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मददगार बीरबल

अनन्त पई

प्रकाशक : इंडिया बुक हाउस प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :30
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4802
आईएसबीएन :81-7508-490-1

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बीरबल शहंशाह अकबर के दरबार में एक रत्न थे। उन्हीं के विषय में प्रस्तुत है यह पुस्तक.....

Madadgar Birbal A Hindi Book by Anant Pai

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मददगार बीरबल

बीरबल की विनोद-प्रियता और बुध्दिचातुर्य ने न केवल अकबर, बल्कि मुगल साम्राज्य की अधिकांश जनता का मन मोह लिया था। लोकप्रिय तो बीरबल इतने थे कि अकबर के बाद उन्हीं की गणना होती थी। वे उच्च कोटि के प्रशासक, और तलवार के धनी थे। पर शायद जिस गुण के कारण वे अकबर को अधिक प्रिय थे-वह गुण था उच्च कोटि का विनोदी होना।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि बीरबल एक कुशल कवि भी थे। वे ‘ब्रह्म’ उपनाम से लिखते थे। उनकी कविताओं का संग्रह आज भी भरतपुर-संग्रहालय में सुरक्षित है।

वैसे तो बीरबल के नाम से प्रसिध्द थे, परन्तु उनका असली नाम महेशदास था। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यमुना के तट पर बसे त्रिविक्रमपुर (अब तिकवाँपुर के नाम से प्रसिद्ध) एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे। लेकिन अपनी प्रतिभा के बल पर उन्होंने अकबर के दरबार में नवरत्नों में स्थान प्राप्त किया था।

उनकी इस अद्भुद सफलता के काऱण अनेक दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे। और उनके विरुध्द षङ्यंत्र रचते थे। बीरबल सेनानायक के रूप में अफगानिस्तान की लड़ाई में मारे गये। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु ईर्ष्यालु विरोधियों के षड़यंत्र का परिणाम थी।
बीरबल की मृत्यु के समाचार से अकबर को कितना गहरा आघात पहुंचा था। इसका परिणाम है उनके मुँख से कविता के रूप में निकली ये पंक्तियाँ:

 

दीन जान सब दीन, एक दुरायो दुसह दुःख,
सो अब हम को दीन, कुछ नहीं ऱाख्यो बीरबर।

 

अकबर के लिए बीरबल सच्चे सखा, सच्चे संगी थे। अकबर के नये धर्म दीन-ए-इलाही के मुख्य 17 अनुयायियों में यदि कोई हिन्दू था, तो वे अकेले बीरबल।

 

घड़ा-भर अक्ल

 

एक दिन अकबर के दरबार में लंका नरेश का दूत एक अनोखी प्रार्थना लेकर आया।
जहाँपनाह आपके दरबार में एक से बढ़कर एक काबिल व अक्ल मंद मौजूद है हमारे नरेश ने मुझे आपके दरबार से घड़ा भर अक्ल लाने भेजा है।
घड़ा भर अक्ल कैसी बेतुकी माँग है !
लंका नरेश हमें नीचा दिखाना चाहते हैं।
और वे कामयाब भी होंगे,
क्योंकि इस गुत्थी को कोई सुलझा नहीं सकता, बीरबल भी नहीं !

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