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बारहवीं रात

शेक्सपियर

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4870
आईएसबीएन :9789350642122

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Twelfth Night का हिन्दी रूपान्तर

Barahvin Raat - A Hindi Book by Shakespeare

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

विश्व साहित्य के गौरव, अंग्रेजी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. को इंग्लैंड के स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हु्आ। उनके पिता एक किसान थे और उन्होंने कोई बहुत उच्च शिक्षा भी प्राप्त नहीं की। इसके अतिरिक्त शेक्सपियर के बचपन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। 1582 ई. में उनका विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन हैथवे से हुआ। 1587 ई. में शेक्सपियर लंदन की एक नाटक कम्पनी में काम करने लगे। वहाँ उन्होंने अनेक नाटक लिखे जिनसे उन्होंने धन और यश दोनों कमाए। 1616 ई. में उनका स्वर्गवास हु्आ।

प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया है, जो इस सीरीज में पाठकों को उपलब्ध कराये जा रहे हैं।

 

शेक्सपियर : संक्षिप्त परिचय

विश्व-साहित्य के गौरव, अंग्रेजी भाषा के अद्वितीय नाटककार शेक्सपियर का जन्म 26 अप्रैल, 1564 ई. में स्ट्रैटफोर्ड-ऑन-एवोन नामक स्थान में हुआ। उसकी बाल्यावस्था के विषय में बहुत कम ज्ञात है। उसका पिता एक किसान का पुत्र था, जिसने अपने पुत्र की शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध भी नहीं किया। 1582 ई. में शेक्सपियर का विवाह अपने से आठ वर्ष बड़ी ऐन हैथवे से हुआ और सम्भवत : उसका पारिवारिक जीवन सन्तोषजनक नहीं था। महारानी एलिज़ाबेथ के शासनकाल में 1587 ई. में शेक्सपियर लन्दन जाकर नाटक कम्पनियों में काम करने लगा। हमारे जायसी, सूर और तुलसी का प्राय : समकालीन यह कवि यहीं आकर यशस्वी हुआ और उसने अनेक नाटक लिखे, जिनसे उसने धन और यश दोनों कमाए। 1612 ई. में उसने लिखना छोड़ दिया और अपने जन्म-स्थान को लौट गया और शेष जीवन उसने समृद्धि तथा सम्मान से बिताया। 1616 ई. में उसका स्वर्गवास हुआ। इस महान् नाटककार ने जीवन के इतने पहलुओं को इतनी गहराई से चित्रित किया है कि वह विश्व-साहित्य में अपना सानी सहज ही नहीं पाता। मारलो तथा बेन जानसन जैसे उसके समकालीन कवि उसका उपहास करते रहे, किन्तु वे तो लुप्तप्राय हो गए; और यह कविकुल दिवाकर आज भी देदीप्यमान है।

शेक्सपियर ने लगभग छत्तीस नाटक लिखे हैं, कविताएँ अलग। उसके कुछ प्रसिद्ध नाटक हैं-जूलियस सीज़र, ऑथेलो, मैकबैथ, हैमलेट, सम्राट लियर, रोमियो जूलियट (दु :खान्त), एक सपना (ए मिड समर नाइट्स ड्रीम), वेनिस का सौदागर, बारहवीं रात, तिल का ताड़ (मच एडू अबाउट नथिंग), जैसा तुम चाहो (एज़ यू लाइक इट), तूफान (सुखान्त)। इनके अतिरिक्त ऐतिहासिक नाटक तथा प्रहसन भी हैं। प्राय : उसके सभी नाटक प्रसिद्ध हैं।

शेक्सपियर ने मानव-जीवन की शाश्वत भावनाओं को बड़े ही कुशल कलाकार की भाँति चित्रित किया है। उसके पात्र आज भी जीवित दिखाई देते हैं। जिस भाषा में शेक्सपियर के नाटक का अनुवाद नहीं है वह उन्नत भाषाओं में कभी नहीं गिनी जा सकती।

 

भूमिका

बारहवीं रात एक सुखान्त नाटक है। इसका लेखन-काल अन्तस्साक्ष्य और बहिस्साक्ष्य की परीक्षा के उपरान्त 1601 ई. माना जाता है। इस नाटक में दो कथाएँ हैं—एक प्रेम की कथा, दूसरी है हास्य कथा। प्रथम का स्त्रोत इन ग्रन्थों से माना जाता है-एपोलोनियस और सिल्ला; ग्लि’ इन्गन्नति तथा इन्गन्नि। बैण्डेलो के उपन्यासों के संग्रह में इसका प्रारम्भिक रूप माना जाता है। बैण्डेलो की इतालवी भाषा की रचना से यह कुछ परिवर्तन के साथ बैलेफोरेस्ट द्वारा फ्रेंच में उतर आई। किन्तु इसकी हास्य कथा शेक्सपियर की अपनी ही है। वह मौलिक है। इन हास्य पात्रों का सृजन कवि की अपनी प्रतिभा का परिणाम है।

