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आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री साधना और यज्ञ प्रक्रिया

गायत्री साधना और यज्ञ प्रक्रिया

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4117
आईएसबीएन :0000

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गायत्री साधना और यज्ञ प्रक्रिया

Gayatri Sadhana Aur Yagya Prakriya

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यज्ञ की उपयोगिता का वैज्ञानिक आधार

गायत्री उपासना के साथ-साथ यज्ञ की अनिवार्यता शास्त्रों में पग-पग पर प्रतिपादित की गई है। यह तथ्य अकारण नहीं है, अभी तक इस बात को मात्र श्रद्धा का विषय माना जाता था, किन्तु जैसे-जैसे विज्ञान की प्रगति हुई यह पता चलने लगा है कि यज्ञ एक प्रयोगजन्य विज्ञान है, उसे अन्य भौतिक प्रयोगों के समान ही विज्ञान की प्रयोगशाला में भी सिद्ध किया जा सकता है।

विज्ञान अब इस निष्कर्ष पर पहुँचता जा रहा है। कि हानिकारक या लाभदायक पदार्थ उदर में पहुँचकर उतनी हानि नहीं पहुँचाते जितनी कि उनके द्वारा उत्पन्न हुआ वायु विक्षोभ प्रभावित करता है। किसी पदार्थ को उदरस्थ करने पर होने वाली लाभ हानि उतनी अधिक प्रभावशाली नहीं होती जितनी कि उसके विद्युत आवेग संवेग।
कोई पदार्थ सामान्य स्थिति में जहाँ रहता है वहाँ के विद्युत कम्पनों से कुछ न कुछ प्रभाव छोड़ता है और समीपवर्ती वातावरण में अपने स्तर का संवेग छोड़ता रहता है, पर यदि अग्नि संस्कार के साथ उसे जोड़ दिया जाय तो उसकी प्रभाव शक्ति असंख्य गुनी बढ़ जाती है।

तमाखू सेवन से कैन्सर सरीखे भयानक रोग उत्पन्न होने की बात निर्विवाद रूप से सिद्ध हो चुकी है। इस व्यसन के व्यापक बन जाने के कारण सरकारें बड़े प्रतिबन्ध लगाने से डरती हैं कि जनता में विक्षोभ करने के लिए प्राथमिक कदम तो उठा ही दिये गये हैं। अमेरिका में सिगरेटों के पैकेट पर उनकी विषाक्तता तथा सम्भाविक हानि की चर्चा स्पष्ट शब्दों में छपी रहती है। फिर भी जो लोग पीते हैं उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि उन्होंने आरोग्य और रुग्णता के चुनाव में बीमारी और अपव्यय के पक्ष में अपनी पसंदगी व्यक्त की है।

तमाखू से कैन्सर कैसे पैदा होता है इस संदर्भ में जो नवीनतम खोजें हुई उससे नये तथ्य सामने आये हैं।
शोधककर्त्ताओं द्वारा निष्कर्ष यह निकाला गया है कि तमाखू में रहने वाले रसायन उतने हानिकारक नहीं जितने कि उसके धुएँ के कारण धनात्मक आवेशों से ग्रस्त साँस का लेना। तमाखू का धुआँ भर मुँह से बाहर निकल जाता है सो ठीक, उसके द्वारा शरीर में रहने वाली वायु पर धनात्मक आवेश भर जाता है। आवेश ही कैन्सर जैसे भयंकर रोग उत्पन्न करने के कारण बनते हैं। धुआँ मुँह से छोड़ देने के बाद उसकी गर्मी और विषाक्तता वातावरण में ऐसे विद्युतीकरण उत्पन्न करती है जिस में साँस लेना भयंकर विपत्ति उत्पन्न करता है। सिगरेट का धुआँ उगलने के बाद सांस तो उसी वातावरण में लेनी पड़ती है। अस्तु तमाखू की विषाक्तता विभीषिका बनकर भयंकर हानि पहुँचाती है। उस हानि से किसी प्रकार भी नहीं बचा जा सकता।
इनको ही नहीं तमाखू पीने वालों के निकट बैठने वालों को भी उस धुआँ से होने वाली हानि भुगतनी पड़ती है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए रेलगाड़ियों में, बसों में यह हिदायत लिखी रहती है कि यदि साथी मुसाफिर को आपत्ति हो तो तम्बाखू न पियें। कोई स्वयं अपने पैरों कुल्हाड़ी मारे उसकी इच्छा, पर यह छूट दूसरों पर आक्रमण करने के लिए नहीं दी जा सकती। तमाखू के धुएँ से पास बैठे हुए लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ना एक प्रकार से अनैतिक और असामाजिक कार्य ही माना जायेगा।

आक्सीजन की समुचित मात्रा रहने पर ही वायु हमारे लिए स्वास्थ्य रक्षक रह सकती है। यदि उसमें कार्बनडाई आक्साइड गैस अथवा अन्य विषैली गैस बैन जाय तो ऐसी वायु जीवन के लिए संकट ही उत्पन्न करेगी। कमरा बन्द करके उसमें जलती अंगीठी रखकर सोया जाय तो कमरे में सोने वालों के लिए प्राणघातक बन जाती है।

