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आयोग - समग्र व्यंग्य 5

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :270
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4584
आईएसबीएन :81-8143-296-7

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समग्र व्यंग्य का पाँचवाँ भाग

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Aayog - Samagra Vyangya 5

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मैं निरंतर हिंदी में बोल रहा और रामलुभाया था कि मेरे प्रश्नों के उत्तर अंग्रेजी में दिए जा रहा था। मैं जानता था कि हम भारत की संसद में नहीं बैठे थे जहाँ संविधान के अनुसार नियमतः प्रश्न का उत्तर उसी भाषा में दिया जाना चाहिए, जिसमें प्रश्न पूछा गया हो। हम अपने घर में बैठे थे,फिर भी कोई कारण नहीं था कि हम अंग्रेजी बोलते..। रामलुभाया की ज्यादती कुछ देर तो चलती रही। किन्तु जब मैं सहन नहीं कर पाया तो बोला, क्या बात है रामलुभाया, तुम मेरे प्रश्नों के उत्तर एक विदेशी भाषा में दिए जा रहे हो, जबकि हम दोनों ही भारतीय है। रामलुभाया को मेरी बात पसंद नहीं आई। जाने क्या बात है कि भारत के इस अंग्रेजीभाषी वर्ग को जब भी याद दिलाया जाता है कि वह भारतीय है, उन्हें अच्छा नहीं लगता। मैं यह भी जानता था कि यदि मैं अधिक दबाव डालूंगा तो वह कह देगा कि उसे हिन्दी नहीं आती। जो लोग यह कहते हैं कि उन्हें हिन्दी नहीं आती,वे यह मानते है कि हिन्दी न जानना दोष नहीं है, इसीलिए उन्हें हिन्दी सीखने का प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं हैं, किन्तु यदि मुझे अंग्रेजी नहीं आती, तो वह मेरा दोष हैं मुझे अंग्रजी जानने का प्रयत्न करना चाहिए। रामलुभाया कुछ देर मेरी ओर देखता रहा फिर बोला, मेरे लिए हिन्दी भी एक विदेशी भाषा है। मैं स्तब्ध रह गया। वह व्यक्ति इस देश की राष्ट्रभाषा को एक विदेशी भाषा कह रहा था। इसका क्या है, यह तो कल दिल्ली को भी विदेश कह देगा, कश्मीर का तो कहना ही क्या।

 

वह कहाँ है ?

1

बुश ने अपनी जेब में से निकालकर, मुशर्रफ की फैली हुई हथेली पर डॉलरों का ढेर लगा दिया।
‘‘बताओ ! ओसामा कहाँ है ? मेरा तात्पर्य है ओसामा बिन लादेन, जो अलकायदा संगठन का मुखिया है ?’’
‘‘शायद वह अफगानिस्तान में ही कहीं छिप गया है।’’
‘‘इतना तो मैं भी जानता हूँ’’ बुश रुष्ट हुआ, ‘‘तुमको इस सूचना के लिए इतने डॉलर नहीं दिए हैं।’’
‘‘बता रहा हूँ।’’ मुशर्रफ तनिक भी नहीं डरा, ‘‘तुम पूरी बात तो सुनते नहीं हो, बस बीच में ही बरस पड़ते हो।’’
‘‘बताओ ।’’ बुश कुछ शांत होकर बोला।
‘‘वह कंधार के पास होगा। कंधार में तालिबान का गढ़ है। वहाँ वह स्वयं को सुरक्षित समझता है। गढ़ समझते हो न ?’’
‘‘गढ़ पहले किले को कहते थे।’’ बुश ने कहा, ‘‘अब तो जमावड़े को कहते हैं। और किला हो भी तो क्या, हमें कौन दरवाज़े में से होकर जाना है। ऊपर से बम ही तो बरसाने हैं।’’
‘‘ठीक समझे। कंधार में इस समय सब से अधिक संख्या में तालिबान सैनिक हैं।’’
‘‘तो कंधार पर बमबारी करूँ ?’’ बुश ने पूछा, ‘‘वह मिल जाएगा।’’
‘‘बमबारी से कभी कोई मिला है। उससे तो लोग मर जाते हैं, पर अभी रुक जाओ।’’
‘‘क्यों ?’’