बारहवीं रात का दूसरा नाम और है—‘जैसी तुम्हारी इच्छा हो’। उन दिनों के हल्की चीज़ों को देखने के शौकी़न दर्शकों के लिए यह नाम काफी दिलचस्प था। बड़े दिन यानी क्रिसमस के बारह दिन बाद, अर्थात् 6 जनवरी को इंग्लैण्ड में एक उत्सव हुआ करता था, जो क्रिसमस के बाद काफी महत्त्व रखता था। उस दिन कई खेल भी होते थे। सब मित्र और परिवार के लोग इकट्ठे होते थे और केक काटा जाता था। उसे बाँटने पर जिस पुरुष और स्त्री के केक के टुकड़ों में मटर और सेम पाए जाते थे उन्हें उस दिन राजा और रानी मान लिया जाता था। इस नाटक में भी तीन पति और पत्नियाँ बनती हैं। शायद इसीलिए इसका नाम बारहवीं रात रखा गया है। दूसरा नाम ‘जैसा तुम चाहो’ से बहुत मिलता है या इसका अर्थ है कि न यह पूरी तरह सुखान्त नाटक है, न रोमान्स ही है, न दुःखान्त ही है, न है मास्क। वही मान लो—जैसी तुम्हारी इच्छा हो।

1607 ई. में ‘जैसी तुम्हारी इच्छा हो’ नाम से मार्स्टन की भी एक कॉमेडी छपी थी।

नाटक का स्थान इलिरिया है। जो एक काल्पनिक स्थान है। वैसे ही जैसे शेक्सपियर के एक अन्य नाटक—‘द विन्टर्ज़ टेल’ का स्थान ‘बोहीमिया’ है।

चरित्र-चित्रण के दृष्टिकोण में इसमें वायोला, मालवोलियो और सर टोबी—तीन पात्र ऐसे हैं, जिनकी याद रह जाती है। विदूषक का पार्ट कोई विशेष नहीं है। किन्तु सम्पूर्ण दृष्टि से, व्यक्तिगत रूप से मुझे यह नाटक गहरा नहीं लगा, क्योंकि वायोला का अन्तर्द्वन्द्व जो इस कथा का प्राण है, मुखर नहीं हो सका है।

कट्टर विशुद्धतावाद (Puritanism) का आन्दोलन उन दिनों शेक्सपियर के आक्रमण का विषय बना है। मालवोलियो एक विशुद्धतावादी पात्र है, जिसमें ढोंग और अहंकार को दिखाया गया है। विशुद्धतावादी आन्दोलन नाटक-घरों और आन्दोलन के साधनों पर सीधा प्रहार कर रहा था। शेक्सपियर के युग का अन्त इन्हीं कट्टरपन्थी ईसाइयों के विकास में हुआ था, जिन्होंने नाटक को काफी क्षति पहुँचाई थी। किन्तु इस नाटक के अतिरिक्त शेक्सपियर में अन्यत्र इन लोगों पर ऐसे प्रहार नहीं मिलते, वैसे शेक्सपियर में इनके प्रति कोई बुरी कट्टर भावना नहीं है। वह केवल दिल्लगी करता है, सहिष्णुता से काम लेता है। किन्तु वैसे यह भी निश्चय से नहीं कहा जा सकता। शेक्सपियर तो जैसा पात्र होता है, उसके अनुरूप ही उससे बात कराता है और इसीलिए उसकी कला इतनी गहरी उतर गई है क्योंकि वह तो मानव-स्वभाव का पारखी है। सर ऐण्ड्रू भी अनेक बातें कहता है, पर वह सब उसी का चरित्र है, शेक्सपियर का अपना कोई मत वहाँ नहीं है।

शेक्सपियर में जो असाधारण घटनाएँ मिलती हैं, जो उसकी नाटकीयता का प्राण हैं, वह यहाँ भी है, यहाँ भी वायोला और सैबैस्टियन—बहन और भाई एकदम इतने मिलते हैं कि एक ही सूरत, ऊँचाई, चौड़ाई, आवाज़, यहाँ तक कि कपड़े भी एक-से ! परन्तु स्त्री के प्रति प्रेमभाव बड़ा विचित्र लगता है। वैसे ही बड़े संघर्ष का क्षण, किन्तु फिर भी उसी प्रेम का अन्त जब ओलीविया की भूल में बदल जाता है, तब हँसी आती है, और ओलीविया का चरित्र-गाम्भीर्य लुप्त हो जाता है। ऐसे ड्यूक का भी हाल होता है। एक स्त्री के पुरुष बन जाने से जो भूलें होती हैं, वह सब मजा़क़ इस नाटक में प्रकट होते हैं।

किन्तु कहीं-कहीं महान् नाटककार ने ऐसे अमर वाक्य लिखे हैं कि पूरा नाटक उठ जाता है, और इसीलिए इसे इतना श्रेष्ठ माना जाता है। स्त्री के प्रति उसकी क़लम बहुत सहृदयता दिखाती है, परन्तु स्त्री के कुछ रूप उसे पसन्द नहीं भी हैं। उनकी वह आलोचना भी करता है। सम्पूर्ण नाटक में कोई भी पात्र-पात्री बहुत ऊँचाई को नहीं छू पाते। ओलीविया का प्रेम तो चपलता है, परन्तु मित्र प्रेमी एण्टोनियो और सरला वायोला ही इसमें अपनी छाप छोड़ते हैं।

मैंने नाटक के अनुवाद में वाक्चातुर्य के प्रयोगों का प्रभाव देने के लिए कहीं-कहीं हिन्दी के मुहावरों का प्रयोग किया है, वर्ना गति में खटक पड़ती थी। आशा है, पाठकों को मेरा परिश्रम लाभकर होगा।

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