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बड़े मियाँ दीवाने

राजेन्द्र राज

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :152
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4641
आईएसबीएन :81-89355-17-1

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हास्य कविताओं का एक बहुत अनूठा संकलन

Bade Miyan Diwane a hindi book by Rajendra Raj - बड़े मियाँ दीवाने - राजेन्द्र राज

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

रोज़मर्रा के जीवन की तमाम मुश्किलों और परेशानियों के बीच हँसी-खुशी के कुछ पलछिन खोज कर अपने दामन में लेना ज़िन्दगी को ख़ुशगुवार बनाता है। हमारे आस-पास, चारों तरफ, हर गाँव और शहर, हर गली और मोहल्ले में ऐसे-ऐसे जीवन्त किरदार हैं, जिनमें ज़िन्दगी की बाधाओं और विपत्तियों का मुस्कराकर-खिलखिलाकर सामना करने का हसीन माद्दा है। ये वो चमन के फूल हैं जो बाग़बां को अपनी ख़ुशबू से महकाते हैं।

मेरी इन हास्य-कविताओं के पात्र जैसे कि बड़े मियाँ, बलबीर बन्ना, चंगु-मंगु, मनोज ज्योतिषी, कपिल साहब, विक्सा, मिस्टर डिप्टी इत्यादि वो महानुभाव हैं जिनकी शख़्सियत हमें ज़िन्दगी के प्याले में हास्य-विनोद का रसपान कराती है। इन्हीं के बेमिसाल व्यक्तित्व को काव्य में पिरोकर पेश-ए खिद्मत कर रहा हूँ, आशा है आप इसे सराहेंगे और अपने अमूल्य प्यार से सुशोभित करेंगे।
‘धन्यवाद’
-राजेन्द्र राज

बड़े मियाँ दीवाने

उम्र चौंसठ के पार हुई
जिस्म से रूह बेज़ार हुई
लड़खड़ा कर चलते हैं
हर हसीन पर गिरते हैं
बड़े मियाँ दीवाने

पान चबाके होठों से
लाल रस टपकाते हैं
टूटी हुई ऐनक को
आँखों पे चढ़ाते हैं
बड़े मियाँ दीवाने

इनके घर के सामने
एक पड़ोसिन रहने आई
मियाँ ने सूरत देखी
और बालों में कंघी घुमाई
बड़े मियाँ दीवाने

पतली कमर तिरछी नज़र
छत्तीस की उम्र में ऐसी फिगर
बाल सुखाने खिड़की पे जो आई
मियाँ ने इंग्लिश धुन बजाई
बड़े मियाँ दीवाने

रात सारी गुजर गई
करवट बदल-बदल कर
सुबह-सुबह मियाँ ने
पड़ोसिन के घर की घंटी बजाई
बड़े मियाँ दीवाने

जाने कहाँ से कुत्ता एक
लपका मियाँ की ओर
मियाँ ने वहाँ से दौड़कर
जान बचाई पतलून गंवाई
बड़े मियाँ दीवाने

हाँफते-हाँफते पहुँचे घर पे
दो गिलास लस्सी चढ़ाई
कफन में लिपटी देह में
थोड़ी सी जान लौट आयी
बड़े मियां दीवाने

एक कंकड़ उठाके मियाँ ने
खिड़की के शीशे पर दे मारा
पड़ोसिन ने गन्दे पानी से
मियाँ को धो डाला
बड़े मियाँ दीवाने

मियाँ ने सोचा यह प्यार है
पहले तकरार फिर इज़हार है
एक रुपये में टेलीफोन नम्बर घुमाया
पड़ोसिन को पार्क में बुलाया
बड़े मियाँ दीवाने

बालों में लगाकर ख़िजाब
हाथों में लेकर गुलाब
काले कुर्ते लाल पाजामे में
मियाँ लग रहे लाजवाब
बड़े मियाँ दीवाने

गली के कुत्तों ने फिर
मियाँ को पार्क पहुँचाया
बूढ़े घोड़े की पीठ पर
जैसे किसी ने चाबुक बरसाया
बड़े मियाँ दीवाने

खाली पड़ी बेन्च पर
जाकर मियाँ निढ़ाल हुए
चार आने के चने लेकर
मोहब्बत करने को तैयार हुए
बड़े मियाँ दीवाने

मियाँ ने घड़ी देखी
पड़ोसिन अब तक नहीं आई
गुलाबी साड़ी में दिखी कोई
और मियाँ ने सीटी बजाई
बड़े मियाँ दीवाने

फिर लपककर मियाँ ने
पकड़ी कलाई आवाज लगाई
इतनी देर कर दी आने में
मेरे प्यार को आजमाने में
बड़े मियाँ दीवाने

उसका पति मुस्टण्डा था
जिसके हाथ में डण्डा था
उसने पकड़ा मियाँ को
और जमके चार लगाई
बड़े मियाँ दीवाने

मियाँ की टूटी हड्डी
पहुँच गए हॉस्पिटल
कॉटेज-वार्ड में नर्स ने
मियाँ को दवा लगाई
बड़े मियाँ दीवाने

मियाँ बोले कोई बात नहीं
पड़ोसिन नहीं नर्स ही सही
अपना काम आसान हुआ
दवा-दारू का इंतिज़ाम हुआ
बड़े मियाँ दीवाने।

जियो मेरे लाल

माँ ने कहा बेटे से
दिखा कोई कमाल
बेटे ने पड़ोसी की लड़की को
मल दिया गुलाल
जियो मेरे लाल