‘रमज़ान का महीना है। मुसलमानों के लिए यह बहुत पवित्र महीना है। इस में अफगानिस्तान पर बम मारोगे तो सारे संसार के मुसलमान तुम्हारे विरुद्ध हो जाएँगे।’’
मुशर्रफ ने कहा, ‘‘और मुसलमान जिसके विरुद्ध हो जाते हैं, अल्लाह भी उसके विरुद्ध हो जाता है।’’
‘‘देखो !’’ बुश ने अपनी तर्जनी से उसे धमकाया, ‘‘तुम उतनी ही चालाकी किया करो, जितनी मुझे बुरी न लगे। जहाँ दो शत्रु लड़ रहे होते हैं, वहाँ यह नहीं देखा जाता कि कब किसका पर्व है, कौन-सा दिन पवित्र है, कौन कब आराम कर रहा है, कौन कब खाना खा रहा है। और कौन कब टॉयलेट में बैठा है।’’
‘‘अरे भाई ! तुम मुसलमानों के विरोध से नहीं डरते ? तुम क्या मुसलमानों के विरुद्ध लड़ रहे हो ?’’
‘‘नहीं ! हम आतंकवाद के विरुद्ध लड़ रहे हैं। अब तो मैं उनकी इफ्तार पार्टी में भी हो आया हूँ।’’
‘‘तो फिर मुसलमानों को रुष्ट मत करो, नहीं तो कयामत आ जाएगी।’’
‘रमज़ान के दिनों में जब मुसलमान भगवान् को याद करने के स्थान पर आपस में लड़ते रहते हैं तब ? अफगानिस्तान में भी तालिबान ने जितना हिंदुओं को सताया और मारा है, उससे अधिक संख्या में तो उन्होंने मुसलमानों को ही सताया और मारा है।’’

‘‘असल में रमज़ान में जो मुसलमान मरता है, उसे शहीद माना जाता है। वह सीधा जन्नत में जाता है।’’ मुशर्रफ बोला।
‘‘इस तर्क से तो तुम सारे मुसलमानों को रमज़ान में मार डालोगे। मैं यह नहीं होने दूँगा।’’ बुश ने कहा, ‘‘जो मुसलमान रमज़ान के महीने में मरता है, वह कब्र में नहीं जाता, जन्नत में जाता है ?’’
‘‘हाँ ! काफ़िरों के हाथ से मरे तो कब्र में जाता है, मोमिनों के हाथों मारा जाए तो जन्नत में जाता है।’’
‘‘उल्टी बात कर रहे हो।’’ बुश ने उसे डाँटा, ‘‘स्वर्ग में तुम्हारा राज्य नहीं है जनरल ! कि जिसे चाहो उसे फ्री पास दे दो। आसमान पर ईसा मसीह की बादशाहत है। तुम्हारा शासन कब्रों तक ही है। अब तुम तालिबान के लिए कब्रें खोदो, जो अपने लिए ही खोदते रहे हो।’’
‘‘तुम समझते क्यों नहीं ?’’ मुशर्रफ बोला, ‘‘तालिबान को अपनी तैयारी करने का कुछ समय दोगे या नहीं। इतना समय तो दो कि मैं उन्हें हथियार पहुँचा सकूँ। उनकी सहायता के लिए पाकिस्तानी जनरल भेज सकूं। मुल्ला उमर को छिपा सकूं। बाकी मुल्ला अपनी सुरक्षा के लिए, अपने परिवारों की सुरक्षा के लिए कुछ प्रबंध कर सकें। रमज़ान के महीने में भूखे रहकर वे कैसे लड़ेंगे। कब्रें खोदने के लिए भी कुछ खाया-पिया होना चाहिए।’’
‘‘हम मुल्ला उमर को भी ढूंढ़ रहे हैं। वह कहाँ है ?’’ बुश ने जैसे मुशर्रफ की बात सुनी ही नहीं थी।
‘‘वह भी कंधार में ही छुपा होगा।’’
‘‘झूठ बोल रहे हो तुम।’’

