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33 शिक्षाप्रद कहानियाँ

अनिल कुमार

प्रकाशक : मनोज पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 3971
आईएसबीएन :81-8133-377-2

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सूझबूझ और परस्पर प्रेम का पाठ पढ़ाने वाली मनोरंजक कहानियां....

33 Shikshaprad Kahaniyan - A Hindi book of stories for children by Anil Kumar - 33 शिक्षाप्रद कहानियाँ - अनिल कुमार

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पहचान का तरीका

एक दुष्ट चुड़ैल ने एक सुदंर सी लड़की को पौधे पर लगे फूल के रूप में बदल दिया। लेकिन रात के समय उसे यह इजाजत थी कि अपने लड़की रूप में आ जाती और रात अपने माता-पिता के साथ रहती।

एक सुबह जब वह लड़की पुनः पौधों पर लगे फूल में परिवर्तित होने जा रही थी तो अपनी माँ से बोली-‘‘यदि तुम मुझे किसी तरह पौधे से तोड़ लो, तो चुड़ैल का जादू टूट जाएगा।’’
बात तो ठीक थी, लेकिन समस्या यह थी कि उसकी माँ उसे पहचानती कैसे ? वहाँ तो हजारों दूसरे वैसे ही फूल लगे थे। लेकिन उसको ढूंढना बहुत ही सरल था। चूंकी लड़की रात अपने घर बिताकर सुबह के समय फूल बनती थी, इसलिए वही एक ऐसा अकेला फूल होती थी, जो ओश से भीगा नहीं होता था।

अलग दिखने की कीमत


जब चूहों व नेवलों की लड़ाई हुई तो हार चूहों की हुई। हार के बाद चूहों की बैठक हुई जिसमें यह निष्कर्ष निकला कि उनकी हार बेतरतीब तरीके तथा व्यूह रचना के अभाव में लड़ने के कारण हुई। अब चूहों ने अपने कुछ सेनापति नियुक्त किए। इन सेनापतियों को अलग से पहचाना जा सके, इसके लिए उन्हें विशेष प्रकार के हेलमेट पहनने को दिए गए, जिन पर लम्बे सींग निकले हुए थे।

लेकिन जब दोबारा वह मैदान में उतरे तो भी जीत नेवलों की ही हुई। चूहे किसी तरह जान बचाकर अपने बिलों में जा घुसे, लेकिन सेनापति बने चूहे भाग्यशाली नहीं थे। नेवलों ने उनके हेलमेट पर लगे सींग चबा डाले थे और उन्हें जान से मार डाला।

नकलची का हश्र


एक गधे को अपनी भद्दी सी आवाज कतई पसंद न थी। एक दिन जब गधा घास चर रहा था तो उसकी भेंट गीत गुनगुनाते एक टिड्डे से हुई। गधा उसकी आवाज सुनकर मोहित हो गया और पूछ बैठा-‘‘भई टिड्डे ! अपनी इस मधुर आवाज का राज मुझे भी तो बताओ।’’
‘‘ओस की बूंदें।’’ टिड्डा बोला-‘‘जिन्हें मैं रोज सुबह खाता हूं।’’
गधा आखिर गधा ही था। अब उसने और भी जोशो-खरोश से घास खाना शुरू कर दी। खासकर वह सुबह के समय ही घास खाता था, जब वह ओश से भीगी रहती थी। लेकिन उसकी आवाज न बदलनी थी, न ही बदली। हाँ, घास खा-खाकर वह इतना मोटा जरूर हो गया कि किसी काम लायक न रहा।

स्टार वार


यह एक यूनानी नैतिक लघु कथा है। टॉरिस राशि के नक्षत्रमंडल में एलडेबारॉन सबसे चमकीला सितारा था। उसे प्रेम हो गया था इलेक्ट्रा से, जो प्लेएड्स समूह का सम्मोहन कर लेने वाला सितारा थी। लेकिन एलडेबारॉन अनजान था एलकायन से। एलकायोन भी इलेक्ट्रा का प्रेमी था। एलडेबारॉन को इसका पता चला, जब उसने रास्ते में उनके ऊंटों के झुण्ड पर हमला कर दिया।
यूनानी मिथक है कि आज भी ये दोनों सितारे आपस में उलझते हैं। शांत, धूल रहित रातों में इन्हें देखा जा सकता है। इलेक्ट्रा के पीछे लाल एलकायोन और उसके पीछे अपने ऊंटों के झुण्ड जैसे सितारों के साथ एलडेबारॉन दिखाई देता है।

