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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक


बराबर आगे बढ़ते रहने के लिए, बराबर नई शक्ति प्राप्त करते रहना आवश्यक है। आपकी उन्नति का क्रम कभी भी रुकना न चाहिए। संतोष का तात्पर्य दूसरा है, जिसे 'दार्शनिक भूलभुलैया' पुस्तक में आप पढ़ेंगे। यहाँ तो आपको इतना ही जान लेना पर्याप्त है कि आगे बढ़ने से कभी भी रुकना नहीं है। निरंतर कदम आगे बढाये चलना है और महानता को बूंद-बूंद इकट्ठी करके अपनी लघुता का खाली घड़ा पूर्ण करना है। उस कर्महीन मनुष्य का अनुकरण करने से काम न चलेगा, जो पेट भरते ही हाथ-पैर फैलाकर सो जाता है और जब भूख बेचैन करती है तब करवट बदलता और कुड़कुड़ाता है। छोटी चींटी को देखिये—वह भविष्य की चिंता करती है, आगे के लिए अपने बिल में दाने जमा करती है, जिससे जीवन संघर्ष में अधिक दृढ़तापूर्वक खड़ी रहे; दस दिन पानी बरसने के कारण बिल से बाहर निकलने का अवसर न मिले तो भी जीवित रह सके। छोटी मधुमक्खी भविष्य की चिंता के साथ आज का कार्यक्रम निर्धारित करती है। आज की जरूरत पूरी करके चुप बैठे रहना उचित नहीं, इस जन्म और अगले जन्म में आपको लगातार उन्नति पथ पर चलना है तो यह अत्यंत आवश्यक है, कि यात्रा में बल देते रहने योग्य भोजन की व्यवस्था का ध्यान रखा जाए। इस समय आप जितना बल संचय कर रहे हैं वह आगे चलकर बहुत लाभदायक सिद्ध होगा, उसकी क्षमता से भविष्य का यात्रा-क्रम अधिक तेजी और सरलता से चलता रहेगा।

योग साधना के फलस्वरूप सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, अष्टसिद्धि, नवनिधि के लिए लालायित होकर अनेक साधक कठोर साधनाएँ करते हैं, विजयी बनने के लिए मृत्यु की छाया में रणक्षेत्र की ओर कदम बढ़ाते हैं, स्वर्ग लाभ के लिए दुर्गम वन-पर्वतों की यात्रा करते हैं, धनी बनने के लिए एड़ी से चोटी तक पसीना बहाते हैं, बलवान् बनने के लिए थकाकर चूर-चूर करने वाले व्यायाम में प्रवृत्त होते हैं, विद्वान् बनने के लिए रात-रात भर जागकर अध्ययन करते हैं। यह उदाहरण बताते हैं कि उन्नत बनने की आवश्यकता को हमारी अंत.चेतना विशेष महत्त्व देती है और उस आवश्यकता को पूरा करने के लिए हम बड़ी से बड़ी जोखिम उठाने को, कठिन से कठिन प्रयत्न करने को तत्पर हो जाते हैं। नकली आवश्यकता और असली आवश्यकता की पहचान यह है कि नकल के लिए, संदिग्ध बात के लिए त्याग करने की तत्परता नहीं होती, असली आवश्यकता के लिए मनुष्य कष्ट सहने और कुर्बानी करने को तैयार रहता है। एक आदमी सिनेमा का शौकीन है, उससे कहा जाए कि एक सिनेमा देखने के बदले में तुम्हें अपनी उँगली कटवानी पड़ेगी तो वह ऐसा सिनेमा देखने से मना कर देगा, क्योंकि खेल देखने की आवश्यकता नकली है, उसके लिए इतना बड़ा कष्ट सहन नहीं किया जा सकता। परंतु यदि स्त्री, पुत्र आदि कोई प्रियजन अग्निकांड में फंस गये हों तो उन्हें बचाने के लिए जलती हुई अग्नि-शिखाओं में कूदा जा सकता है, फिर चाहे भले ही उसमें झुलसकर अपना भी शरीर चला जाए। सिनेमा का खेल देखने की आवश्यकता और प्रियजनों की जीवन रक्षा करने की आवश्यकता में कौन असली है, कौन नकली, उसकी पहचान उसके लिए त्याग करने की मात्रा के अनुसार ही जानी जा सकती है। हम देखते हैं कि उन्नति करने की लालसा मानव स्वभाव में इतनी तीव्र है कि उसके लिए कष्ट सहता है और जोखिम उठाता है। यह भूख असली है। असली आवश्यकता में इतना आकर्षण होता है कि उसके लिए तीव्र शक्ति से प्रयत्न करने को बाध्य होना पड़ता है। मौज में पड़े रहना किसी को बुरा नहीं लगता, पर उन्नति की ईश्वरदत्त आकांक्षा इतनी तीव्र है कि उसके लिए मौज छोड़कर कष्ट सहने को तत्पर हो जाते हैं।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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