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मनोरंजक कथाएँ >> तीन तिलंगे

तीन तिलंगे

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5010
आईएसबीएन :9788174830241

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अलेक्जेंडर ड्यूमा के प्रसिद्ध उपन्यास थ्री मस्केटियर्स का सरल हिन्दी रूपान्तर....

Teen Tilange

प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश

1

1925 के अप्रैल मास के एक दिन की बात है। उस दिन सोमवार था। फ्रांस के एक नगर में उस दिन बड़ा कोलाहल मचा हुआ था। चारों तरफ लोग दौड़-भाग रहे थे। बच्चे-बूढ़े सभी एक सराय की ओर भागे जा रहे थे। किसी को पता नहीं था आख़िर क्या बात है। देखते-ही-देखते ही सराय के आगे लोगों की भीड़ जमा हो गई। लोग एक नौजवान की ओर देख रहे थे।
उस नौजवान की उम्र अठारह-उन्नीस साल की थी। वह रेशमी कपड़े पहने था और कमर में एक लम्बी तलवार बाँधे था। पास ही उसका घोड़ा खड़ा था, जो देखने में बिलकुल बूढ़ा और मरियल मालूम होता था। लोग इस विचित्र सरदार को आश्चर्य से देख रहे थे और हंसी-मज़ाक कर रहे थे।
यह नौजवान एक छोटा-मोटा ‘तीसमार ख़ां’ था। अगर आपने ‘तीसमार ख़ां’ या ‘डान क्विक्ज़ोट’ की कहानी पढ़ी होगी, तो आसानी से समझ लेगें कि इस विचित्र सरदार व इसके घोड़े को देखने के लिए नगर के इतने लोग क्यों उमड़ पड़े थे।
यह नन्हा तीसमार ख़ां संसार में बहादुरी के काम करने के लिए घर से निकला। उस समय पिता ने इसे अपना सबसे प्यारा घोड़ा दिया और कुछ सीख भी दी।
पिता ने इससे कहा था, ‘‘बेटा, तुम परदेश जा रहे हो, इसलिए मेरी दो-चार बातें याद रखना। मैं तुम्हें अपना यह घोड़ा दे रहा हूं। यह तुम्हारी तरह इसी घर में जन्मा था और अब तक बारह-तेरह साल का हो चुका है। अच्छा सुनो, पहली बात तो यह है कि अगर तुम कभी सौभाग्य से सम्राट के दरबार में पहुंच सको तो तुम अपने ख़ानदान के ऊंचे नाम को न भूलना। अपने ख़ानदान की इज्जत अब तुम्हारे ही हाथ में है। इतना याद रखना कि तुम्हें सम्राट के अलावा और किसी के आगे सिर झुकाने की ज़रूरत नहीं है।

‘‘तुम्हें देने के लिए मेरे पास और कुछ नहीं है, लो यह पन्द्रह क्राउन अपने पास रख लो। दूसरी बात यह है कि तुम्हारी मां ने एक ख़ानाबदोश औरत से एक मरहम बनाना सीखा था। तुम भी इसे बनाने का हुनर सीख लो। इसे किसी घाव पर लगाने से थोड़े ही समय में घाव ठीक हो जाता है।
‘‘इसके अलावा तुम पेरिस में एक पुराने सरदार से ज़रूर मिलना। तुम्हारे लिए उनका जीवन आदर्श है। उनका नाम है मस्यो त्रिवेल। हम दोनों में बड़ी दोस्ती थी। आजकल वे सम्राट के अंगरंक्षकों के सेनापति हैं। उन्हें दस हज़ार महीना क्राउन वेतन मिलता है। लेकिन एक दिन वे तुम्हारे जैसे ही साधारण आदमी थे। मैं उनके नाम तुम्हें एक चिट्ठी लिख देता हूं।’’
इस तरह सीख देकर पिता ने उसको आशीर्वाद दिया और घर से विदा किया। इस नौजवान का नाम दार्ता था। सराय के पास इकट्ठी भीड़ की परवाह न करके दार्ता ने देखा कि सराय की खिड़की में एक लम्बा-तगड़ा आदमी बैठा था और उसकी ओर इशारे करके अपने पास बैठे दो आदमियों से कुछ कह रहा था। दार्ता ने सुना कि असल में वे लोग उसके घोड़े के बारे में हंसी-मज़ाक कर रहे थे। दार्ता को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने सोचा कि देहात का रहने वाला हूं, इसलिए ये लोग मेरा मज़ाक बना रहे हैं, यह सब सहन नहीं करना चाहिए।
वह गुस्से में कांपते हुए बोला, ‘‘क्यों साहब, आप खिड़की में बैठकर अपने को क्या समझ रहे हैं ? मैं जानना चाहूंगा कि आप मुझे देखकर आख़िर हंस क्यों रहे हैं ?’’