26 अक्टूबर 1948 को अमरीका के डोनोरा नगर में एकाएक वायु में धुएँ और विषैले तत्वों के अधिक बढ़ जाने के परिणाम स्वरूप उस दिन दस बजे तक भी सूर्य के दर्शन न हुए तब लोग घरों से बाहर निकले, उनकी साँसें घुटने लगीं थीं। बाहर आकर देखा तो धुएँ का कुहरा (स्माग) बुरी तरह छाया हुआ था। 28 अक्टूबर तक धुन्ध सारे नगर में छा गई और यह स्थिति, 31 अक्टूबर तक बनी रही। इस बीच भी कल-कारखाने, कारें, मोटरें, भट्टियाँ 1000 टन प्रति घण्टे के औसत से धुआँ बराबर उड़ेलती रहीं। सारा शहर लगभग मृत्यु की अवस्था में पहुँच गया। लोगों की ऐसी दशा हो गई जैसी कि डाक्टर के निजी बयान से व्यक्त है। वे बेचारे स्वयं भी मरीज थे, प्रकृति के सामने आज वे भी बेबस थे और सोच रहे थे कि मानवीय सुख शान्ति का आधार यांत्रिक सभ्यता नहीं हो सकती। नैसर्गिक तत्वों के प्रति श्रद्धा और सान्निध्य स्थापित किए बिना मनुष्य कभी सुखी नहीं हो सकता। भौतिक विज्ञान की प्रगति तो वैसी ही गले की फँसी बन सकती है जैसी आज सारे नगर की हो रही है। इस घटना के भुक्त भोगी एक डाक्टर ने लिखा है।

मेरी सोचने की शक्ति समाप्त हो गई। यह क्या हो रहा है। इस पर चकित होने तक के लिए बुद्धि शेष नहीं थी। कार चलाना कठिन हो गया, किसी तरह कार से उतरा तो लगा कि सीने पर कोई दैत्य चढ़ बैठा है और उसने भीतर से जकड़ लिया है। खाँसी आने लगी मुश्किल से कार्यालय मिला, टेलीफोन की घण्टियाँ बज रही थीं और मुर्दें की तरह पास में कूड़े के ढेर की तरह पड़ा रहा, उस दिन एक भी टेलीफोन का उत्तर नहीं दे सका।’’
इन 5-6 दिनों में डोनोरा नगर की 18 हजार की आबादी में 6 हजार अर्थात् एक तिहाई व्यक्ति बीमार पड़ गए थे, सैकड़ों की मत्यु हो गई। भगवान कृपा न करते और 31 को भारी वर्षा न होती तो कौन जाने डोनोरा शहर पूरी तरह लाशों से पट जाता।

1966 में ‘‘थेंक्सगिविंग’’ दिवस पर न्यूयार्क में आस- पास के देहाती क्षेत्रों से भी सैकड़ों लोग आ पहुँचे। उस दिन भी यह दशा हुई। कुछ घण्टों में धुएँ के दबाव से ही 170 व्यक्तियों की मृत्यु तत्काल हो गई। हजारों लोगों को पार्टियाँ, नृत्य और सिनेमा घरों की मौज छोड़कर अस्पतालों के बिस्तर पकड़ने पड़े। ऐसी दुर्घटना वहाँ 1952 में भी हो चुकी थी, उसमें 200 से भी अधिक मृत्यु हुई थीं।  

सन् 1956 में यही स्थिति एक बार लन्दन की हुई थी उसमें 1000 व्यक्ति मरे थे। सरकार ने करोड़ों रुपयों की लागत से रोकथाम के प्रयत्न किए थे, तो भी 1962 में दुबारा फिर वैसी ही स्थिति बनी और 400 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु कुछ ही घण्टों में दम घुटकर हो गई। कुछ लोगों ने तो इसे प्राकृतिक आत्महत्या कहा और चेतावनी दी कि यदि धुएँ की समस्या को हल न किया गया तो एक दिन सारा वायुमण्डल विष से भर जायेगा। जिस दिन यह स्थिति होगी उस दिन पृथ्वी की सामूहिक हत्या होगी। उस दिन पृथ्वी पर मनुष्य तो क्या कोई छोटा सा जीव और वनस्पति के नाम पर एक पौधा भी न बचेगा। पृथ्वी की स्थिति शुक्र ग्रह जैसी विषैली हो जायेगी।

संसार के विचारशील लोगों का इधर ध्यान न हो ऐसा तो नहीं है किन्तु परिस्थितियों के मुकाबले प्रयत्न नगण्य जैसे हैं। एक और जनसंख्या में तीव्र वृद्धि हो रही है उसी अनुपात से कल कारखाने और शहरों की संख्या भी बढ़ेगी। अनुमान है कि सन् 2000 तक अमेरिका की 320 मिलियन जनसंख्या होगी। इस आबादी का 85 प्रतिशत शहरों में मरेगा। इस अवधि में कारों और मोटरों की संख्या इतनी अधिक हो जायेगी कि उनको रखने की जगह न मिलेगी। अमेरिका में एक बच्चा पैदा होता है तब कारें दो जन्म ले चुकी होती है।

