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आचार्य श्रीराम शर्मा >> मानवी क्षमता असीम अप्रत्याशित

मानवी क्षमता असीम अप्रत्याशित

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4284
आईएसबीएन :00000

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मानवीय क्षमता असीम अप्रत्याशित...

Manveey Kshamta Aseem, Apratyasit

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश


मन में असंख्य सामर्थ्यों का भंडार छुपा हुआ है। मन जीवन है, मन ही सिद्धियों का साधन है, मन ही भगवान् है। मन का पूर्ण विकास ही एक दिन मनुष्य की अन्ततः सिद्धियों, सामर्थ्यों का स्वामी बना देता है। पर उसके लिए गहन संयम, साधना और तपश्चर्या के बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।

जीवन विद्युत् का उद्गम स्रोत्र


अपनी उंगलियों से नापने पर 96 अंगुल के इस मनुष्य शरीर का वैसे तो प्रत्येक अवयव गणितीय आधार पर बना है और अनुशासित है पर जितना रहस्यपूर्ण यंत्र इसका मस्तिष्क है, संसार का कोई भी यंत्र न तो इतना जटिल, रहस्यपूर्ण है न समर्थ। यों साधारणतया देखने में उसके मुख्य कार्य- 1. ज्ञानात्मक, 2. क्रियात्मक और 3. संयोजनात्मक है। पर जब मस्तिष्क के रहस्यों की सूक्ष्मतम जानकारी प्राप्त करते हैं तो पता चलता है कि इन तीनों क्रियाओं को मस्तिष्क में इतना अधिक विकसित किया जा सकता है कि (1) संसार के किसी भी स्थान में बैठे-बैठे संपूर्ण ब्राह्मण के किसी भी स्थान की चींटी से भी छोटी वस्तु का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। (2) कहीं भी बैठे हुए किसी को कोई संदेश भेज सकते हैं, कोई भार वाली वस्तु को उठाकर ला सकते हैं, किसी को मूर्छित कर सकते हैं, मार भी सकते हैं। (3) संसार में जो कुछ भी है, उस पर स्वामित्व और वशीकरण भी कर सकते हैं। अष्ट सिद्धियाँ और नव-निधियाँ वस्तुतः मस्तिष्क के ही चमत्कार हैं, जिन्हें मानसिक एकाग्रता और ध्यान द्वारा भारतीय योगियों ने प्राप्त किया था।

ईसामसीह अपने शिष्यों के साथ यात्रा पर जा रहे थे। मार्ग में वे थक गए, एक स्थान पर उन्होंने अपने एक शिष्य से कहा- ‘‘तुम जाओ सामने जो गाँव दिखाई देता है, उसके अमुक स्थान पर एक गधा चरता मिलेगा, तुम उसे सवारी के लिए ले आना।’’ शिष्य गया और उसे ले आया। लोग आश्चर्यचकित थे कि ईसामसीह की इस दिव्य दृष्टि का रहस्य क्या है ? पर यह रहस्य व्यक्ति के मस्तिष्क में विद्यमान है, बशर्ते कि हम भी उसे जागृत कर पाएँ।

जिन शक्तियों और सामर्थ्यों का ज्ञान हमारे भारतीय ऋषियों ने आज से करोड़ों वर्ष पूर्व बिना किसी यंत्र के प्राप्त किया था, आज विज्ञान और शरीर रचना शास्त्र (बायोलॉजी) द्वारा उसे प्रामाणित किया जाना यह बतलाता है कि हमारी योग-साधनाएँ, जप और ध्यान की प्रणालियाँ समय का अपव्यय नहीं वरन् विश्व के यथार्थ को जानने की एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक प्रणाली है।

