हो वह बहु संतान होना सूचित करती है। गले की हड्डियाँ यदि गरदन में से बाहर दिखाई दे रही हों तो यह जननेन्द्रिय में दोष होने का कारण होती हैं। जिनकी गरदन पर नसें अधिक उभर रही हों उस पर बार-बार रोगों का आक्रमण होता रहता है। चपटी गरदन अनिश्चित स्वभाव के मनुष्यों की होती है, उनके विचार और कार्य सदा बदलते रहते हैं।

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    अनुक्रम

  1. चेहरा, आन्तरिक स्थिति का दर्पण है
  2. आकृति विज्ञान का यही आधार है
  3. बाल
  4. नेत्र
  5. भौंहें
  6. नाक
  7. दाँत
  8. होंठ
  9. गर्दन
  10. कान
  11. मस्तक
  12. गाल
  13. कंधे
  14. पीठ
  15. छाती
  16. पेट
  17. बाहें
  18. रहन-सहन

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