लोगों की राय

सामाजिक >> न जाने कहाँ कहाँ

न जाने कहाँ कहाँ

आशापूर्णा देवी

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :138
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 405
आईएसबीएन :9788126340842

Like this Hindi book 2 पाठकों को प्रिय

349 पाठक हैं

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका श्रीमती आशापूर्णा देवी जी का एक और उपन्यास

 

43


हाँ, खूब धूमधाम से, बाजे-गाजे के साथ ही शादी हुई थी मिंटू की। इधर इस इलाके में जितनी धूमधाम हो सकती है उतनी ही धूमधाम से। खाना-पीना भी त्रुटिहीन ही हुआ था। मिंटू भी साधारण लड़कियों की तरह रोते-रोते पति के पीछे-पीछे चलकर मोटर पर जा चढ़ी।

भाग्य का परिहास देखिए, लाबू बेचारी पर क्या बीता। उसे इस शादी में आना पडा, कामकाज करना पड़ा और मंगलाचार को छोडकर हर तरह के कामों में हिस्सा लेना पड़ा।

ऐसा न करती तो लोग क्या कहते? मन के कोने में छिपा दुःखपूर्ण इतिहास तो किसी को बताया नहीं जा सकता था। कहती रहीं, अरुण नहीं आ सका क्योंकि उसे छुट्टी नहीं मिल पायी।

मिंटू के माँ-बाप चालाक आदमी थे। उन्होंने भूलकर भी किसी को भनक नहीं लगने दी कि वामन होकर लाबू चली थी चाँद पकड़ने। अपने 'क्लर्कमात्र' बेटे की बहू बनाना चाहती थी मिंटू को।

बल्कि उनके हावभाव से ऐसा लग रहा था कि मिंटू की इतनी अच्छी शादी हई. इतना अच्छा घर मिला, वर मिला इसके पीछे मिंटू के पिता का परिश्रम है। मिंटू के भाग्य में ऐसा कहाँ लिखा था?

लेकिन असलियत यह थी कि रिश्ता खुद-ब-खुद आया था। और यह वर इतना उदार ऐसा चरित्रवान, विशाल हृदय था क्या इसके पीछे मिंटू के भाग्य का हाथ नहीं था?

अब यद्यपि मिंटू की माँ अफ़सोस किया करती है कि शादी होते न होते लड़की इतनी दूर चली जायेगी। वह सालों न आ सकेगी, यह उन्होंने सोचा तक नहीं था। दिल्ली, लखनऊ, बम्बई, पूना, हैदराबाद, राजस्थान तो सुना था लेकिन सात जन्म में यह नहीं सोचा था कि किसी की लड़की ब्याह कर 'कोरापुट' चली जाये। इससे पहले तो यही नहीं पता था कि कोरापुट है कहाँ।

मिंटू की माँ भले ही न जाने, मिंटू को तो यहीं आकर रहना पड़ रहा था।

बड़ा भारी कम्पाउण्ड, उसमें बहुत बढ़िया बड़ा-सा मकान।

सरकारी किसी नये प्लाण्ट में मिंटू का पति किंशुक रसायनविद् तथा उच्च पदाधिकारी था।

बड़ा ही हँसमुख उज्ज्वल स्वभाव का लड़का था।

उसकी इस उज्ज्वलता के हाथों आत्मसमर्पण न करके मिंटू क्या अपने को ताले-चाभी में रखे? ऐसा करना क्या इस परिस्थिति में सम्भव है?

परन्तु यहाँ एकाकीपन बहुत है।

बहुत ज्यादा निर्जनता।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book