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गजलें और शायरी >> प्रेयसी

प्रेयसी

राजेन्द्र राज

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 4910
आईएसबीएन :81-7043-678-8

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लोकप्रसिद्ध शेरो-शायरी...

Prayasi

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रेयसी

अपने बारे में....
‘‘शायर लिखते नहीं
कलम लिखती है
खुद-ब-खुद
ज़ज़्बे जब,
जल्वाफ़रोश होते हैं
आरज़ू के आईने में।’’

भूमिका

दोस्तों, प्यार वो हसीन ज़ज़्बा है जो ज़िन्दगी को ख़ूबसूरत बनाता है। निगाहों से उतरके जब कोई चेहरा दिल में समा जाता है, तो सच मानिए प्यार हो जाता है। जब प्यार हो जाए किसी से तो दिल की धड़कनों को जीने का सबब मिल जाता है।
दिल की दुनिया के कुछ ऐसे ही हसीन ज़ज़्बात शायरी में पिरोकर पेश-ए-खिद्मत करता हूँ। आशा है आप इसे सराहेंगे और अपने अमूल्य प्यार से सुशोभित करेंगे।
‘धन्यवाद’
1.
अपनी शर्तों पे
ज़िन्दगी जीना
कोई काम नहीं आसां
ये बात और है
हुस्न की शर्तों पे
जान लुटा देते हैं दिलवाले।

2.
अगर मैं उसे
चाँद से मिलाऊँ
तो सच कहता हूँ
चाँद अपनी रोशनी छोड़कर
उसके साथ
अँधेरे में खो जाए।

3.
आज चौदहवीं का चाँद
जब निशा को जलाएगा
तेरे हुस्न की किरणों में
भीगकर रह जाएगा

4.
आज सोएगी शायरी मेरे साथ
शाम को जब जागेंगे अरमा
खींच लाएँगे तेरे
होठों की मदिरा को
तेरी ज़ुल्फ़ के प्याले में।

5.
इस क़दर बला की ख़ूबसूरत
देखी न जमाने में कहीं
बेदर्द हसीं सितमगर
एक नज़र इधर भी डालो।

6.
इन्हीं बेजां गीतों में अक्सर
तेरे हुस्न से जाँ डालने की
कोशिश करता हूँ
कभी तो बोलेंगे ये
तेरे शबाब की दास्तां
नहीं तो खुद ही
शबाब में भीगकर तेरे
दास्तां बन जाएँगे।

7.
इन नजारों से पूछो
किस साँचे में ढला है
मेरी महबूबा का बदन
ये जब-जब बतलाएँगे
खुद इश्क़ में पड़ जाएँगे।

8.
उतर आई वो
स्वर्ग के जीनों से इस क़दर
जैसे दिल बिछा हो
मेरा जमीं पर।

9.
ए-जानेमन यूँ न देख
नशीली आँखों के पैमाने से
टूट जाएँगे दिल कई
हुस्न के सितम उठाने से।

10.
एक शाम जब
इन्हीं ओस की बूँदों में
तेरा भीगा चेहरा नज़र आया
सच कहूँ
मौसम की बेबाक शरारत पर
मुझे कुछ-कुछ तरस आया।

11.
 क्यूँ तड़प बढ़ी
कसूर दिल का सही
पर दिल तो तुम्हारा है
तुम यूँ न मुस्काती
तो कयामत ठहर जाती
कसूर कयामत का नहीं
कयामत तो तुम हो
लब कुछ कह रहे हैं
ये प्यार का इज़हार है
कसूर लबों का नहीं
लबों में तुम हो।

12.
कभी-कभी दिखती है चाँदनी
सड़कों पर बिखरी
सफेद टी-शर्ट नीले-स्कर्ट में
और सितारे हो लेते हैं पीछे

13.
क्या होता गर
तुम देख लेतीं
पलट के इक नज़र
मर जाते हम
आहें सर्द भरकर
या फिर जीते
मर-मर कर।