‘‘मैंने कब कहा कि मैं सच बोल रहा हूँ।’’ मुशर्रफ हँसा, ‘‘हमारी तुम्हारी मित्रता का समान आधार ही यही है कि हम दोनों सच नहीं बोलते, हमारा कोई सिद्धांत नहीं है; और हम दोनों ही अव्वल दर्जे के स्वार्थी हैं।’’
‘‘मैं कब झूठ बोला ?’’ बुश तड़पकर बोला, ‘‘अमरीकी झूठ नहीं बोलते।’’
‘‘कुंदूज़ में जब तालिबान घिर गए थे, मैंने तुमसे कहा था न कि मुझे वहाँ से अपने सैनिक निकाल लेने दो। तुम्हारी अनुमति और सहमति से ही तो मैंने रात को विमान भेजकर वहाँ से अपने सिपाही और अफसर निकाले थे।’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘तब संसार भर ने तुमसे कहा था कि पाकिस्तान अपने सैनिक निकाल रहा है। तुम सफेद झूठ बोल रहे थे कि तुम्हें ऐसी कोई खबर नहीं है। जब ऐसा समय आता है तो कैसे बेखबर हो जाते हो तुम।’’
‘‘कहा होगा। तुम्हारे ही भले के लिए कहा था। मित्र के हित में झूठ बोलना अनुचित नहीं माना जाता।’’ बुश लापरवाही से बोला, ‘‘हम पाकिस्तानी सेना को कमजोर नहीं करना चाहते। हम तो ओसामा को खोज रहे हैं। हमें सूचना मिली है कि ओसामा और उमर दोनों कराची में छिपे हैं।’’
‘‘किसने सूचना दी है। उसका नाम बताओ। अभी टाँगता हूँ उसे सूली पर।’’
‘‘तुम क्या सूली पर टाँगोगे। तुम तत्काल कह दोगे कि उस नाम का कोई आदमी पाकिस्तान में है ही नहीं। चलो छोड़ो उसे।’’ बुश ने कहा, ‘‘हमें सूचना मिली है कि कराची के बाजार में एक बुर्केवाली को को दूसरी बुर्केवाली ने कहा, ‘ओसामा सुन।’ पहली बुर्केवाली ने तड़पकर कहा, ‘तूने मुझे कैसे पहचान लिया बदज़ात !’’
दूसरी बुर्केवाली ने कहा, ‘घबरा मत। मैं मुल्ला उमर हूँ।’ ’’

यह सूचना नहीं चुटकुला है।’’ मुशर्रफ चिढ़कर बोला, ‘‘ये भारतीय लोग हमारा कुछ बिगाड़ नहीं सकते तो हमारे विरुद्ध ऐसे चुटकुले बनाने लगते हैं। इसे शत्रु की ओर से उड़ाई हुई अफवाह माना जाना चाहिए।’’
‘‘हमने तो कुंदूज से पाकिस्तानी सिपाहियों को सुरक्षित निकालने की सूचना को भी अफवाह ही माना था। इसे भी मान लेंगे। पर पहले बताओ कि ओसामा और उमर कहाँ हैं।’’
‘‘हम तुम्हारे मित्र हैं। ओसामा के नहीं। हम कैसे जान सकते हैं कि वे कहाँ हैं। तुम्हें सूचना थी तो तुमने कराची में दोनों बुर्केवालियों को पकड़ क्यों नहीं लिया ?’’
‘‘अरे जब तक हम सावधान होते, वे दोनों बुर्केवालियाँ और सैकड़ों बुर्केवालियों में मिल गईं, जैसे हिंदी फिल्मों में अपना बचाव करने के लिए नायक नायिका नाचते गाते बरातियों में मिल जाते हैं। बताओ वह कहाँ है ?’’
नहीं जानता। पूछो कि बुश कहाँ है तो अभी बता दूँ।’’
‘‘बुश कहाँ है, मैं भी जानता हूँ। उसकी मुझे खोज भी नहीं है।’’ बुश ने कहा, ‘‘तुमको हमने मित्र ही इसीलिए बनाया है, क्योंकि तुम जानते हो कि ओसामा और उमर कहाँ हैं।’’ बुश ने कहा, ‘‘जल्दी बताओ।’’
‘‘पहले वादा करो कि रमज़ान के महीने में बमबारी बंद रहेगी।’’
‘‘नहीं ! यह नहीं हो सकता।’’ बुश ने कहा, ‘‘इससे तो मेरी सेनाएँ मुझे ही खा जाएँगी। चलो बमबारी कहीं ऐसे स्थान पर करेंगे, जहाँ कोई न रहता हो।’’