धूर्त भेड़िया


एक भेड़िया था। बड़ा ही धूर्त। एक दिन उसे मोटा-ताजा बैल मरा पड़ा मिला। कोई दूसरा न आ जाए, यह सोचकर वह जल्दी-जल्दी उसका मांस खाने लगा। जल्दबाजी के कारण उसके गले में एक हड्डी अटक गई। उसे लगा, अगर जल्दी ही हड्डी बाहर न निकली तो प्राण त्यागने पड़ेंगे। वह भागा-भागा नदी किनारे रहने वाले एक दयालु सारस के पास पहुंचा और प्रार्थना की-‘‘सारस भाई ! मेरी मदद करो, मेरे गले में फंसी हड्डी निकाल दो, मैं तुम्हें इनाम दूंगा।’’

सारस लालची नहीं दयालू था। उसने फौरन अपनी चोंच भेड़िए के गले में डालकर हड्डी बाहर निकाल दी और बोला- ‘‘मेरा इनाम दो।’’

‘‘इनाम ? कैसा इनाम ?’’ भेड़िए ने कहा-‘‘भगवान का शुक्रिया अदा करो कि मैं तुम्हारी गरदन न चबा गया। इससे बड़ा इनाम और क्या होगा ?’’ कहकर धूर्त भेड़िया चला गया।
दरअसल, उसकी जान अभी भी बैल का माँस खाने में अटकी हुई थी।

सींग भले या पांव


एक बार एक बारहसिंगा तालाब के किनारे पानी में अपने सींगों की छाया देखकर सोचने लगा-‘मेरे सींग कितने सुन्दर हैं, पर मेरे पैर कितने दुबले-पतले और भद्दे हैं।’
तभी उसके कानों में कहीं आस-पास ही शेर के दहाड़ने की आवाज पड़ी। बारहसिंगा डरकर तेजी से भागा। उसने पीछे मुड़कर देखा। शेर उसके पीछे लग चुका था। भागते-भागते वह बहुत दूर निकल आया। आगे एक बीहड़ था। एकायक उसके सींग एक पेड़ की डालियों में उलझ गए। बारहसिंगे ने अपने सींग छुड़ाने की बहुत कोशिश की, पर वे नहीं निकले।

उसने सोचा, ‘ओह ! मैं अपने दुबले-पतले और भद्दे पैरों को कोस रहा था। पर उन्हीं पैरों ने शेर से बचने में मेरी सहायता की। मगर अपने जिन सुदंर सींगो की मैंने बहुत तारीफ की थी। अब वे ही शायद मेरी मृत्यु का कारण बनने वाले हैं।’

इतने में शेर भी दौड़ता हुआ वहाँ आ पहुंचा और उसने बारहसिंहे को मार डाला।

निराश खरगोश


एक बार सुन्दर वन में खरगोश ने अपने लिए चारों तरफ मंडरा रहे खतरों पर विचार करने के लिए बैठक की। जंगल के मांसाहारी जीवों ने उनका जीना मुश्किल कर दिया था। अतः बैठक में निर्णय लिया गया कि सभी खरगोश जल-समाधि ले लें। सभी खरगोश इकट्ठे होकर तालाब की ओर चल पड़े।

उस तालाब में हजारों मेंढ़क रहते थे रहते थे। मेंढ़क तालाब से बाहर निकलकर धूप सेंक रहे थे।

खरगोशों के आने का शोर सुनकर वे भयभीत होकर ‘छपाक-छपाक’ पानी में कूद गए।

उन्हें ऐसा करते देखकर खरगोशों का सरदार चिल्लाकर बोला-‘‘ठहर जाओ, कोई आत्महत्या नहीं करेगा। देखो, हमसे डरने वाले जीव भी इस दुनिया में मौजूद हैं। जब वे आत्महत्या की बात नहीं सोचते तो हम क्यों सोंचे।’’ और फिर सभी खरगोश वापस जंगल की ओर चल दिए।

अन्याय या न्याय


दो लड़के बाग में खेल रहे थे, तभी उन्होंने एक पेड़ पर जामुन लगे देखे। उनके मुंह में पानी भर आया। वे जामुन खाना चाहते थे लेकिन पेड़ बहुत ऊंचा था। अब कैसे खाएं जामुन ? समस्या बड़ी विकट थी।

