श्रंगार-विलास >> अनायास रति अनायास रतिमस्तराम मस्त
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यदि रास्ते में ऐसा कुछ हो जाये जो कि तुम्हें हमेशा के लिए याद रह जाये तो...
ॐ श्री मस्तरामाय नमः
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रात के लगभग 9 बज रहे थे जब हम दोनों रेलवे स्टेशन पहुँचे। इस छोटे से शहर के
स्टेशन के प्लेटफार्म पर बहुत अधिक भीड़ नहीं थी। मुझे एक सज्जन से मिलने
दूसरे शहर जाना था, जिसे मैं काफी समय से टाल रहा था। लेकिन अब कोई बहाना
नहीं बाकी बचा तो जाना भी जरूरी हो गया। मैं बड़ी मुश्किल से विजय को यह कह
कर अपने साथ चलने के लिए मना पाया था कि मैं रेलगाड़ी के टी. टी. को कुछ
खिला-पिला कर बर्थ का जुगाड़ कर दूँगा। विजय जानता था कि मैं अचानक यात्रा के
लिए चल पड़ने वाला इंसान हूँ, और अक्सर बिना आरक्षण के चल पड़ता हूँ, इसलिए
उसने मुझसे पहले ही वादा करवा लिया था कि मैं कम से कम उसको तो रेल में सोने
के लिए जगह दिलवा ही दूँगा।
हमारी गाड़ी रात में 10:30 बजे आने वाली थी, परंतु हम स्टेशन समय से काफी
पहले पहुंच गये थे, ताकि वहाँ से चढ़ने वाले टी.टी से मिलकर पहले ही सीट का
इंतजाम कर सकें। लम्बे प्लेटफार्म पर इधर-उधर चक्कर काटते हुए हमें एक के बाद
दो टी.टी. मिले पर दोनों ही कलकत्ता मेल में नहीं जा रहे थे। प्लेटफार्म के
किनारे कुछ कुली दिखे, परंतु मैं ऊहापोह में था कि टी.टी. को पकड़ूँ या कुली
से हिसाब बिठाकर सीट का इंतजाम करवाऊँ। इसी ख्याल से बिना किसी कुली से बात
किए मैं उनकी बातें सुनकर टोह लेता रहा कि कौन सा कुली इनमें से खुर्राट है
जो कि मेरा काम करवा सकेगा। आखिर में बिना उनसे कोई बात किए मैं फिर से एक
बार प्लेटफार्म की ओर मुड़ पड़ा। प्लेटफार्म के दूसरे किनारे पर मुझे रेलवे
अधीक्षक का कमरा दिखा। उसके बगल में ही कुछ टी.टी. भी दिखे। यहाँ अपना कम बन
जाने लायक कुछ संभावना दिखी। कुछ समय आस-पास मंडराने के बाद मैंने एक टी.टी.
से मेल रेलगाड़ी में जाने वाले टी.टी. के विषय में बात की। बात-चीत में पता
लग गया कि अभी मेलगाड़ी का टी.टी. स्टेशन पर नहीं पहुँचा था। टी.टी. लगभग 10
बजे आया होगा। पहले वाले टी.टी. ने मेरी उससे बात करवा दी।
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