‘‘यूनिवर्सिटी स्टेटवाइड एअर पौल्यूजन रिसर्च सेन्टर’’ संस्था जो अमेरिका में वायु प्रदूषण से होने वाली हानियों और उनसे बचने के उपायों की शोध करती है, के डायरेक्टर श्री जी.टी. मिडिल्टन के अनुसार एक कार सामान्य रूप से 9000 मील प्रतिवर्ष चलती ही है। एक दिन में 25 मील तो वह अनिवार्य रूप से चलती है, उससे 61/2 पौण्ड वायु प्रदूषण होता है। 1960 में इस राज्य में अकेले कारों से 37 मिलियन पौण्ड अर्थात् 462500 मन से भी अधिक वायु प्रदूषण निकला। 1963 में 56 मिलियन पौण्ड, 1970 में 81 मिलियन पौण्ड तथा 1980 में 112 मिलियन पौण्ड से भी अधिक वायु-प्रदूषण अकेली कार मोटरों ने फैलाया।

कल कारखानों से निकल रहे धुएँ की हानियों और भविष्य में हो सकने वाली भयंकरता का चित्रण करते हुए कैलिफोर्निया के टेक्नोलॉजी संस्थान के भू रसायन शास्त्री डॉ. कैरोल ने लिखा है कि टेक्नालॉजी के विस्तार से वायु में कार्बन और सीसे के कणों की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जायेगी कि अमेरिका का हर व्यक्ति हृदय तन्त्रिका संस्थान (नर्वस शिर सिस्टम) के रोग से पीड़ित अर्थात् लोग लगभग पागलों जैसी स्थिति में पहुँच जायेंगे।’’

2000 तक विद्युत का उपयोग 5 गुना बढ़ जायेगा। जिसके कारण वायु प्रदूषण 5 गुना बढ़ जायेगा। जनसंख्या वृद्धि का अर्थ रहन-सहन की वस्तुओं में वृद्धि होगी, और उससे कूड़े की मात्रा भी निस्संदेह बढ़ेगी। उस बढ़ोत्तरी को न तो आक्सीजन का उत्पादन रोक सकेगा, न पेड़-पौधे, क्योंकि वह स्वयं भी जो विषैले तत्वों के सम्पर्क में आकर विषैले होंगे और दूसरे नये-नये विष पैदा करने में मदद करेंगे। ऐसी स्थिति में यान्त्रिक सभ्यता को रोकने और वायु शुद्ध करने के लिए लिए सारे विश्व में यज्ञ परम्परा डालने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रह जाता। यज्ञों में ही वह सामर्थ्य है जो वायु प्रदूषण को समानान्तर गति से रोक सकती है।

अभी इस गन्दगी को दूर करने के लिए अमेरिका प्रति वर्ष 1200000000 डालर्स) एक डालर का मूल्य सात रुपये से कुछ अधिक होता है) खर्च करता है। ओजोन, सल्फर, फ्लोराइड से शाक सब्जी तथा फूल फसलों की क्षति रोकने के लिए 500 मिलियन डालर्स धातुओं पर जंग लगने, रंग उड़ने से सफाई व घर खर्च आदि बढ़ जाने, जानवरों के मरने, खाने की वस्तुएं क्षतिग्रस्त होती हैं, नाइलोन, टायर और ईंधन नष्ट होता है, इन सबको रोकने और रख-रखाव में 300 मिलियन डालर्स तथा सूर्य प्रकाश के मन्द पड़ जाने के कारण जो अतिरिक्त प्रकाश की व्यवस्था करनी पड़ती है उसमें 40 मिलियन डालर्स का खर्च वहन करना पड़ता है।

वायु-प्रदूषण बढ़ने के अनुपात से सुरक्षात्मक प्रयत्नों में खर्च की वृद्धि भी होगी तो भी रोक सकना सम्भव नहीं होगा। कैलीफोर्नियाँ के कृषि, विभाग, सेवा योजन विभाग के प्रोग्राम लीडर डॉ. पो. औस्टरली ने भविष्यवाणी की है कि अमेरिका में वायु गन्दगी के कारण जो नुकसान होने वाला है वह बहुत भयंकर है और उसमें सुधार की कोई सम्भावना नहीं है। अगले कुछ दिनों में धुआँ इतना अधिक हो जायेगा कि प्रातःकाल चिड़ियों का चहचहाना तक बन्द हो जायेगा क्योंकि उन्हें सबेरे-सबेरे सामान्य सांस लेने में कठिनाई होने लगेगी, चहचहाने में तो श्वांस-प्रश्वांस की क्रिया बढ़ जाती है। इस स्थिति में उन्हें चुप रहने में ही सुविधा होगी।

 
 

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