‘‘नहीं ओसामा पहले ही कह रहा था कि तुम सैनिकों को कम मारते हो, निहत्थे नागरिकों को अधिक मारते हो।’’
‘‘तो ओसामा ने हमारे ट्रेड सेंटर में जिन हजारों लोगों को मारा, वे फौजी वर्दी पहने लाम पर जा रहे थे क्या ? उसने उन निहत्थे असैनिक नागरिकों को नहीं मारा ?’’
‘‘वह कहता है कि वे निहत्थे चाहे रहे हों किंतु वे अमरीकी सिस्टम का अंग थे। अमरीकी फौजी मशीन के ही पुर्ज़े थे। उन्हें मरना ही था। उन्हें मारा ही जाना था। यह सवाब का काम है। वह जेहाद कर रहा है न।’’
‘‘उसका क्या है,’’ बुश ने नाराज़ होकर कहा, ‘‘स्वयं तो गुफाओं में सुरक्षित छुपा बैठा रहता है और जीवन की उमंगों और ऊर्जा से भरे पूरे नवयुवकों को पट्टी पढ़ाकर आत्मघाती हमलों में मरने के लिए भेजता है। किसे मरना है, और किसे नहीं मरना है, इसका निर्णय करने वाला वह कौन होता है। वह भगवान् है क्या ? सवाब और जेहाद-शब्दों के खेल से वह संसार को मूर्ख बना रहा है। अमरीका उसकी बातों में नहीं आ सकता।’’
‘‘हमारे लिए तो वह भगवान् ही है, उसने हमें अफगानिस्तान की सल्तनत बख़्शी है। तुम हमें भारत दे दो, हम तुम्हें अफगानिस्तान दे देंगे। वह दाता है। करोड़ों डॉलर लुटाता रहता है।’’
‘‘और हम क्या हैं ?’’ बुश का चेहरा क्रोध से तमतमा आया, ‘‘हमने रूस के विरोध के नाम पर वे सारे हथियार न दिए होते तो ओसामा तुम्हें क्या दे देता। खाते हमारा हो और गुणगान उसका करते हो। तुम्हारे जैसा कृतघ्न मैंने दूसरा नहीं देखा।’’
‘‘देखा ! हम मित्र हैं और मित्रता में इस प्रकार नाराज़ नहीं होते। मित्रता में कुछ त्याग करना पड़ता है। वचन दो कि तुम रमज़ान के महीने में अफगानिस्तान पर बमबारी नहीं करोगे। मैंने उमर को वचन दिया था कि रमज़ान के महीने तक मैं अमरीका को रोके रखूँगा।’’
‘‘बमबारी तो नहीं रुक सकती।’’ बुश बोला, ‘‘अफगानिस्तान पर नहीं करेंगे तो पाकिस्तान पर करेंगे। बोलो क्या कहते हो।’’
‘‘क्यों ?’’

