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जीत या हार रहो तैयार

उज्जवल पाटनी

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :192
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4896
आईएसबीएन :81-903900-3-1

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सम्मान से हारने और गर्व से जीतने के सूत्र बताती पुस्तक....

Jeet Ya Har Raho Taiyar

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

माँ तुम्हें प्रणाम

मैं ‘‘जीत या हार-रहो तैयार’’ को अपनी प्यारी माँ के स्वर्गसम चरणों में समर्पित करता हूँ। कम उम्र में पिता के देहावसान के बाद माँ ने ही मुझे इस काबिल बनाया कि मैं दूसरों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकूं और स्वयं के जीवन की जिम्मेदारी ले सकूं। मैं अत्यंत दुर्भाग्यशाली हूँ क्योंकि मुझे उन्हें सुख के क्षण देने का अवसर ही नहीं मिला। जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हुआ, वे अस्वस्थ हो गई और कुछ समय पहले उनका देहांत हो गया।

मेरी माँ कहती थी कि जीत और हार मंजिल के सफर का एक हिस्सा है, हारने से कोई छोटा नहीं होता और जीतने से कोई बड़ा नहीं होता। महत्त्व इस बात का होता है कि आपने अपनी पूरी क्षमताओं का उपयोग किया या नहीं, महत्त्व इस बात का है कि आपने अपने सपनों को पाने के लिए पसीना बहाया या नहीं। मंजिल पर पहुँच कर जो आनंद मिलेगा, उसकी कल्पना करते हुए डटे रहिये, फिर चाहे पथ पर कैसी भी मुश्किलें हो। उन्होंने मुझे जीवन का एक ही गुरूमंत्र दिया- जीत या हार रहो तैयार

इस पुस्तक की आत्मा

मित्रों, ढेरों व्यक्तित्त्व विकास और जीवन प्रबंध की पुस्तकें पढ़-पढ़कर लोगों को अब ये केवल किताबी बातें लगती हैं। उन्हें लगता है कि ऐसी पुस्तकों से किसी को कुछ हासिल नहीं होता, कोरी फिलॉसफी है ये। इन पुस्तकों के अधिकांश सिद्धान्त ऐसे होते हैं जिनका वास्तविक जीवन में कोई मोल नहीं होता।
बुद्धिमान लोग यह भी कहते हैं कि प्रकाशक किताबें बेचकर कमाता है, लेखक रायल्टी से कमाता है और ज्ञान की दुकान चलती रहती है।
मैं शतप्रतिशत आपसे सहमत हूँ कि कोई भी प्रेरक किसी की जिंदगी नहीं बदल सकता। कोई भी किताब किसी की उलझन नहीं सुलझा सकती। कोई भी सारपूर्ण कहानी किसी को राह नहीं दिखा सकती। कोई भी सलाह किसी की गलत आदत नहीं सुधार सकती और कोई भी सिर्फ किताब पढ़कर आज तक करोड़पति नहीं हुआ क्योंकि सबसे महत्त्वपूर्ण उस पुस्तक को पढ़ने वाला व्यक्ति है। यदि पाठक बदलना नहीं चाहता, अपनी कमजोरियों और असफलता के साथ जीना चाहता है तो प्रेरक और पुस्तक, दोनों का कोई मोल नहीं।

यदि पाठक अपनी समस्या नहीं सुलझाना चाहता, तकलीफ में जीना चाहता है, मुश्किलों में और गहरे फंसना चाहता है तो आखिर किताब क्या कर सकती है। यदि पाठक अपनी गलत आदत नहीं बदलना चाहता, यह जानते हुए भी कि वह आदत बदलते ही जिंदगी कदम चूमने लगेगी तो वह निर्जीव पुस्तक बेचारी क्या कर सकती है।
कोई भी पाठक किताब पढ़कर सफल और धनवान नहीं हो सकता क्योंकि पुस्तक कोई ए.टी.एम. मशीन तो है नहीं, जिसमें बटन दबाओ और पैसे बाहर आ जाये। पुस्तक केवल आपको धन कमाने के स्रोत और रास्ते में आने वाली मुश्किलें बता सकती है, आप अपने बिस्तर से बाहर निकलकर पसीना ही नहीं बहाना चाहेंगे तो कुछ भी नहीं बदलेगा।
मित्रों, यदि आप किसी शहर के लिये यात्रा करने वाले हो तो उस यात्रा के लिये आपको उपयुक्त ट्रेन का चुनाव करना होगा। रिजर्वेशन कराना होगा, नियत दिन और नियत समय पर पहुँचकर सही ट्रेन में बैठना होगा। अंत में यह भी ध्यान रखना होगा कि आप मंजिल पर पहुँचने के पहले ट्रेन से न उतरें। बिना मेहनत के एक छोटी सी ट्रेन यात्रा भी संभव नहीं है। आपको यदि घर पर ट्रेन की सारी जानकारी सही टिकट के साथ भी पहुँचा दी जायेगी तो भी आपको मंजिल पर पहुँचने के लिये घर से निकलकर स्टेशन पहुँचना होगा और ट्रेन पर चढ़ना होगा।