मस्तिष्क नियंत्रण प्रयोगों द्वारा डॉ. जोजे डेलगाडो ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि मस्तिष्क के दस अरब न्यूरोन्स के विस्तृत अध्ययन और नियंत्रण से न केवल प्राण-धारी की भूख-प्यास, काम-वासना आदि पर नियंत्रण प्राप्त किया जा सकना वरन् किसी के मन की बात जान लेना, अज्ञात रूप से कोई बिना तार के तार की तरह संदेश और प्रेरणाएँ भेजकर कोई भी कार्य करा लेना भी संभव है। न्यूरोन मस्तिष्क से शरीर और शरीर से मस्तिष्क में संदेश लाने, ले जाने वाले बहुत सूक्ष्म कोशों (सेल्स) को कहते हैं, इनमें से बहुत पतले श्वेत धागे से निकले होते हैं, इन धागों से ही इन कोशों का परस्पर संबंध और मस्तिष्क में जल-सा बिछा हुआ है। यह कोश जहाँ शरीर के अंगों से संबंध रखते हैं, वहाँ उन्हें ऊर्ध्वमुखी बना लेने से प्रत्येक कोशाणु सृष्टि के दस अरब नक्षत्रों के प्रतिनिधि का काम कर सकते हैं, इस प्रकार मस्तिष्क को ग्रह-नक्षत्रों का एक जगमगाता हुआ यंत्र कह सकते हैं।

डॉ. डेलगाडो ने अपने कथन को प्रमाणित करने के लिए कई सार्वजनिक प्रयोग करके भी दिखाए। अली नामक एक बंदर को केला खाने के लिए दिया गया। जब वह केला खा रहा था, तब डॉ. डेलगाडो ने ‘इलेक्ट्रो-एन्सीफैलोग्राफ’ के द्वारा बंदर के मस्तिष्क को संदेश दिया कि केला खाने की अपेक्षा भूखा रहना चाहिए तो बंदर ने भूखा होते हुए भी केला फेंक दिया। ‘इलेक्ट्रो-एन्सीफैलोग्राफ’ एक ऐसा यंत्र है, जिसमें विभिन्न क्रियाओं के समय मस्तिष्क में उठने वाली भाव-तरंगों को अंकित कर लिया गया है। किसी भी प्रकार की भाव-तरंगों को विद्युत् शक्ति द्वारा तीव्र कर देते हैं तो मस्तिष्क के शेष सब भाव दब जाते हैं और वह केवल एक ही भाव तीव्र हो उठने से मस्तिष्क केवल वही काम करने लगता है।

डॉ. डेलगाडो ने इस बात को एक अत्यन्त खतरनाक प्रयोग द्वारा भी सिद्ध करके दिखाया। एक दिन उन्होंने इस प्रयोग की सार्वजनिक घोषणा कर दी। हजारों लोग एकत्रित हुए। सिर पर इलेक्ट्रोड जड़े हुए दो खूँखार साँड़ लाए गए। इलेक्ट्रोड एक प्रकार का एरियल है, जो रेडियों ट्रांसमीटर द्वारा छोड़ी गई तरंगों को पकड़ लेता है। जब दोनों साँड़ मैदान में आये तो उस समय की भयंकरता देखते ही बनती थी, लगता था दोनों साँड़ डेलगाडो का कचूमर निकाल देंगे, पर वे जैसे ही डेलगाडो के पास पहुँचे, उन्होंने अपने यंत्र से संदेश भेजा कि युद्ध करने की अपेक्षा शांत रहना अच्छा है तो बस फुँसकारते हुए दोनों साड़ ऐसे प्रेम से खड़े हो गये, जैसे दो बकरियाँ खड़ी हों। उन्होंने कई ऐसे प्रयोग करके रोगियों को भी अच्छा किया।

 सामान्य व्यक्ति के मस्तिष्क में 20 वॉट विद्युत् शक्ति सदैव संचालित होती रहती है, पर यदि किसी प्रविधि (प्रोसेस) से प्रत्येक न्यूरोन को एक सजग किया जा सके तो दस अरब न्यूरोन, दस अरब डायनमो का काम कर सकते हैं, उस गर्मी, उस प्रकाश, उस विद्युत् क्षमता का पाठक अनुमान लगाएँ कितनी अधिक हो सकती होगी ?