एक लड़का बोला-‘‘कभी-कभी प्रकृति भी अन्याय करती है। अब देखो, जामुन जैसा छोटा-सा फल इतनी ऊंचाई पर इतने बड़े पेड़ पर लगता है और बड़े-बड़े खरबूजे बेल से लटके जमीन पर पड़े रहते हैं।’’
दूसरे लड़के ने भी सहमति जताई। वह बोला-‘‘तुम ठीक कहते हो, तुम्हारी बात में दम है लेकिन मेरी समझ में यह बात नहीं आई कि प्रकृति ने छोटे-बड़े के अनुपात का ध्यान क्यों नहीं रखा। अब यह भी कोई तुक हुई कि इतना छोटा-सा फल तोड़ने के लिए इतने ऊंचे पेड़ पर चढ़ना पड़े। मेरा तो मानना है कि प्रकृति भी संपूर्ण नहीं।’’
तभी अचानक ऊपर से जामुन का एक गुच्छा एक लड़के के सिर पर आ गिरा। उसने ऊपर की ओर देखा लेकिन कुछ बोला नहीं।

तभी दूसर लड़का बोला-‘‘मित्र ! अभी हम प्रकृति की आलोचना कर रहे थे और प्रकृति ने ही हमें सबक सिखा दिया। सोचो जरा, यदि जामुन के बजाए तरबूज गिरा होता तो क्या होता ? शायद तुम्हारा सिर फट जाता और शायद फिर बच भी न पाते।’’

‘‘हां, प्रकृति जो भी करती है अच्छा ही करती है।’’ वह लड़का बोला जिसके सिर पर जामुन का गुच्छा गिरा था।

सच बोलने की कीमत


बहुत पुरानी बात है। एक गाँव में युधिष्ठिर नाम का एक कुम्हार रहता था। उसे शराब पीने की बहुत बुरी लत थी। एक दिन शराब के नशे में लडखड़ाकर वह एक टूटे बर्तन पर गिर पड़ा। टूटे हुए बर्तन का तीखा कोना उसके माथे में जा घुसा और भलभलाकर खून बहने लगा। लेकिन कुम्हार ने घाव की कोई परवाह नहीं की और जिसका घाव बिगड़ गया। कुछ समय बाद घाव तो भर गया लेकिन माथे पर एक बड़ा निशान पड़ गया।
कुछ समय बाद इलाके में अकाल पड़ गया कुम्हार का काम भी ठप पड़ गया। अतः वह रोजगार की तलाश में दूसरे देश की ओर चल दिया। वहाँ पहुंचकर उसने किसी प्रकार वहां के राजा के पास नौकरी पा ली।
एक बार जब राजा ने उसके माथे पर पड़ा निशान देखा तो उसने सोचा कि वह बहुत बहादुर होगा। शायद शत्रु सेना के किसी सिपाही के साथ युद्ध करते समय इसके माथे पर घाव लगा होगा। अतः राजा ने उसे अपने चुने हुए सेनापतियों के साथ नियुक्त कर दिया।

एक बार जब पड़ोसी देश के साथ युद्ध के आसार बनने लगे तो राजा ने अपने सेनापतियों का उत्साह बढ़ाने के लिए उन्हें सम्मानित किया।
कुछ समय बाद उसने कुम्हार को अपनी सेना का सर्वोच्च सेनापति बनाने का निर्णय लिया। उसने कुम्हार से पूछा-‘‘वीर युवक ! तुम्हारा नाम क्या है ? तुम्हारे माथे पर यह निशान कैसे पड़ा ? उस युद्ध का क्या नाम है था, जिसमें तुमने भाग लिया था ?’’

‘‘महाराज !’’ कुम्हार बोला-‘‘पेशे से मैं कुम्हार हूं। एक बार मैं शराब पीकर टूटे हुए कांच पर गिर पड़ा था। कांच मेरे माथे में घुस गया था और निशान उसी घाव का है, जो कांच घुसने से बना था।’’

यह सुनकर राजा आग बबूला हो उठा। उसने उस कुम्हार को सेना तथा देश से बाहर निकालने का आदेश दे दिया।
राजा के पैर पकड़कर कुम्हार बहुत गिड़गिड़ाया। अनेक दलीलें दीं कि वह उसे अपनी सेना में बना रहने दे। सेना में रहकर युद्ध के समय उसे जौहर दिखाने का मौका दे, लेकिन राजा ने उसकी एक न सुनी और उसे देश से बाहर कर दिया।
अब कुम्हार बिचारा सोच रहा था कि क्या सच बोलने का अंजाम ऐसा भी हो सकता है ?

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