‘‘अरे यह कहकर कि ओसामा वहाँ छिपा हो सकता है, हम कहीं भी बमबारी कर सकते हैं।’’
‘तो भारत पर बम बरसाओ।’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘कहो कि ओसामा वहाँ छिपा हुआ है।’’
‘‘वह भी हो सकता है।’’ बुश ने मन ही मन कोई योजना बनाते हुए कहा, ‘‘तुम ओसामा को भारत में धकेल दो। उसे कहो कि वह अजमेर शरीफ की यात्रा पर चला जाए। हम सारा भारत तहस नहस कर डालेंगे।’’
‘‘हो तो सकता है।’’ मुशर्रफ भी गंभीर हो गया, ‘‘पर भारत ओसामा को पकड़कर किसी के हाथ भी ढाई करोड़ डॉलरों में बेच देगा। वह दोस्तम के हाथ लग गया तो दोस्तम उसे बीचोंबीच से चीरकर पेड़ पर लटका देगा।’’
‘‘रमज़ान के महीने में एक मुसलमान दूसरे मुसलमान को मार देगा ?’’
‘‘इन अफगानों का कोई भरोसा नहीं है।’’
‘‘भरोसा तो तुम्हारा भी कोई नहीं है।’’ बुश के होठ वक्र हो उठे।
‘‘छोड़ो न यार। तुम तो हर बात को हमारी ही ओर मोड़ देते हो।’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘अच्छा ! रमज़ान में बमबारी बंद करो, हम मुल्ला ज़ईफ को बाँधकर तुम्हारे हवाले कर देते हैं।’’
‘‘वह कौन है ?’’
‘‘पाकिस्तान में तालिबानों का राजदूत।’’
‘‘जिनका राज्य ही नहीं है, उनका राजदूत।’’ बुश बोला, ‘‘उसे तुमने बचा रखा है और वह प्रेस कान्फ्रेंस करता रहता है। उसके लिए वह तो पिटेगा ही, तुम भी दंड पाओगे। उसे जेल में डालो और बताओ कहाँ है ओसामा और कहाँ है मुल्ला उमर ?’’
‘‘वहीं कहीं अफगानिस्तान में छिपे हैं। हमारा एक पत्रकार ओसामा से मिल कर आया है।’’
‘‘बताओ ! कहाँ है ? नहीं तो रमज़ान में बम बरसते रहेंगे।’’
‘‘बरसते रहें। तुम्हें अपने बम बरबाद करने का शौक है तो बरसाते रहो। आदमी तो एक नहीं मरने वाला। अपने बमों से रेत उछालते रहो और रेगिस्तान में गढ़े बनाते रहो।’’
‘‘हम बमबारी बंद कैसे कर सकते हैं। हमें भी तो दुनिया को मुँह दिखाना है।’’

2

 

‘‘तुम कैसे मुसलमान हो, उन अमरीकियों के मित्र बनकर हमें मरवा रहे हो ?’’ ओसामा ने मुशर्रफ को डाँटा।
गुफाओं में छिपे ओसामा को मुशर्रफ सूचना देने आया था कि अमरीका रमज़ान में बमबारी नहीं रोकेगा, इसलिए रमज़ान की प्रतीक्षा बेकार है, वह अभी ही कहीं और के लिए निकल ले। पर ओसामा ने उसे डाँट दिया था।
‘‘देखो !’’ मुशर्रफ कुछ रुष्ट होकर बोला, ‘‘एक बार इशारा कर दूँ कि तुम कहाँ हो तो ढाई करोड़ डॉलर मेरी जेब में और अरबों डॉलरों के हथियार पाकिस्तान की सेना को मिल जाएँगे। मैं उनका लालच नहीं कर रहा। तुम्हारी मित्रता निभा रहा हूँ और तुम भी मुझे ही सुना रहे हो।’’
ओसामा ने अपने साथी को संकेत किया। उसने संदूक खोल कर ढाई करोड़ डॉलर गिन दिए।
‘‘यह लो, जो तुम्हें अमरीकी काफिरों से मिलना है, वह मैं ही दिए देता हूँ।’’
ओसामा ने कहा, ‘‘अब बताओ, क्या करना है।’’
‘‘तुम अपने साथियों समेत निकल लो।’’
‘‘पर जाऊँ कहाँ ? सारे रास्ते तो बंद हैं।’’

‘‘कबाइली इलाके में से होकर पाकिस्तान निकल जाओ। वहाँ से पाकिस्तानी फौज की गाड़ियों और जहाज़ों में बैठकर दुनिया में जहाँ जाना चाहो, चले जाओ। कहो तो तुम्हें अमरीका या कनाडा ही भिजवा दूँ। वहाँ ठाट से बैठे रहना। दाढ़ी मुड़ा देना और नाम बदल लेना। मैं बुश को तुम्हारे होने का ऐसे-ऐसे स्थानों का पता दूँगा कि दुनिया के सारे बम समाप्त हो जाएँगे और तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं होगा।’’
ओसामा ने उसे संदेह की दृष्टि से देखा : यह उसे मूर्ख तो नहीं बना रहा। कहीं उसे अपने जहाज़ में बैठाकर सीधा अमरीकी जेल में ही न उतार दे।
‘‘पर पाकिस्तान से कहाँ जाऊँगा ?’’
‘‘सऊदी अरब चले जाना। सोमालिया चले जाना। कहीं न जा सको तो वापस अफगानिस्तान आ जाना।’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘पर इस वक्त यह गुफा खाली कर दो।’’
‘‘यह तुम्हारा सरकारी बंगला है कि हुक्म दे रहे हो कि इसे खाली कर दूँ।’’ ओसामा ने कहा, ‘‘तुम बमबारी रुकवाओ और उनसे कहो कि हमसे जमीनी लड़ाई लड़ लें। अल्लाह की क़सम सारी अमरीकी फौज को तबाह कर दूँगा, जैसे रूसी फौज को खदेड़ बाहर किया था।’’

