आचार्य श्रीराम शर्मा >> सफलता के सात सूत्र साधन सफलता के सात सूत्र साधनश्रीराम शर्मा आचार्य
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विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ ...
जीवन में सफलता पाने के जितने साधन बतलाए गए हैं, उनमें विद्वानों ने इन सात साधनों को प्रमुख स्थान दिया है, वे हैं- परिश्रम एवं पुरुषार्थ, आत्म विश्वास एवं आत्मनिर्भरता, ज्ञिासा एवं लगन, त्याग एवं बलिदान, स्नेह एवं सहानुभूति, साहस एवं निर्भयता, प्रसन्नता एवं मानसिक संतुलन। जो मनुष्य अपने में इन सात साधनों का समावेश कर लेता है, वह किसी भी स्थिति का क्यों न हों, अपनी वांछित सफलता का अवश्य वरण कर लेता है।
सफलता के लिए क्या करें? क्या न करें?
प्रत्येक मनुष्य चाहता है कि वह जीवन में उच्च स्थान प्राप्त करे। लोग बड़ी सफलताओं के स्वप्न देखते हैं। बड़े-बड़े मनसूबे बाँधते हैं। अधिकांश लोग जीवन के बाह्य क्षेत्र में नाम, बड़ाई, प्रतिष्ठा, श्री, समृद्धि, उच्चपद आदि के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। थोडे-बहुत अपने लक्ष्य की पूर्ति में सफल होते हैं। इनमें भी बहुत कम इन विभूतियों, समृद्धियों के स्थायी सुख को भोग पाते हैं।
स्वामी रामतीर्थ संन्यास लेने से पूर्व एक कालेज के प्रोफेसर थे। एक दिन बच्चों के मानसिक स्तर की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने बोर्ड पर एक लकीर खींच दी और विद्यार्थियों से कहा-"इसे बिना मिटाए ही छोटा कर दो।" एक विद्यार्थी उठा किंतु वह प्रश्न के मर्म को नहीं समझ सका उसने रेखा को मिटाकर छोटी करने का प्रयत्न किया। इस पर स्वामीजी ने उस बच्चे को रोका और प्रश्न को दुहराया। सभी बच्चे बड़े असमंजस में पड़ गए। थोड़े समय में ही एक लड़का उठा और उसने उस रेखा के पास ही एक बड़ी रेखा खींच दी। प्रोफेसर साहब की खींची हुई रेखा अपने आप छोटी हो गई। उस विद्यार्थी की बुद्धि की सराहना करते हुए स्वामीजी ने कहा-“विद्यार्थियो ! इससे आपको शिक्षा मिलती है कि दुनियाँ में बड़ा बनने के लिए किसी को मिटाने से नहीं वरन् बड़े बनने के रचनात्मक प्रयासों से ही सफलता मिलती है। बड़े काम करके बड़प्पन पाया जा सकता है।"
जो लोग दूसरों को मिटाकर, दूसरों को नुकसान पहुँचाकर, उनकी नुक्ताचीनी करके बड़े बनने का स्वप्न देखते हैं, उनका असफल होना निश्चित है। यदि ऐसे व्यक्तियों को प्रारंभिक दौर में कुछ सफलता मिल भी जाए तो अंततः उन्हें असफल ही होना पड़ेगा, क्योंकि सफलता का नियम धनात्मक है, ऋणात्मक नहीं. संत विनोवा जी के शब्दों में सफलता के सिद्धांत की व्याख्या सहज ही समझी जा सकती है। उन्होंने कहा है, "पड़ौसी के पास सात सेर ताकत है और मेरे पास दस सेर। यदि दोनों परस्पर टकराएँगे तो परिणाम में १० - ७ = ३ सेर ताकत ही बच रहेगी। दोनों पक्षों को हानि ही हानि होगी। दूसरी स्थिति में यदि मिलकर श्रम किया जाएगा तो १० + ७ = १७ सेर की ताकत पैदा होगी, जिससे अधिक मात्रा में सफलता अर्जित की जा सकेगी। मेरे दो हाथ और आपके दो हाथ मिलकर २ + २ = ४ होते हैं, किंतु जब मिलकर परस्पर टकराएँगे तो २ - २ = ० नतीजा शून्य ही निकलेगा।
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