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स्वप्न परी का महल

दिनेश चमोला

प्रकाशक : स्वास्तिक प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4495
आईएसबीएन :00000

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फूलों के शहर के उत्तर में एक परी रहती थी- सोनपरी। उसके सोने के पंख व सोने के बाल थे।...

Swapan Pari Ka Mahal A Hindi Book by Dinesh Chamola

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

स्वप्न परी का महल

फूलों के शहर के उत्तर में एक परी रहती थी- सोनपरी। उसके सोने के पंख व सोने के बाल थे। उसका एक लम्बा फूलों का साम्राज्य था। वह बहुत ही दयालु व परोपकारी थी। वह बच्चों से बहुत प्यार करती थी। बच्चे उसे स्वप्न परी कहते। क्योंकि वह प्रायः सभी के स्वप्नों में जाकर उनके दुखों व समस्याओं का समाधान कर आती।

स्वप्न परी को जितने प्रिय बच्चे थे उससे भी कहीं प्रिय थी रोमानी प्रकृति व उसमें खेलते-कूदते जीव-जन्तु, चहचहाते पक्षी । इसलिए उसने महल के एक ओर पानी का सुन्दर चश्मा बनवाया था जिसमें राजहंसों की पक्तियाँ तैरा करतीं तो दूसरी ओर हरी-हरी दूर्वा का फैला मोहक मैदान था।

जिसमें कोमल-कोमल हरिण-शावक खुशी से कुलाँचें भरते रहते। बसन्त ऋतु में पक्षियों का समूह अपने संगीत संसार में डूब जाता तो स्वप्न परी भाव-विभोर हो आनन्दित होने लगती।

स्वप्न परी के महल के कुछ ही दूर एक गांव था- कौशलपुर उसमें एक ब्राह्मण परिवार रहता था। ब्राह्मण बहुत विद्वान एवं ईमानदार था, परन्तु बहुत ही गरीब था।
बहुत समय के बाद उनके घर में एक पुत्र रत्न पैदा हुआ। वह सोने से भी सुन्दर था, इसलिए उन्होंने उसका नाम सोनगर्भ रख दिया। सोनगर्भ अपनी सुन्दरता के लिए पूरे वन प्रान्त में प्रसिद्ध था। उसे घूमना प्रिय था। इसलिए सभी जीव-जन्तुओं को उसकी अच्छी पहचान थी। एक दिन सोनगर्भ के पिता ने सोनपरी की कहानी सुनाई तो उत्सुकता से पूछा -

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