‘‘अब कहोगे कि मैं अमरीकियों से कहूँ कि वे तुमसे बंदूकों से नहीं, तलवारों से लड़ें।’’ मुशर्रफ बोला, ‘‘और ज्यादा ऐंठो मत। रूसियों से हमारे सिपाही और अमरीकी हथियार लड़े थे। हमारे सिपाही और अमरीकी साज़ोसामान न होता तो तुम क्या कर लेते।’’
‘‘पर तुम हमें इन गुफाओं से क्यों निकालना चाहते हो ? यहाँ हमें कोई तकलीफ नहीं है।’’ ओसामा ने दीन होकर कहा।
‘‘मेरे मन में एक योजना है। तुम अफगानिस्तान के बाहर कहीं भी एक मदरसा खोल कर बैठ जाओ। मैं अमरीकियों को तोड़ फोड़ में लगाए रखूँगा। उन्हें तुम्हारी हवा तक नहीं मिलेगी।’’
‘‘तुम्हारी दोस्ती मेरी समझ में नहीं आती। जहाँ अमरीकी बम पड़ते हैं, वहाँ पाकिस्तानी सिपाही होते ही नहीं और तालिबान भाग जाते हैं। बेचारे अरब ही मारे जाते हैं।’’
‘‘देखो पाकिस्तानी अपनी नौकरी कर रहे हैं। तालिबान सिर्फ निहत्थे स्त्री पुरुषों पर अत्याचार कर रहे हैं। वैसे वे अपने देश में बैठे हैं। शहीद होने का शौक तो तुम अरबों को ही चर्राया था। कायदा छोड़कर अलकायदा हो गए, इसीलिए अरब शहीद हो रहे हैं। अब तुम यहाँ से खिसक लो। ऐसा न हो कि हमें यहीं तुम्हारा फातिहा पढ़ना पड़े।’’

3

 

बुश ने मुशर्रफ से पूछा, ‘‘कुछ पता लगाया-कहाँ है ओसामा ?’’
‘‘हाँ ! कुछ खबर तो लगी है कि वह तोड़ा फोड़ा की पहाड़ी गुफाओं में छिपा बैठा है।’’
‘‘यह तोड़ा फोड़ा कहाँ है ?’’
‘‘अरे तुम तोरा बोरा की पहाड़ियाँ नहीं जानते। हमारे पाकिस्तान की सीमा से ही तो लगती हैं।’’
‘‘ओह !’’ बुश ने कहा, ‘‘वे गुफाएँ संख्या में बहुत हैं। बहुत लंबी हैं। पहाड़ी पत्थरों के नीचे हैं। वहाँ ओसामा को खोजना बहुत मुश्किल है।’’
‘‘तो क्या हो गया ?’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘तुम्हारे इतने भारी भारी बम किस दिन काम आएँगे। उनको छाती पर रखकर साथ ले जाओगे ? जमकर बरसाओ। इतनी बमबारी करो कि तोरा बोरा का नाम तोड़ा फोड़ा हो जाए।’’
‘‘पक्का है न ! कि वह वहीं है ?’’
‘‘हमारी सूचनाओं के अनुसार दोनों वही हैं-ओसामा भी और मुल्ला उमर भी।’’
‘‘ठीक है।’’
अमरीका ने अपने साथियों के साथ मिलकर तोरा बोरा की पहाड़ियों को घेर लिया। दिन-रात बम बरसाए और जमीन पर उत्तरी गठबंधन के सैनिक लड़ते रहे। पर ओसामा नहीं मिला।
‘‘कहाँ गया ?’’ बुश ने पूछा।
‘‘यहाँ नहीं है।’’ उत्तरी गठबंधन ने कहा, ‘‘हो सकता है पाकिस्तान में हो या कबाइली क्षेत्र में छुपा हो, पर यहाँ नहीं है।’’
अमरीका को संतोष नहीं हुआ तो बुश ने अपने सैनिक वहाँ लगा दिए, ‘‘एक-एक पत्थर उठाकर देखो और एक-एक गुफा में झाँककर नहीं, घुसकर देखो।’’
बुश ने मुशर्रफ से पूछा, ‘‘ओसामा कहाँ है ?’’
‘‘मेरा विचार है कि तुम्हारी बमबारी के कारण वह वहीं कहीं दबकर मर गया है।’’
‘‘इसका प्रमाण कहाँ है ? उसका शव मिल गया क्या ?’’
‘‘मैंने तो अपना अनुमान बताया है।’’ मुशर्रफ ने कहा।
मैं प्रमाण माँग रहा हूँ। तुम्हारा अनुमान नहीं।’’ बुश नाराज हो गया, ‘‘तुम्हारे कहने पर मैंनें अपना इतना सामान वहाँ बरबाद किया है।’’
‘‘अच्छा ! मैं प्रमाण भी लाकर दूँगा।’’

