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प्रतिनिधि हास्य कहानियाँ

मनमोहन सरल, श्रीकृष्ण (सम्पादक)

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :460
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4236
आईएसबीएन :81-7043-628-1

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50 कुशल लेखकों की कहानियों का संकलन जो हँसाती हैं, गुदगुदाती हैं

Pratinidhi Hasya Kahaniyan - Manmohan Saral, Shri Krishna (Editor

हिन्दी की प्रतिनिधि हास्य कहानियों का यह संग्रह आखिर पूरा हो ही गया !
इस वाक्य के विश्लेषण से एक साथ तीन बातें सामने आती हैं। पहली तो यह कि हास्य या हास्य कहानी क्या है ? दूसरी बात इस संग्रह की कहानियों के प्रतिनिधि होने के संबंध में और तीसरी इसके आखिर पूरा हो ही जाने में हुए कार्य और श्रम के सम्बन्ध में।

संग्रह के लिए कहानियाँ चुनते समय हास्य क्या है और कहानी में हास्य है अथवा नहीं, इसका सही मापदण्ड स्थिर करना आवश्यक हो गया था। इस निर्वाचन में यथाशक्ति उसका पालन किया गया है।

हास्य क्या है, इसका उत्तर देना साहित्य की अपेक्षा दर्शन-शास्त्र का विषय अधिक है। सरल भाषा में इसे यों कहिए कि हम हँसते क्यों हैं ? प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य लेखक बर्नार्ड शॉ ने लिखा है : ‘कोई भी चीज जो हँसाए हास्य है।’ फ्रांसीसी आलोचक बर्गसॉ ने इस प्रश्न को हल करते हुए हास्य की परिस्थिति और प्रकृति का विश्लेषण किया है। उन्होंने कई निष्कर्ष निकाले हैं-हास्य सर्वथा मानवीय वृत्ति है और मानव-जीवन से बाहर उसकी कोई गति नहीं है; हास्य के लिए भावुकता और उद्वेग का सर्वथा अभाव अनिवार्य है क्योंकि हास्य और भावुकता एक-दूसरे से शत्रु हैं; हास्य एक सामाजिक वृत्ति है, वातावरण अथवा परिस्थिति में किसी प्रकार की असामाजिकता हास्य को जन्म दे सकती है।

बिलकुल ऐसी ही बात हमारे प्राचीन आलोचकों ने भी कही है। हास्य की उत्पत्ति का कारण असंगति, बेमेलपन, विपरीतता, औचित्य से शून्य अथवा परिनिष्ठित मार्ग से हटी हुई बात मानी गयी है। ऊँट से लम्बे पति के साथ नाटी पत्नी या पूतना-जैसे भीमकाय स्त्री के साथ बच्चों-जैसा छोटा पति आदि अनुपातहीन घटनाएँ हास्य का कारण बनती हैं।

प्रस्तुत संकलन की कहानियाँ हिन्दी हास्य के सभी प्रभेदों का यत्किंचित् प्रतिनिधित्व कर सकेंगी। प्रतिनिधित्व की बात इस कारण कही जा रही है कि हमने अपनी जान में सभी आमन्त्रित लेखकों की श्रेष्ठतम् रचना ही संग्रहीत् की है। संकलन के लिए कहानियाँ आमंत्रित करते समय हमने प्रत्येक लेखक-बन्धु से यह अनुरोध किया था कि अमुक प्रकार की अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना संग्रह करके के लिए प्रेषित करें। इन कहानियों के प्रतिनिधित्व में शंका तभी हो सकती है जब लेखक ने स्वयं अपनी कहानी की श्रेष्ठता आँकने में भूल की हो। ऐसी किसी त्रुटि के लिए यद्यपि हम पर कोई दायित्व नहीं आता, फिर भी यदि अंजाने में अज्ञानता में हमने निर्वाचन में कहीं भूल कर दी हो तो क्षमाप्रार्थी हैं।

एक बात संकलन के लेखकों के विषय में भी। हम यह घोषणा नहीं करते कि इस संकलन में सम्मिलित हुए लेखक ही हास्य-कथा-लेखक हैं, इसके बाहर के नहीं; साथ ही यह दावा भी नहीं करते कि ये सभी लेखक हिन्दी में हास्य-लेखक के रूप में ही जाने जाते हैं। इनमें कई ऐसे भी हैं जिन्होंने गिनती की ही हास्य कहानियाँ लिखी हैं, किन्तु उनमें ही हमें कोई एक ऐसी उत्कृष्ट जान पड़ी कि स्थान देना आवश्यक हो गया। कुछेक नये और अख्यात लेखक भी हमने निर्भीक होकर प्रस्तुत किए हैं, हमें विश्वास है कि उनकी रचनाएँ कुशल लेखकों की कहानियों के सामने फीकी नहीं लगेंगी।
हमें इस बात का विशेष गर्व है कि हिन्दी में इतना बड़ा कहानी-संकलन यह शायद पहला ही है। इतने बड़े संकलन में, जिसमें लेखकों की संख्या 50 के लगभग हो गई है, सभी कहानी एक ही-से स्तर की होंगी, यह सम्भव नहीं हो सकता। फिर श्रेष्ठता और विशेष हास्य कहानी का अच्छा लगना तो अपनी व्यक्तिगत रुचि पर ही निर्भर है। हमें आशा है कि प्रत्येक प्रकार की रुचि के पाठकों को अपनी पसन्द की कहानियाँ प्रचुर मात्रा में मिल सकेंगी।

सम्पादन, निर्वाचन, संचयन आदि में व्यय किए अपने श्रम की चर्चा करना उचित नहीं जान पड़ता। यह तो सुस्पष्ट और सहज अनुभव करने की बात है। जितना कुछ श्रम हुआ भी है, वह सफल तो कब कहा जाएगा, जब यह संकलन प्रेमी पाठकों द्वारा पसन्द किया जाएगा और सुधी आलोचकों द्वारा इसे मान मिलेगा।

इस महत् योजना के सफलतापूर्वक पूरा होने से मेसर्स आत्माराम एण्ड संस के संचालक श्री रामलाल पुरी का पूरी रुचि लेना बहुत महत्वपूर्ण रहा है। स्नेही लेखकों ने भी अपना रचनात्मक सहयोग देकर हमें बल प्रदान किया है। चित्रकार बंधु योगेन्द्रकुमार लल्ला के श्रम का परिचय तो संग्रह की सज्जा स्वयं दे देगी। इन सबके प्रति आभार-प्रदर्शन सम्पादक अनिवार्य समझते हैं।

मनमोहन सरल, श्रीकृष्ण


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