बेटा बड़ा सयाना है
हर हसीन का दीवाना है
महफिलों और मैखानों में
उसका आना-जाना है

उसके मिथुन से बाल हैं
जैसी जैसी चाल है
कमर में गमछा है
जीन्स में जमता है

हल्के-हल्के धुएँ में
हर रोज़ नहाता है
नुक्कड़ के पनवाड़ी के यहाँ
इसका चालू खाता है

सिनेमा देखने की खातिर
कितना पसीना बहाता है
जीतता है जुए में जब
चार शोर चलवाता है

बेटा बड़ा प्यार है
माँ का दुलारा है
आशिक है थोड़ा-सा
थोड़ा-सा आवारा है

पढ़ता है उपन्यास सुबह
शाम को जिम जाता है
हाथ-पैरों को मरोड़कर
सलमान खान हो जाता है

बाइक पर निकलता है जब
लड़कियों को लपकाता है
हसीन कोई शॉर्ट्स में दिख जाए तो
इसका शॉर्ट-सर्किट हो जाता है

आधी गुजर गई जवानी
खाने-पीने नाचने-गाने में
बाकी रह गई है जो
जाएगी अफ़साने बनाने में

दो नम्बर की दौलत को
दोनों हाथों से लुटाना
कुछ कमी रह जाए तो
गहने-जेवर बेच खाना

माँ ने कहा बेटे से
दिखा कोई कमाल
बेटे ने पड़ोसी की लड़की को
मल दिया गुलाल
जियो मेरे लाल।

बलबीर बन्ना

बलबीर बन्ना जब मुस्कराते हैं
कितने कत्ल कर आते हैं
जहाँ खड़े हो जाते हैं
वहीं शुरू हो जाते हैं

शाम सहेली है इनकी
रोज़ सज-धज कर आती है
रात जब अकेली होती है
इनके घर सो जाती है

जीन्स पैन्ट और टी-शर्ट में
ये कहर ढ़ाते हैं
काला चश्मा लगा लें तो
आइटम-सोंग हो जाते हैं

इनकी अदाओं पे मरती हैं
आधी लड़कियाँ शहर की
आधी कुछ समझदार हैं
इनकी गली से गुजरती नहीं

सुबह-शाम तफ़्रीह करने
ये बाग़बां में जाते हैं
चम्पा-चमेली और जूही को
इशारों में बुलाते हैं

रीबॉक के पहनके जूते
बन्ना जब जमीन पर चलते हैं
जमाने भर की लड़कियों के
दिल के अरमान मचलते हैं

बन्ना ने कसम खाई है
जिएँगे तो ऐसे ही
माँ-बाप ने आखिर दौलत
किसलिए कमाई है

मैक्-डोनाल्ड्स में इनके लिए
एक टेबल बुक रहती है
दिलकश हसीन लड़कियाँ
आई.लव.यू. कहती हैं

बन्ना जब फिसल जाते हैं
दोनों हाथों से लुटाते हैं
अपनी जवानी को छोड़कर
बाकी सब छोड़ आते हैं

इनके दो चार चेले हैं
जो दुनिया में अकेले हैं
चलते हैं बन्ना के संग
खुली शर्ट और जीन्स तंग

एक शाम बन्ना को
लड़की एक भा गई
घर में अकेली थी
छत पर आ गई

बन्ना को देखे बिना ही
वो ऐसे शरमा गई
उसकी शादी की तारीख
जैसे क़रीब आ गई

बन्ना ने भेजा उपहार
उसने कर दिया इन्कार
बन्ना ने लगाई पुकार
लड़की ने कहा खबरदार

बन्ना का खान: खराब है
दोनों हाथों में शराब है
जो खो गया वो शबाब है
जो मिल गया बो जवाब है

बलबीर बन्ना जब मुस्कराते हैं
कितने कत्ल कर आते हैं
जहाँ खड़े हो जाते हैं
वहीं शुरू हो जाते हैं।

चंगु-मंगु इन बॉम्बे

फिल्में देख-देख कर चंगु
खुद को स्टार समझने लगा
आईने के आगे खड़े होकर
अपनी सूरत से प्यार करने लगा

छितराए बाल, पिचके हुए गाल
सिमटी हुई छाती, फैली हुई चाल
झुक-झुकके है कि चलता है
लहराके निकलता है

रंगमंच की लघु-तारिकाएँ
इस पर जान छिड़कती हैं
ये ऐश्वर्या पर मरता है
सल्लू से मगर डरता है

चंगु को मिल गया मंगु
दोनों फिल्मों के दीवाने
मंगु के पास थे आठ सौ
चंगु के पास आठ आने

चंगु ने कहा मंगु से
चल मुम्बई चलते हैं
जूहू-बीच पर खड़े होकर
फिल्म की शूटिंग करते हैं

एक रोज़ दोनों भागकर
घर से मुम्बई आ गए
नीना गुप्ता की कमजोर कड़ी को
एक नज़र में भा गए
बोली नमस्ते ! आप आ सकते हैं
मेरी सूनी सेज सजा सकते हैं
बूढ़ी घोड़ी को हिनहिनाते देख
चंगु-मंगु सकपका गए

वहाँ से भागकर दोनों
सुभाष घई के दफ़्तर आ गए
मैनेजर ने कहा, आइए आपके आने से
फिल्मों के भाग्य जाग गए

सेल्यूलॉइड की दुनिया से
दोनों का परिचय कराया
चंगु को स्पॉट-ब्वॉय
मंगु को मेकअप मैन बनाया

झूठी दुनिया नकली लोग
दोनों को होश आ गए
बोले अपने शहर में जिएँगे
दिन में सिनेमा देखेंगे, रात में पिएँगे

चंगु-मंगु ट्रेन में बैठकर
वापस जयपुर आ गए
सत्तर एम.एम. के परदे पर
टाइटल बनकर छा गए।

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