4

 

अगले दिन मुशर्रफ एक अरब के हाथ-पैर बाँध कर ले आया।
‘‘यह कौन है ?’’ बुश ने पूछा।
‘‘यह अलकायदा का सैनिक है। हमने इसे भागते हुए गिरफ्तार किया है।’’
‘‘तो इसे मेरे पास क्यों लाए हो। डाल दो किसी कुएँ खाई में।’’
‘‘यह साधारण आदमी नहीं है।’’ मुशर्रफ ने उसकी उपाधियाँ गिनाई, ‘‘यह ओसामा के अंगरक्षकों में से एक है। यह उस समय भी ओसामा के साथ था, जब उसकी मौत हुई।’’
‘‘झूठ बोल रहे हो तुम।’’ बुश का मुँह क्रोध से लाल हो गया, ‘‘अगर बमबारी में ओसामा दबकर मर गया तो यह यहाँ कैसे खड़ा है। इसे भी वहीं दफन हो जाना चाहिए था।’’
अरब ने मुशर्रफ की ओर देखा।
‘‘बात यह है कि ओसामा बमबारी में नहीं मरा है।’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘वह अपने फेफड़ों के रोग से मरा है। बाहर इतनी बमबारी हो रही थी कि भारत से दवाएँ आ नहीं सकीं। न ओसामा को डॉक्टर के पास ले जाया जा सका, न डॉक्टर को भीतर लाया जा सका। वह दवा के न मिलने से अपने रोग से ही मर गया। तुम उसके कत्ल के गुनहगार नहीं हो, तुम्हें अल्लाह को कोई जवाब नहीं देना पड़ेगा; पर अगर तुम यह बमबारी न करते तो हम उसे पकड़ सकते थे और तुमसे ढाई करोड़ डॉलर ले सकते थे। हाय रे ढाई करोड़...।’’
बुश ने अरब की ओर देखा।
‘‘हाँ हुजूर ! जनरल साहब ठीक कह रहे हैं।’’ वह बोला, ‘‘शेख ओसामा बिन लादेन अपनी बीमारी से मर गए। मैं वहीं था। उन्हें चुपचाप वहीं दफना दिया गया। मैं तो उनकी नमाज़े जनाज़ा में भी शरीक हुआ था। क्या करते, किसी को खबर कर नहीं सकते थे। बाहर बम बरस रहे थे।’’