उसकी बात सुनकर पहले तो सब चौंके, लेकिन फिर ठट्ठा मारकर हंस पड़े। इससे दार्ता को और भी बुरा लगा और उसका हाथ तलवार की मूठ पर पहुंच गया। यह देखकर उस लम्बे-चौड़े आदमी ने, जो शायद कोई फ़ौजी सरदार था, उस घोड़े की ओर उंगली उठाते हुए कहा, ‘‘यह तुम्हारा घोड़ अब बुढ़ौती के मारे खच्चर हो गया है। इसी मरियल घोड़े को देखकर हम लोग हंस रहे हैं।’’

दार्ता ने कड़ककर कहा, ‘‘घोड़ा देखकर तुम लोग भले ही हंस, लो, लेकिन घुड़सवार को देखकर तुम्हारी हंसी बन्द हो जाएगी।’’
‘‘अच्छा तो यह बात है !’’ यह कहकर सरदार नीचे उतर आया और दार्ता को घूरते हुए बोला, ‘‘जाओ, अभी तुम बच्चे हो।’’ और वह घूमकर दूसरी ओर जाने लगा।
इतने में ही दार्ता ने तलवार खींच ली और गरजकर बोला, ‘‘पीठ फेरकर कहाँ जा रहे हो ? मैं किसी की पीठ पर वार नहीं करता।’’
‘‘कैसा वार ! तुम मुझसे लड़ना चाहते हो ?’’ सरदार ने पलटकर कहा, ‘‘छोकरे, तेरा दिमाग़ तो ख़राब नहीं हो गया है !’’
लेकिन तब तक दार्ता ने उछलकर उस पर वार भी कर दिया। अगर सरदार समय रहते ही हट न गया होता, तो उसका सिर ज़मीन पर आ गिरा होता। अब उसकी समझ में आया कि यह लड़का मज़ाक नहीं कर रहा है। देखते-देखते सरदार के दूसरे साथी भी तलवारें लेकर दार्ता पर टूट पड़े।
लेकिन दार्ता बिलकुल नहीं घबराया। वह उनका मुकाबला करने लगा। सरदार ने अपने साथियों से कहा, ‘‘इसको मारने की ज़रूरत नहीं, इसकी तलवार छीन लो और इसे इसके मरियल घोड़े पर बैठाकर शहर के बाहर निकाल दो।’’
दार्ता ने तलवार चलाते-चलाते जवाब दिया, ‘‘जाओ, जाओ ! तुम्हारे जैसे बहुत देखे हैं ! शहर तो मैं छोड़ ही दूंगा, लेकिन तुम्हारा सिर काटकर छोड़ूंगा।’’

यह सुनकर सरदार ने मन-ही-मन—कहा ऐसा शानदार लड़का तो बहुत दिनों बाद देखने में आया। तब तक एक आदमी की तलवार से दार्ता लड़खड़ा गया और ज़मीन पर गिर पड़ा।
अब तक वहाँ बहुत-से लोग इकट्ठे हो गए थे। सरदार के कहने पर सराय के मालिक ने दार्ता को उठाकर अन्दर कमरे में पहुंचाया। कमरे में ले जाकर उसके मुंह पर पानी के छींटे दिए जाने लगे।
कुछ देर बाद सराय वाले ने आकर सरदार से कहा, ‘‘हुजूर, वह लड़का बेहोश हो गया है, लेकिन बेहोश होने से पहले वह बहुत चीखता-चिल्लाता रहा। वह बार-बार अपने कुरते की जेब पर हाथ रखकर कहता था—मस्यो त्रिवेल को जब यह मालूम हो जाएगा तो वे इन लोगों को मज़ा चखाएंगे। मैं उनके काम से जा रहा था...। वह और न जाने क्या-क्या बड़बड़ा रहा था।’’
यह सुनकर सरदार चौंक पड़ा और बोला, ‘‘क्या कहा ? मस्यो त्रिवेल ? मालूम होता है, उसकी जेब में कोई गुप्त चिट्ठी है।’’
सरायवाला बोला, ‘‘जी हां, जब वह बेहोश हो गया तो मैंने यह काग़ज़ दिखाने के लिए निकाल लिया था। लीजिए यह रही चिट्ठी।’’ यह कहकर उसने चुराई हुई चिट्ठी सरदार को दे दी।
सरदार ने चिट्ठी देखकर कहा, ‘‘ठीक है। लगता है त्रिवेल ने मुझे मारने के लिए ही इस लड़के को यहां भेजा था। लेकिन हो सकता है, ऐसी बात भी हो और यह अपने किसी काम से जा रहा हो। अच्छा, मेरा घोड़ा तैयार करो। मैं ज़रा उस अंग्रेज़ लेडी से मिलकर अभी आता हूं।’’
उधर दार्ता की बेहोशी अब तक दूर हो गई थी। अचानक उसने सुना कि पास के कमरे से किसी के बातचीत करने की आवाज़ आ रही है। उत्सुकतावश वह कान लगाकर सुनने लगा। उसने सुना कि वही सरदार किसी स्त्री से कह रहा था, ‘‘तुम अब इंग्लैण्ड चली जाओ और अगर ड्यूक लंदन चले गए हों, तो तुम इसकी खबर मुझे दे देना। यह सन्दूक अपने पास रख लो। इसमें एक काग़ज़ है, जिसमें आगे के लिए सब कुछ लिखा हुआ है। लेकिन इस सन्दूक को तुम इंग्लैण्ड पहुंचकर ही खोलना। फ्रांस में इसे मत खोलना।’’