ठीक इसी प्रकार इस किताब में आपको ऐसे अनेक विचार मिलेंगे जो आपको सोचने पर मजबूर करेंगे, लेकिन सकारात्मक परिवर्तन तभी होगा जब आप पूरी ताकत और योजना से उस विचार पर कार्य करेंगे। एक श्रेष्ठ विचार में इतनी शक्ति होती है कि वो अमल में लाने वाले के जीवन में जबरदस्त परिवर्तन ला सकता है। उस कार्य को शुरू करने से भी ज्यादा जरूरी है, अंत तक मंजिल प्राप्त करने के लिये डटे रहना। यदि आपने आलस्य या निराशा की वजह से अधूरे मन से प्रयास किया तो कुछ भी नहीं बचेगा।
यह किताब एक शानदार रिसेप्शन के मीनू की तरह है जो भी पसंद आये ग्रहण कर लेना, जो पसंद न आये उसे छोड़ देना। एक ही बार में ज्यादा ग्रहण मत करना नहीं तो अपच की वजह से तकलीफ हो सकती है। यदि उपवास रखकर रिसेप्शन में आओगे, तो मेजबान की कोई गलती नहीं, दोष उसके कंधे पर मत डालना।

यदि इस किताब का असली मजा लेना है तो ‘‘मैं ज्ञानी हूँ’’, इस धारणा को निकाल फेंको, दिमाग के बंद दरवाजों को खोलो और मेरे विचारों को अपने अंदर प्रवेश करने दो। क्योंकि दिमाग एक पैराशूट की तरह होता है वो तभी काम करता है जब वो खुलता है। अक्सर किताबों में लिखे बेहतरीन प्रेरणादायी विचार भी लोगों को उद्वेलित नहीं कर पाते, झंझोड़ नहीं पाते, क्योंकि लोग उन विचारों को दिमाग में प्रवेश ही नहीं करने देते है। कुछ अति बुद्धिमान लोग थ्योरिटिकल बात, सुनी सुनाई बात, बहुत जगह पढ़ा है, जैसे शब्दों के माध्यम से इन क्रांतिकारी विचारों को गौण कर देते हैं, महानायकों की उपलब्धियों और संघर्षों को सामान्य बना देते है। यदि आप सीखने की प्रक्रिया आरंभ करना चाहते हैं, तो सब कुछ जानते हैं, को हटाना पड़ेगा।
गुस्सा संबंधों को नष्ट कर देता है सभी जानते हैं लेकिन....
दो नंबर का कार्य करने पर आप फंस सकते हैं लेकिन...
तेज गाड़ी चलाने से एक्सीडेन्ट होता है, सब जानते हैं लेकिन....
जल्द सोना, जल्द उठना अमृत तुल्य है, सब जानते हैं लेकिन...
दूसरी स्त्रियों को गलत निगाह से नहीं देखना चाहिये, सब जानते हैं लेकिन...
कोई भी इंसान मृत्यु के बाद दौलत साथ नहीं ले जाता, सब जानते हैं लेकिन....
सिगरेट, तंबाकू, शराब, गुटका जानलेवा हो सकता है, सब जानते हैं, लेकिन...
ऐसी हजारों बाते हैं, जिन्हें हम जानते हैं, परंतु उनके प्रति गंभीर नहीं होते, उन्हें अमल में नहीं लाते अंत में उनकी कीमत चुकाते हैं। क्या सिर्फ जानना महत्त्वपूर्ण है, या जानने के साथ जीवन में भी उतारना पड़ेगा। जो जानता नहीं इसलिये पालन नहीं कर पाता, वह अज्ञानी है लेकिन जो जानते हैं फिर भी पालन नहीं करते, वे मूर्ख हैं। आप अपनी श्रेणी स्वयं चुनिए, अज्ञानी, मूर्ख या बुद्धिमान।

मैं यह तो दावा कर नहीं सकता कि आप इसको पढ़ते साथ ही सफल हो जायेंगे या धनी हो जायेंगे लेकिन आप एक बार अवश्य सोचने पर मजबूर हो जायेंगे। यदि सोचने की प्रक्रिया शुरू हो गयी तो सीखने की स्वतः शुरू हो जायेगी। मैं राह दिखा सकता हूँ, अच्छा-बुरा बता सकता हूँ, लेकिन राह पर चलना तो स्वयं को पड़ेगा। अच्छे बुरे में किसको चुने, यह निर्णय आपका अपना होगा।
एक शक्तिशाली विचार ने एक ऐसे छात्र को डॉक्टर बना दिया जो बड़ी मुश्किल से पास होता था और जो कक्षा 11 में दो विषयों में फेल हो गया था। एक दूसरे शक्तिशाली विचार ने उस सफल डॉक्टर को एक सफल व्यक्तित्त्व विकास प्रशिक्षक बना दिया और स्पीच गुरू का उपनाम दे दिया। एक तीसरे शक्तिशाली विचार ने उस ट्रेनिंग एक्सपर्ट को एक लोकप्रिय लेखक बना दिया और उसकी किताब देश विदेश में धड़ाधड़ बिकने लगी। इन सारे विचारों के साथ आज उसकी उम्र 33 वर्ष है। यदि मुझ जैसा औसत से भी कम स्तर का विद्यार्थी विचारों से आंदोलित होकर शानदार उपलब्धियाँ हासिल कर सकता है तो यकीन मानिये, आप भी हासिल कर सकते हैं। शर्त सिर्फ एक है, विचारों को अपने दिमाग में प्रवेश करने दे और बिना अति बुद्धिमानी लगाये पूरी शिद्दत के साथ कार्य करें।
मैं आप के ही जैसा आम आदमी हूँ, आपका दोस्त हूँ कभी जीतता, कभी हारता, कभी गिरता, कभी उठता लेकिन उम्मीदें जिंदा है, डटा हुआ हूँ


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