14.
ज़ुल्फ़ों में लिपटी
ये तेरी हँसी
कयामत को बुलाती है
और तेरा इस क़दर
दिल को तड़पाना
दीवाने को मौत आती है।

15.
काइनात पे भी
बिजली गिराते हो तुम
खुदा को इस क़दर
तड़पाते हो तुम
मुस्करा के दिल चुरा के
क्या खूब सितम
ढाते हो तुम।

16.
कुछ ये शायर अजब
और कुछ हुस्नवाले जवाँ
वो कर गए हर शै बयां
ज़ुल्फ़ से पाँव तक मेरी जाँ

17.
कुछ कुछ खुला है
जालिम की अदाओं का दायरा
कल तक मारती थीं ज़ुल्फ़ें
आज तिरछी नज़र मारती है।

18.
कल शाम मिलूँगा तुमसे
तुम करना मेरा इंतिज़ार
आहट मेरे कदमों की
करेगी तुम्हें बेकरार
सुगन्धि में भिगोकर तुम्हें
फूलों से सजाऊँगा
अंग-अंग महकाऊँगा
प्रेम-पत्र पहनाऊँगा।

19.
खुद से पूछा करता हूँ
अक्सर यही
तेरे दीवानों में कहीं
मैं भी तो नहीं।

20.
खो गए हैं मेरे कुछ लम्हे
तेरी घनेरी काली ज़ुल्फ़ों में
लो आओ पास मेरे
बैठ जाओ सिर गोदी में रखकर
अपने हाथों से इन
ज़ुल्फ़ों को सहला दूँ
खोए हुए लम्हे यहीं-कहीं
तुम्हारी आँखों में
तुम्हारे गालों पे
या फिर लबों पे
नहीं मैं नहीं ढूँढूँगा
तुम बैठी रहो पास मेरे।

21.
गिला हुस्न से
न करना कभी
कि हम दीवानों का
वो खुदा है।

22.
गिरेबां में झाँकते हैं जालिम
दिल तलाशते हैं
ये नहीं सोचते गोया
टुकड़े जोड़ लें।

23.
गर तुझे चलना ही था
मेरे दिल की जमीं पर
तो नंगे पाँव चली आती
यूँ ऊँची हील के
सैंडिल पहन कर
मेरा दिल तो न दुखाती।

24.
गर कोई हसीन
किसी हसीं शाम को
अपने हसीं लबों से
मेरे हसीं शेर पेश करे
तो सच कहता हूँ
ऐ-दिलवाले दोस्तों
उस हसीं शाम को
हसीन के लबों की खैर नहीं।

25.
गर मेरी दीवानगी पर
इस क़दर यकीं था
तो दिल के आइने की
जरूरत न थी हुजूर
बस तेरा इक मुस्कराना काफी था
कत्ल-ए-यार के वास्ते।

26.
घर में छिपे रहते हैं
हुस्नवाले कई ये सोचकर
गर दर से निकले बाहर
तो दीवाने पीछा न छोड़ेंगे

27.
चाँदनी की डोली में
तारों के पथ से
झीने प्रकाश में नहाती
आस्मां का आँचल ओढ़े
मेरी दिलरुबा, प्यार की मिसाल
बेइंतिहा तड़प को देने करार
आएगी जरूर आएगी
तुम देखना
देख नहीं पाओगे।

28.
चलूँगा गर तो तेरे ही पीछे
तुम झटक दो दामन चाहे
थाम लूँगा मगर
दिल भी दामन भी
हाँ गर तुम यूँ चल दी
सब कुछ लुटा दूँगा।

29.
चौराहे पर जा अटकी
जाँ मेरी हसीं की ज़ुल्फ़ों में
अब दिल को सँभालूँ
या जाँ को निकालूँ
इस कशमकश में कहीं
हसीं चली न जाए
पहले उसे थाम लूँ
फिर दिल-ओ-जाँ का
देखूँगा मैं हाल।

