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सामाजिक >> स्वप्न ही रास्ता है

स्वप्न ही रास्ता है

लवलीन

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 391
आईएसबीएन :81-263-0884-2

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‘स्वप्न ही रास्ता है’ उस स्वप्नदर्शी महत्वाकांक्षी युवा पीढ़ी की कथा है जो आज के सिमटे हुए विश्व की निवासी पश्चिमोन्मुख जीवन-शैली एवं नवउपभोक्तावाद के समपोषक है।

Swapna hi Rasta Hai - A Hindi Book by - Lavleen स्वप्न ही रास्ता है - लवलीन

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

स्वतंत्र भारत के इन पाँच दशकों में शिक्षा और राजनीति की विचारशून्यता ने सामाजिक मूल्यों और नैतिकता से देश और समाज को काटकर एक असहज वातावरण की सृष्टि की है। मीडिया के ग्लैमर ने भी युवा वर्ग को मृग मारीचिका में उलझाया है। फलतः सामाजिक विघटन की नींव पर पनपा यह युवा वर्ग अपने भोगवादी दृष्टि को ही जीवन की चरम् उपलब्धि मानने लगा है। विघटित समाज के अन्तरंग और बहिरंग स्वरूप से उपजी इस विकृति से परदा उठाते हुए प्रस्तुत उपन्यास?के अपना, बिजोन, काम्या, श्रीकान्त, रेवती, राजन जैसे अनेक युवा पात्र भविष्य को लेकर किसी न किसी स्वप्न को पालते हुए आत्मसंधान करते हैं। अपरा की मान्यता है?कि चेतना के प्रसार, संघटित संस्कारित कर्म और गहन प्रतिकार से ही नयी विचारधारा प्रवाहित की जा सकती है, अन्यथा आत्मकेन्द्रित लालसा?एवं भौतिक महत्वाकांक्षा चलते उपलब्धि के नाम पर कुछ भी प्राप्य नहीं जिसे हम अपना कह सकें।

भारत में पश्चिमी शिक्षा प्राप्त कुछ एक युवा चरित्रों की जीवन-शैली और सोच को अभिव्यक्त करती हिन्दी अंग्रेजी की मिश्रित भाषा का प्रयोग कथानक के परिवेश को पुष्ट करता है।

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