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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


यह बात सही है कि अध्यात्म मार्ग पर चलने से, उसकी साधना करने से दैवी वरदान भी मिलते हैं और ऋद्धि-सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। किंतु वह उच्चस्तरीय सूक्ष्म-साधना का फल है। कुछ दिनों पूजा-पाठ करने अथवा जीवन भर यों ही कार्यक्रम के अंतर्गत पूजा करते रहने पर भी ऋषियों वाला ऐश्वर्य प्राप्त नहीं हो सकता। उस स्तर की साधना कुछ भिन्न प्रकार की होती है। वह सर्वसामान्य लोगों के लिए संभव नहीं। उन्हें इस तप-साध्य अध्यात्म में न पड़कर अपने आवश्यक कर्तव्यों में ही आध्यात्मिक निष्ठा रखकर जीवन को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। उनके साधारण पूजा-पाठ का जो कि जीवन का एक अनिवार्य अंग होना ही चाहिए, अपनी तरह से लाभ मिलता रहेगा।

थोड़ी-सी साधारण पूजा, उपासना करके जो जीवन में अलौकिक ऋद्धि-सिद्धि पाने की लालसा रखते हैं, वे किसी जुआरी की तरह नगण्य-सा धन लगाकर बहुत अधिक लाभ उठाना चाहते हैं। बिना श्रम के मालामाल होना चाहते हैं। ऐसे लोभी उपासकों की यह अनुचित आशा कभी भी पूरी नहीं हो सकती और हो यह भी सकता है कि इस लोभ के कारण उनको अपनी उस सामान्य उपासना को कोई फल न मिले। देवताओं का वरदान वस्तुतः इतना सस्ता नहीं होता जितना कि लोगों ने समझ रखा है। वे मंदिर में जाकर हाथ जोड़ देने या अक्षत-पुष्प जैसी तुच्छ वस्तुयें चढ़ा देने से प्रसन्न हो जायेंगे और अपने वरदान लुटाने लगेंगे ऐसा सोचना अज्ञान के सिवाय और कुछ नहीं है। सामान्य पूजा-पाठ का अपना जो पुरस्कार है, मिलेगा वही, उससे अधिक कुछ नहीं।

वरदायी अथवा अलौकिक ऐश्वर्य का आधार अध्यात्म सामान्य उपासना मात्र नहीं है। उसका क्षेत्र आत्मा के सूक्ष्मसंस्थानों की साधना है। उन शक्तियों के प्रबोधन की प्रक्रिया है, जो मनुष्य के अंतःकरण में बीज रूप में सन्निहित रहती हैं। आत्मिक अध्यात्म के उस क्षेत्र में एक से एक बढ़कर सिद्धियाँ एवं समृद्धियाँ भरी पड़ी हैं। किंतु उनकी प्राप्ति तभी संभव है, जब मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार से निर्मित अंतःकरण, पाँचों कोशों, छहों चक्रों, मस्तिष्कीय ब्रह्म-रंध्र में अवस्थित कमल, हृस्थित सूर्य-चक्र, नाभि की ब्रह्म-ग्रंथि और मूलाधारवासिनी कुंडलिनी आदि के शक्ति-संस्थानों और कोश-केंद्रों को प्रबुद्ध, प्रयुक्त और अनुकूलतापूर्वक निर्धारित दिशा में सक्रिय बनाया जा सके। यह बड़ी गहन, सूक्ष्म और योगसाध्य तपस्या है। जन्म-जन्म से तैयारी किये हुए कोई बिरले ही यह साधना कर पाते हैं और अलौकिक सिद्धियों को प्राप्त करते हैं। यह साधना न सामान्य है और न सर्वसाधारण के वश की, तथापि असंभव भी नहीं है।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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