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न जाने कहाँ कहाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 405
आईएसबीएन :9788126340842

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ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी जी का एक और उपन्यास

 

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खुशी से पागल से होने लगे प्रवासजीवन। उनके हावभाव से लग रहा था यही उनके जीवन की परम सार्थकता है। इसके बाद न रहेगी कोई समस्या, न रहेगा किसी तरह का दुःख।

यह एक अजीब तरह का आश्चर्यजनक जीवन रहस्य है।

अब मान-सम्मान भुलाकर बार-बार दिव्य और चैताली को बुलाकर कह रहे थे कि प्रवासजीवन के छोटे बेटे की शादी की तैयारी कैसे होगी, क्या-क्या करना होगा।

बार-बार सौम्य को बुलाकर कह रहे थे, “जीवन को निराशाओं ने घेर लिया था बेटा-उससे तूने छुटकारा दिला दिया। मुझे नयी ज़िन्दगी दे दी तूने।”

हँसकर सौम्य भी कहता, “इतनी जल्दी आशान्वित न हो, पिताजी। मैं तो कह चुका हूँ कि सड़सी के आक्रमण के लिए तैयार रहो।"

"मैं उससे डरता नहीं हूँ।" प्रवासजीवन बोले, “तूने जिस लड़की को इतने दिनों से देख-समझकर"

मुस्कराता रहा सौम्य, “इन बातों पर इतना भरोसा मत करो। जानते तो हो यही बिजली जंगल में जाते ही वनबिलाव बन जाती है।"

“जिस दिन तू उसे लाया था, मैंने देखा था। देखकर लगा था बहुत अच्छी लड़की है।”

“अच्छी रहे इसी में सबका भला है।"

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