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राष्ट्रभाषा भारती कक्षा 1

गंगादत्त शर्मा

प्रकाशक : अविचल पब्लिशिंग कंपनी प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :108
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4462
आईएसबीएन :81-7739-017-1

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कक्षा-1 के विद्यार्थियों के लिए हिन्दी भाषी पुस्तक...

Rastra Bhashabharti-1 A Hindi Book BY Gangadutt Sharma

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

राष्ट्रीय शैक्षिक-अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद के नवीनतम पाठयक्रम में प्राथमिक कक्षाओं के लिए भाषा-शिक्षण के उद्देश्यों और कुशलताओं का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया गया है तथा चारों भाषिक कौशलों के अनुरूप क्रियाकलापों का संकेत दिया गया है। साथ ही पाठ्य-सामग्री निर्माण के लिए कुछ विशेष सुझाव दिए गए हैं। राष्ट्रभाषा-भारती नाम से प्रकाशित इस पुस्तक माला के प्रणयन में इन सभी को दिशा-निर्देश मानकर उनका अनुपालन किया गया है। यह पुस्तकमाला एक ओर जहाँ नवीनतम शिक्षण विधियों और सामाजिक अपेक्षाओं के अनुरूप एक उपयोगी तथा प्रभावी उपकरण के रूप में उभरकर आई है, वहीं इसके निर्माण शिक्षार्थियों की रुचि, क्षमता और मानसिक स्तर का भी पूर्ण ध्यान रखा गया है। इसलिए यह मानने का प्रबल आधार है कि ये पुस्तकें शिक्षा-जगत में, विशेषकर भाषा-शिक्षण के क्षेत्र में प्रयुक्त नवीनतम प्रविधियों के अनुरूप निर्मित हुई हैं। जहाँ तक प्रस्तुत पुस्तकमाला में चर्चित विषयों का प्रश्न है, इनमें विविध उपयोगी विषयों से परिचय कराया गया है- शिक्षार्थी के अपने परिवेश, परिवार, मित्र, विद्यालय, समाज से लेकर यात्रा, शौक, आदर्श, चुनौतियाँ, मनोरंजन और मानव मूल्य आदि तक। इन विषयों को कविता, गीत, लेख, विवरण, कहानी, बोध कथा, लोक कथा आदि विधाओं के द्वारा समझाया गया है। रोचकता सभी विधाओं की मूल अभिप्रेरक रही है।

प्रथम भाग के प्रारम्भ में वर्णमाला की आवृत्ति और मात्राओं का अभ्यास इस प्रकार कराया गया है कि जिन विद्यार्थियों ने मात्राएँ न सीखी हों, वे भी अपेक्षित स्तर प्राप्त कर सकें। तदंनतर पाठ्य सामग्री 21 पाठों में विभिक्त है, जिनमें आठ कविताएँ हैं। बालकों की उम्र को ध्यान में रखते हुए पाठों में सरलता और रोचकता का पूर्ण निर्वाह किया गया है। उनकी रुचि के विषयों को खेल-खेल में प्रस्तुत किया गया है। नियमितता, अनुशासन, बड़ों के प्रति सम्मान, पर्यावरण चेतना, पशु-पक्षी प्रेम, सहयोग, आत्मनिर्भरता, दया जैसे मानवीय गुण पाठों के कथ्य के साथ इस प्रकार पिरोए गए हैं कि उनमें कहीं भी उपदेशात्मकता नहीं झलकती। भारत की संस्कृति और महान परंपराओं से भी सहज परिचय कराया गया है।

भाषा का मूल रूप मौखिक ही है, किन्तु कक्षा-शिक्षण के औपचारिक परिवेश में इस पर प्रायः कम बल दिया जाता है, जो ठीक नहीं है। प्रभावशाली मौखिक भाषा हमारे व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक उपादान हैं। यद्यपि व्यवहार के अनुरूप स्थितियों का सृजन करके बालकों को मौखिक भाषा का अभ्यास कराने का प्रमुख दायित्व उनके शिक्षक पर है, फिर भी पुस्तक माला में मौखिक अभ्यासों पर पर्याप्त बल दिया गया है।

संपूर्ण पुस्तकमाला की रणनीति यह रही है कि शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में पूरी कक्षा की भागीदारी हो, मात्र शिक्षक की नहीं। इसलिए पाठांत अभ्यासों में और अभ्यास पुस्तिकाओं में ऐसे प्रश्न रखे गए हैं जो समूह की भागीदारी को सुनिश्चित करें। भाषा के चारों कौशलों-सुनना, बोलना, पढ़ना, लिखना के अभ्यास के लिए शिक्षक की सक्रिय भूमिका अपेक्षित है। इसलिए ये पाठ्य पुस्तकें शिक्षक-शिक्षार्थी दोनों के हाथों में एक साझे उपकरण के समान होंगी। सभी पुस्तकों का प्रणयन शिक्षा जगत के प्रख्यात विशेषज्ञों तथा अनुभवी और कर्मठ शिक्षकों के समन्वित प्रयास से संभव हो सका है। अनेक संस्थाओं और संगठनों के शिक्षाविदों तथा ऐसी अनेक संस्थाओं से जुड़े प्रबुद्ध शिक्षकों ने भी प्रस्तुत सामग्री पर अपनी समालोचनात्मक सम्मति प्रदान की है। हम सब उनके प्रति अभार व्यक्त करते हैं। हम उनके लेखकों और रचनाकारों के भी आभारी हैं जिनकी समर्थ रचनाएँ पाठों में आधार सामग्री के रूप में ली गई हैं और नई पीढ़ी को ज्ञान का प्रकाश देने का माध्यम बनी हैं।

-लेखक और संपादक

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