विज्ञान की यह जानकारियाँ बहुत ही सीमित हैं। मस्तिष्क संबंधी भारतीय ऋषियों की शोधें इससे कहीं अधिक विकसित और आधुनिक हैं। हमारे यहाँ मस्तिष्क को देव-भूमि कहा गया है और बताया गया है कि मस्तिष्क में जो सहस्र दल कमल हैं, वहाँ इंद्र और सविता विद्यमान हैं। सिर के पीछे के हिस्से में रुद्र और पूषन देवता बताए हैं। इनके कार्यों का विवरण देते हुए शास्त्राकार ने केन्द्र और सविता को चेतन शक्ति कहा है और रुद्र एवं पूषन को अचेतन।

दरअसल वृहत् मस्तिष्क (सेरेब्रम) ही वह स्थान है, जहाँ शरीर के सब भागों से हजारों नस-नाड़ियाँ मिली हैं। यही स्थान शरीर पर नियंत्रण रखता है, जबकि पिछला मस्तिष्क स्मृति शक्ति केन्द्र है। अचेतन कार्यों के लिए यहीं से एक प्रकार के विद्युत् प्रवाह आते रहते हैं।
मनोविज्ञान रसायनों के विशेषज्ञ डॉ. स्किनर का कथन है कि वह दिन दूर नहीं जब इस बीस करोड़ तंत्रिका कोशिकाओं वाले तीन पौंड वजन के अद्भुत रहस्य को बहुत कुछ समझ लिया जायेगा और उस पर रसायनों तथा विद्युत धाराओं के प्रयोग द्वारा आधिपत्य स्थापित किया जा सकेगा। यह सफलता अब तक की समस्त वैज्ञानिक उपलब्धियों से बढ़कर होगी, क्योंकि अन्य सफलताएँ तो केवल मनुष्य के लिए सुविधा-साधन ही प्रस्तुत करती है, पर मस्तिष्क केन्द्र नियंत्रण से तो अपने आपको ही अभीष्ट स्थिति में बदल लेना संभव हो जायेगा, लेकिन इसके बड़े भारी विनाशकारी दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। कोई हिटलर, मुसोलिनी या स्टालिन जैसा अधिनायकवादी प्रकृति का व्यक्ति उन साधनों पर आधिपत्य कर बैठा हो तो वह इसका उपयोग अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए लोगों को गलत दिशा में भी बहका सकता है।

जर्मनी के मस्तिष्क विधा विज्ञानी डॉ. ऐलन जैक वसन और उनके सहयोगी मार्क रोजनवर्ग एक प्रयोग कर रहे हैं कि क्या किसी सुविकसित मस्तिष्क की प्रतिभा को स्वस्थ अविकसित मस्तिष्क में भी विकसित किया जा सकता है ? क्या स्वार्थ मस्तिष्क का लाभ अल्प विकसित मस्तिष्क को भी मिल सकता है।
शिक्षण की प्रणाली पुरानी है। शिक्षित व्यक्ति, अशिक्षित व्यक्ति को पढ़ा-लिखाकर सुयोग्य बनाते हैं और मस्तिष्कीय क्षमता विकसित करते हैं। विद्यालयों में यही होता चला आया है।

चिकित्साशास्त्री ब्राह्मी, आँवला, शतावरि, असगंध, सर्पगंधा आदि औषधियों की सहायता से बुद्धि वृद्धि का उपाय करते हैं। मस्तिष्क रासायनिक तत्त्वों का सार लेकर, इंजेक्शन द्वारा एक जीव से लेकर दूसरे के मस्तिष्क में प्रवेश करने का भी प्रयोग हुआ, पर वह कुछ अधिक न हो सका। अन्य जाति के जीवों का विकसित मस्तिष्क सत्व अन्य जाति के जीवों का शरीर ग्रहण नहीं करता कई बार तो उल्टी प्रतिक्रिया होने से उल्टी हानि होती है। फिर क्या उपाय किया जाए ? उसी जाति के जीव का मस्तिष्क उसी जाति के दूसरे को पहुँचाएँ तो लाभ कुछ नहीं क्योंकि उनकी संरचना प्रायः एक-सी होती है।


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