फिर दार्ता ने देखा कि अचानक वह सरदार अपने घोड़े पर सवार होकर वहां से निकला और उस स्त्री की गाड़ी दूसरी दिशा में चल दी।
दार्ता का मन हुआ कि वह सरदार का पीछा करे, लेकिन अभी उसके घाव अच्छे नहीं हुए थे और उसका घोड़ा भी इस हालत में नहीं था कि सरदार का पीछा कर सके। वह रात उसने वहीं बिताई। उसके पिता ने जो उसे मरहम दिया था, उससे दो दिन में उसने अपना घाव ठीक कर लिया। फिर वह पेरिस जाने की तैयारी करने लगा।
अचानक दार्ता को अपनी चिट्ठी की याद आई। लेकिन चिट्टी जेब से ग़ायब थी। वह तुरन्त अपनी तलवार निकालकर सरायवाले के पास पहुंचा और उससे चिट्ठी मांगने लगा। पहले तो सरायवाले ने आनाकानी की। लेकिन जब दार्ता ने अपनी तलवार उसकी छाती पर टिका दी तो वह कांपता हुआ बोला, ‘‘हुजूर माफ़ करें, आपकी चिट्ठी मेरे पास नहीं है। लेकिन में जानता हूं कि वह कहां है। दो दिन पहले जिस सरदार से आपकी लड़ाई हुई थी, वही उसे ले गया है। मेरे नौकर ने उसे आपकी जेब से चिट्ठी निकालते हुए देखा था।’’
दार्ता ने दांत पीसकर कहा, ‘‘ठीक है, उसे इसकी सज़ा मिलेगी। पेरिस पहुंचकर मैं मस्यो त्रिवेल को सारा क़िस्सा बताऊंगा और वे तुम लोगों की ख़बर लेंगे।’’
इसके बाद दार्ता ने अपना सामान बांधकर और घोड़े पर सवार होकर वहां से चल पड़ा। पेरिस पहुंचकर उसने पहला काम तो यह किया कि अपने मरियल घोड़े को सिर्फ़ तीन क्राउन में बेच दिया। फिर वह पैदल ही फ्रांस की राजधानी में दाख़िल हुआ। शहर में पहुंचकर उसने एक छोटा-सा मकान किराये पर लिया। दूसरे दिन वह अच्छे कपड़े पहनकर और कमर में तलवार लटकाकर मस्यो त्रिवेल से मिलने के लिए चल पड़ा।

