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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक

आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य


हमारी आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य क्या है? यह उपनिषद के निम्न वाक्य से स्पष्ट होता है-

"ते सर्वगं सर्वतः प्राप्त धारा युक्तात्मानं सर्वमेवा विशन्ति"।

"धीरगण सर्वव्यापी को सकल दिशाओं से प्राप्त कर युक्तात्मा होकर सर्वत्र ही प्रवेश करते हैं।"

सर्व में प्रवेश करना, युक्तात्मा होना, उस विश्वात्मा की अनुभूति प्राप्त करना ही हमारी साधना का लक्ष्य है। आत्मा द्वारा विश्वात्मा में प्रवेश करना ही आध्यात्मिक साधना की कसौटी है।

साधारण स्थिति में अथवा प्रारंभिक अवस्था में मनुष्य एक सीमित आवरण में आवृत्त होकर पृथ्वी पर विचरण करता है। जिस प्रकार अंडे में स्थित पक्षी का बच्चा पृथ्वी पर जन्म लेता है, किंतु अंडे के आवरण में लिप्त हुआ जीवन लाभ भी प्राप्त नहीं करता। ठीक इसी प्रकार साधारण स्थिति में मनुष्य एक अस्फुट चेतना के अंडे में आवृत्त होता है। उस समय वह अपनी उस क्षुद्र इकाई को नहीं देख पाता, जहाँ संकीर्णता होती है, खंडता होती है, विभिन्नता होती है। जिस प्रकार जन्मांध व्यक्ति विस्तृत संसार की जानकारी नहीं कर पाता, वह सोचता है शायद विश्व में और कुछ भी नहीं है, सर्वत्र अंधकार ही है। किंतु यदि उसकी आँख ठीक हो जाए अथवा विशेष उपकरणों के उपयोग से उसे दिखाई देने लगे तो विस्तृत विश्व की झांकी, संसार के क्रिया-कलापों को वह देख सकता है। विश्व भुवन के वैचित्र्य की, जिसकी उसे अंधेपन की अवस्था में जरा भी जानकारी न थी, उसे देखकर वह सोचने लगता है, मैं इतने दिन तो इसी प्रकार कुछ नहीं समझते हुए घूमता रहा, आज मुझे इस संसार का दर्शन हुआ है। ठीक इसी प्रकार आत्मदृष्टि प्राप्त कर लेने पर होता है।

मनुष्य अपने आवरण में, अस्फुट चेतना के अंडे में खंडता, अनेकता के रंगीन चश्मे के परदे से जब अपने आपको निरावृत कर आत्मा द्वारा विश्वात्मा में प्रवेश कर लेता है, तब वह अपने विराट् एवं सर्वव्यापी स्वरूप को सकल दिशाओं में प्राप्त कर युक्तात्मा बन जाता है। सर्वत्र गमन करने की क्षमता प्राप्त करता है। परमात्मा की परम सत्ता में प्रविष्ट होकर ही आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य प्राप्त होता है। आत्मा विश्वात्मा में मिलकर ही अनेकों जन्मों की यात्रा पूरी करती है, यही मोक्ष, जीवनमुक्ति, प्रभु दर्शन, आत्म साक्षात्कार का वास्तविक स्वरूप है? जीव चैतन्य और विश्व चैतन्य की एकता एकरसता प्राप्त कर लेना अध्यात्म जीवन की कसौटी है।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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