30.
छलकाए जा हुस्न-ए-दीवानगी
निगाहों के पैमाने से
ये नाज़-ओ-अन्दाज
प्यास और बढ़ाएँगे।

31.
जानेमन ने ज़ुल्फ़ों की
जंजीर को उलझाते हुए कहा
लिपटी हुई है जान तेरी इनमें
छुड़ा के दिखा तो जानूँ।

32.
भावनाओं की बस्ती में
जाने-तमन्ना तेरी याद चली आई
बेवफ़ा मुझे इस क़दर तड़पाया
तू ख़्वाब बन जो पलकों में समाई।

33.
ज़ुल्फ़ों तले बनाए हमने
आश्-याँ इस दिल की
तमन्नाओं के
हमें न थी ये खबर
कि ज़ुल्फ़ें इस क़दर
उड़ा करती हैं बेदर्द।

34.
 जब तक सोऊँगा नहीं
ये शेर तड़पाएँगे मुझे
ख़्वाबों की तरह
गर मैं सो गया
तो ख़्वाब छोड़ेंगे नहीं।

35.
जाते-जाते बहार
बाग-ए-दिल में यूँ आई
जब हसीना पथ पे
पलट के हौले से मुस्कराई।

36.
जो कहा मुस्कराकर उसने
क्या मेरे हो तुम
हमने कहा ऐ-जान
दिल चीरकर देख लो।

37.
 जब तुम यूँ देखती हो
कुछ तिरछी नज़र से इतरा के
या फिर हुस्न पे अपने शरमा के
सच कहूँ जाने-जिन्दगानी
कुछ कह नहीं पाता हूँ।

38.
 नीली आँखें, गोरे गाल और खुले बाल
देख तुझे बिगड़े कितनों के हाल
यूँ बैठी हो फर्श-ए-आसमां पे
जमीं की रौनक चुरा के।

39.
तुम्हारी आँखें आस-मां
तुम्हारी ज़ुल्फ़ें निशा
तुम्हारे गाल समाँ
तुम्हारे लब महक
तुम्हारी काया चाँदनी
और तुम मेरी प्रेयसी।

40.
तू श्वेत इतनी जैसे
हिम हो पर्वतों की
और तेरे केश इतने घने
जैसे आस्-मां पर निशा उतर आए
तेरी आँखें तारों का समूह
तेरा मुखमण्डल चन्द्र-सा
और तू स्वयं ही
एक अप्सरा की भाँति।

41.
तुम सदा दिखना
इस पथ पर
लबों पे बहार सजा के
मैं कुछ फूल
चुरा लूँगा हर बार
तुम्हारे हसीं लबों से।

42.
तुम पूछोगी क्यूँ कर
प्यार आता है तुम पर
हम भी हाल-ए-दिल कहेंगे
हर हसीं शै पै आता है

43.
तलाश-ए-मुकद्दर को मैं निकला
हर शै ख़ूबसूरत देख मैं फिसला
मिली जो वो घनेरी ज़ुल्फ़ें
देख मैं उलझा, देख दिल उलझा।

44.
तमन्ना है छिपा लूँ
हर ख़ूबसूरत शै
तुम्हारी गहरी नीली आँखों में
और तुम्हें भी
इस जिगर की परतों में।

45. तुम जो बहार चुराके
गालों पे सजाती हो
हम फूलों के बहाने
तुम्हारा चुम्बन लेते हैं।

46
तौहीन हुस्न की
तौबा-ए-दिल
वो खुदा हमारा
सिर झुकाते हैं।

47
तेरी हर अदा को
घूँट-घूँट नज़रों से पिऊँ
तू जो चले अदा से
तेरे खुले बालों की कसम
होश को मेरे
फिर होश न रहे।

48.
बहुत नाज़ था
जिस हुस्न पर तुम्हें
चार दिन में ढल के रह गया
चाँदनी की तरह।

49.
दर्द इस जिगर का
छिपाए नहीं बनता
और जब हों वो पास
तो जताए नहीं बनता।

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