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आचार्य श्रीराम शर्मा >> अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4267
आईएसबीएन :00000

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अध्यात्मवाद पर आधारित पुस्तक

आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव


भारतीय संस्कृति में देवताओं की विचित्र कल्पनायें की गई हैं। उनकी मुखाकृति, वेष-विन्यास, रहन-सहन, वाहन आदि के ऐसे विचित्र कथानक जोड़कर तैयार किये गये हैं, उन्हें पढ़कर यह अनुमान करना भी कठिन हो जाता है कि वस्तुतः कोई ऐसे देवीदेवता हैं भी अथवा नहीं? चार मुख के ब्रह्माजी, पंचमुख महादेव, षटमुख कार्तिकेय, हाथी की सूंड वाले श्री गणेश जी, पूँछ वाले हनुमान जी—यह सब विचित्र-सी कल्पनायें हैं, जिन पर मनुष्य की सीधी पहुँच नहीं हो पाती। उसे या तो श्रद्धावश देवताओं को सिर झुकाकर चुप रह जाना पड़ता है या तर्कबुद्धि से ऐसी विचित्रताओं का खंडन कर यही मान लेना पड़ता है कि ऐसे देवताओं का वस्तुतः कहीं कोई अस्तित्व नहीं है।

पौराणिक देवी-देवताओं के जो वर्णन मिलते हैं, उन पर गंभीरतापूर्वक विचार करें तो पता चलता है कि इन विचित्रताओं के पीछे बड़ा समुन्नत आध्यात्मिक रहस्य छिपा हुआ है। मानव-जीवन के किन्हीं उच्च आदर्शों और स्थितियों का इस तरह बड़ा ही कलापूर्ण दिग्दर्शन किया है, जिसका अवगाहन करने मात्र से मनुष्य दुस्तर साधनाओं का फल प्राप्त कर अपने जीवन को सार्थक बना सकता है।

इस प्रकार के आदर्श आदिकाल से मनुष्य को आकर्षित करते रहे हैं। मनुष्य उनकी उपासना करता रहा है और जाने-अनजाने भी इन आध्यात्मिक लाभों से लाभान्वित हो रहा है। इन्हें एक प्रकार से व्यावहारिक जीवन की मूर्तिमान् उपलब्धियाँ कहना चाहिए। उसे जीवनक्रम में इतना सरल और सुबोधगम्य बना देने में भारतीय आचार्यो की सूक्ष्म बुद्धि का उपकार ही मानना चाहिए। जिन्होंने बहुत थोड़े में सत्य और जीवन-लक्ष्य की उन्मुक्त अवस्थाओं का ज्ञान उपलब्ध करा दिया है।

शैव और वैष्णव यह दो आदर्श भी उन्हीं में से हैं। शिव और विष्णु दोनों आध्यात्मिक जीवन के किन्हीं उच्च आदर्शों के प्रतीक हैं। इन दोनों में मौलिक अंतर इतना ही है कि शिव आध्यात्मिक जीवन को प्रमुख मानते हैं। उनकी दृष्टि में लौकिक संपत्ति का मूल्य नहीं है, वैराग्य ही सब कुछ है जबकि विष्णु जीवन के लौकिक आनंद का भी परित्याग नहीं करते।

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    अनुक्रम

  1. भौतिकता की बाढ़ मारकर छोड़ेगी
  2. क्या यही हमारी राय है?
  3. भौतिकवादी दृष्टिकोण हमारे लिए नरक सृजन करेगा
  4. भौतिक ही नहीं, आध्यात्मिक प्रगति भी आवश्यक
  5. अध्यात्म की उपेक्षा नहीं की जा सकती
  6. अध्यात्म की अनंत शक्ति-सामर्थ्य
  7. अध्यात्म-समस्त समस्याओं का एकमात्र हल
  8. आध्यात्मिक लाभ ही सर्वोपरि लाभ है
  9. अध्यात्म मानवीय प्रगति का आधार
  10. अध्यात्म से मानव-जीवन का चरमोत्कर्ष
  11. हमारा दृष्टिकोण अध्यात्मवादी बने
  12. आर्ष अध्यात्म का उज्ज्वल स्वरूप
  13. लौकिक सुखों का एकमात्र आधार
  14. अध्यात्म ही है सब कुछ
  15. आध्यात्मिक जीवन इस तरह जियें
  16. लोक का ही नहीं, परलोक का भी ध्यान रहे
  17. अध्यात्म और उसकी महान् उपलब्धि
  18. आध्यात्मिक लक्ष्य और उसकी प्राप्ति
  19. आत्म-शोधन अध्यात्म का श्रीगणेश
  20. आत्मोत्कर्ष अध्यात्म की मूल प्रेरणा
  21. आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान् शिव
  22. आद्यशक्ति की उपासना से जीवन को सुखी बनाइए !
  23. अध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाए
  24. आध्यात्मिक साधना का चरम लक्ष्य
  25. अपने अतीत को भूलिए नहीं
  26. महान् अतीत को वापस लाने का पुण्य प्रयत्न

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