हास्य-व्यंग्य >> हीरक जयन्ती हीरक जयन्तीनागार्जुन
|
10 पाठकों को प्रिय 195 पाठक हैं |
कविवर मृगांक ने सोचा—बारह पाँचे साठ सौ रुपये। कम नहीं होते हैं साठ सौ रुपये। सालभर में इतनी रकम तो दस उपन्यास भी नहीं खींच सकते !
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book