‘‘अरे जब वह मर ही गया था तो उसे हमें सौंप कर ढाई करोड़ तो ले लेते।’’ बुश बोला, ‘‘एनीवे, तुम मुझे वह जगह दिखा सकते हो, जहाँ वह दफनाया गया है। मैं वहाँ खुदाई करवाकर उसकी लाश निकालकर अपनी तसल्ली करना चाहता हूँ।’’
‘‘आपको मेरे चेहरे की मुर्दनी से विश्वास नहीं होता ? कोई भी समझ सकता है कि मैं गमी में हूँ।’’
‘‘नहीं मुझे विश्वास नहीं होता। मैं किसी अरब का विश्वास नहीं करता। विश्वास तो मैं पाकिस्तान का भी नहीं करता, पर काम तो चलाना है न।’’
अरब ने फिर मुशर्रफ की ओर देखा।
‘‘बात यह है प्रेसिडेंट साहब !’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘कि आपने बमबारी करके उन सारी गुफाओं को इस प्रकार तहस नहस कर दिया है कि अब इसके लिए तो क्या मेरे लिए भी उन गुफाओं को पहचानना मुश्किल है। और ओसामा खुद कब्र से उठकर आएगा नहीं।’’
‘‘भागो यहाँ से।’’ बुश ने अरब को घूँसा दिखाया, ‘‘तुम भी झूठे हो। यह तो है ही।’’
अरब भाग गया। बुश ने मुशर्रफ की ओर देखा, ‘‘ओसामा कहाँ है ?’’
‘‘देखो ! तुमने तोरा बोरा की पहाड़ियों को चकनाचूर कर दिया है। उसकी एक-एक गुफा को छान मारा है। वह अब भी तुमको नहीं मिला है। अब भी तुम मुझसे पूछोगे तो मैं तुम्हें कोई न कोई जगह तो बताता ही रहूँगा। कह दूँ कि वह चेचन्या में है, तो चलेगा ?’’
‘‘तो मैं क्या करूँ ?’’
‘‘अच्छा है कि उसे भूल जाओ। लोगों को अफगानिस्तान के निर्माण में उलझाओ, और इस बहाने वहाँ राज करो। अरे ऐश करो और खुश रहो।’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘क्या रखा है उन दो मुल्लाओं के चेहरों में कि उन्हें देखे बिना तुम्हारा जीना हराम है। देखना ही है तो कोई हसीन चेहरा देखो।’’’
‘‘मुझे बिल वाले शौक नहीं हैं।’’ बुश ने अपना सिर झुका लिया।

5

 

‘‘यह तुमने क्या किया ?’’ ओसामा ने पूछा, ‘‘तोरा बोरा की सारी पहाड़ियों को तोड़ा फोड़ा कर दिया ?’’
‘‘हाँ ! अमरीकियों को कुछ काम तो देना था।’’
‘‘क्या मतलब ?’’
‘‘तुमने सुना होगा कि एक आदमी ने एक जिन को अपने कब्जे में कर लिया। जिन ने कहा कि वैसे तो वह अपने आक़ा का हर हुक्म बजा लाएगा, पर जैसे ही वह खाली होगा, वह अपने आक़ा को खा जाएगा। इसलिए उसका आक़ा उसे लगातार कोई न कोई काम बताता रहे, ताकि जिन को फुर्सत न मिले।’’
‘‘मुझे जिन भूतों की कहानियाँ क्यों सुना रहे हो ?’’
‘‘अरे यह बुश भी वैसा ही जिन है। हर समय तुम्हें खोजने के लिए जगह पूछता रहता है। उस जिन के आक़ा ने एक तरकीब सोची। उसने जमीन में एक खंभा गाड़ दिया और कहा कि जिन को जब कोई काम न हो, तब वह उस खंभे पर चढ़ता और उतरता रहे। मैंने बुश को तोरा-बोरा की पहाड़ियों के रूप में एक खंभा दे दिया है। ’’
‘‘पर उससे तो हमारी सारी गुफाएँ बर्बाद हो गईं।’’ ओसामा ने सिर पकड़ लिया।

‘‘जब ईंटों-पत्थरों की रोड़ी बनानी होती है तो मजदूर लगाने पड़ते हैं, जो दिन भर बैठकर उसे तोड़ते हैं।’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘मैंने वही काम अमरीकियों से करवाया है। मकान बनाने के लिए अब वहाँ काफी पत्थर हैं। उन्होंने सारे अफगानिस्तान में मकान बनाने के लिए हमारे लिए पत्थर तोड़ दिए हैं। और...।’’
‘‘और क्या ?’’
‘‘हम जब भी अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कोशिश करते थे, ये पठान उन गारों में छिपकर हमारी नाक में दम कर देते थे। अब न वे पहाड़ हैं, न वे गुफाएँ मुशर्रफ मुस्कराया, ‘‘अमरीका कब तक उनकी रखवाली करेगा। कभी तो अपने देश लौटेगा। तब फिर हम होंगे और पश्तून। अब पश्तून किन गुफाओं में छिपकर हमारे सिपाहियों से बचेंगे ?’’
मुशर्रफ बहुत प्रसन्न था और ओसामा के चेहरे पर मुर्दनी छाई हुई थी।

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