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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4120
आईएसबीएन :000000

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आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

ॐ गणेशाय नमः

गुरु वन्दना

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुरेव महेश्वरः।
गुरुरेव परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं गुरु महेश है और गुरु ही परमब्रह्म हैं- ऐसे सद्गुरुदेव को नमस्कार है।

अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।

जिस परमात्म शक्ति से जड़-चेतन रूप सम्पूर्ण विश्व-ब्रह्माण्ड संव्याप्त है, उस (परमात्म शक्ति) का साक्षात्कार-स्वरूप दर्शन कराने वाले सद्गुरुदेव को नमस्कार है।

नमोऽस्तु गुरवे तस्मै गायत्रीरूपिणे सदा।
यस्य वागमृतं हन्ति विषं संसारसंज्ञकम्।।

सर्वदा गायत्री रूप में विद्यमान रहने वाले उन सद्गुरुदेव को नमस्कार करते हैं, जिनकी वाणीरूप अमृत से संसार (भव-बाधा) रूपी विष विनष्ट हो जाता है।

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    अनुक्रम

  1. आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता
  2. श्रद्धा का आरोपण - गुरू तत्त्व का वरण
  3. समर्थ बनना हो, तो समर्थों का आश्रय लें
  4. इष्टदेव का निर्धारण
  5. दीक्षा की प्रक्रिया और व्यवस्था
  6. देने की क्षमता और लेने की पात्रता
  7. तथ्य समझने के उपरान्त ही गुरुदीक्षा की बात सोचें
  8. गायत्री उपासना का संक्षिप्त विधान

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