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आचार्य श्रीराम शर्मा >> मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु ?

मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु ?

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 4251
आईएसबीएन :0000

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मनुष्य गिरा हुआ देवता है या उठा हुआ पशु....

प्रकृति का भंडार इतना विशाल है कि उसे जितना खोजा जा सके उतना ही कम है। भौतिक विज्ञान से बढ़कर चेतना विज्ञान है। जड़ शक्तियों की तुलना में चेतना शक्तियों की क्षमता एवं उत्कृष्टता का बाहुल्य स्वीकार करना ही पड़ेगा

मनुष्य का कर्तव्य उसकी सफलताओं का कारण है, यह तथ्य सर्वविदित है। पर मान्यता भी एक अंश तक ही सही है। इसके साथ एक काऱण और भी जुड़ा हुआ प्रतीत होता है-निर्धारित नियति। भले ही वह अपने ही पूर्व संचित कर्मों का फल ही हो, या उसका संचालन किसी अदृश्य से सम्बन्धित हो। प्रकृति के अद्भुत रहस्यों में से कुछ को मनुष्य ने एक सीमा तक ही जाना है। अभी बहुत बड़ा क्षेत्र अनजाना और अछूता पड़ा है।

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