2


जब दार्ता ने मस्यो त्रिवेल की बैठक में प्रवेश किया तो उन्होंने मुस्कराकर दार्ता का स्वागत किया। दार्ता ने ज़मीन छूकर उन्हें प्रणाम किया। मस्यो त्रिवेल ने खुश होकर उसे आशीर्वाद दिया और इशारे से बैठने को कहा। फिर उन्होंने अपने सिपाहियो को आवाज़ दी, ‘‘ऐथोस ! पार्थस ! अरामिस ! ज़रा यहां आओ।’’
उनकी आवाज़ सुनते ही दो सैनिक वहां आ पहुंचे। दार्ता इन दोनों को पहचान गया, क्योंकि मकान के बाहर वह इन दोनों को देख चुका था। उसके आने पर मस्यो त्रिवेल ने कहा, ‘‘क्या तुम लोगों को मालूम है कि कल शाम को सम्राट ने मुझे क्या हुक्म दिया है ? उन्होंने कहा है कि अगर मुझे अपने तिलंगों की पलटन में किसी नये सिपाही को भरती करना हो तो मैं कार्डिनल की टुकड़ी से ही लूं। कुछ समझे तुम लोग ?’’
यह सुनकर उन दोनों सिपाहियों के चेहरे गुस्से से तमतमा उठे दार्ता को लगा कि उसे इस समय यहां नहीं खड़ा रहना चाहिए और इन लोगों को बातचीत करने देना चाहिए। लेकिन मस्यो त्रिवेल को जैसे उसकी उपस्थिति पर कोई एतराज़ नहीं था। वे कह रहे थे, ‘‘सम्राट का कहना ठीक है। जिन शाही सिपाहियों पर मुझे गर्व है, उन लोगों ने आज मुझे कहीं मुंह दिखाने का नहीं रखा। मेरी तिलंगा पलटन आज बदनाम हो गई है। कार्डिनल ने सम्राट को बताया है कि उसके बहादुर सिपाहियों ने तुम लोगों के कई साथियों को कल एक शऱाब-ख़ाने में दंगा-फ़साद के अपराध में गिरफ्तार किया है। मुझे तो बड़ा ताज्जुब है कि कार्डिनल ने तुम दोनों का और ऐथोस का भी नाम लिया है। ऐथोस कहां है ? मैंने तुम तीनों को यहां बुलाया था, लेकिन ऐथोस नहीं आया।’’

अरामिस ने सिर झुकाकर कहा, ‘‘जी, ऐथोस बीमार पड़ गया है।’’
मस्यो त्रिवेल नाराज़ होकर बोले, ‘‘बीमार हो गया है ! देखो, यह सब बेकार की बात है। कार्डिनल के सिपाहियों के हाथ मार खा लेना अच्छा मालूम नहीं होता। उन लोगों ने तुम्हारे सिपाहियों को पकड़ लिया और तुम लोग पीठ फेरकर भाग निकले। छी: ! छी: ! यह तो बड़ी बुरी बात है। दीवान के सिपाहियों ने सम्राट के सिपाहियों को गिरफ्तार कर लिया। वे लोग दो आदमी थे और तुम लोग भी दो थे। लेकिन तुमसे कुछ नहीं बना ! मन होता है कि मैं अपने पद से इस्तीफा दे दूं और तुम लोगों का सरदार न रहूं।’’
यह सुनकर पार्थस बोला, ‘‘हुजूर, आपका कहना सही है। यह ठीक है कि वे भी दो थे और हम भी दो थे। लेकिन जिस तरह उन लोगों ने हमें गिरफ्तार किया था, उसमें उनकी कोई बहादुरी नहीं थी। उन्होंने चोरों की तरह हम पर हमला किया था। हमें अपनी तलवार तक निकालने का मौका नहीं मिला। फिर भी ऐथोस ने उनका मुकाबला करने की कोशिश की, लेकिन वह ज़ख़्मी हो गया। आपको किसी ने झूठमूठ ही बता दिया है कि हम लोगों ने उनके हमले का कोई जवाब नहीं दिया। सच्चाई तो यह है कि जब वे ज़बरदस्ती पकड़कर हमें ले जाने लगे, तो हमने रास्ते में ऐथोस को छुड़ा लिया और फिर हम लोग भाग निकले।’’

फिर अरामिस ने कहा, ‘‘और आपने यह भी सुना होगा कि मैंने ख़ाली हाथों ही उनमें से एक आदमी को ज़मीन पर दे मारा और उसकी तलवार छीनकर उससे उसको ठंडा कर दिया।’’
मस्यो त्रिवेल आश्चर्य से बोले, ‘‘अच्छा ! यह बात है ! मुझे तो किसी ने यह बताया ही नहीं। लगता है कार्डिनल ने सारा किस्सा बढ़ा-चढ़ाकर सम्राट को सुनाया है।’’
इतने में अचानक पास का पर्दा उठा और तलवार के सहारे चलते हुए ऐथोस वहां आ पहुंचा। उसे गहरा घाव था और बहुत खून बह रहा था, जिससे वह बहुत कमज़ोर हो गया था। उसे देखकर सभी लोग चौंक पड़े। मस्यो त्रिवेल आश्चर्य से बोले, ‘‘ऐथोस, तुम !’’
ऐथोस ने गम्भीर स्वर में कहा, ‘‘जी हां, आपने मुझे बुलाया था न ? मुझे कुछ देरी हो गई; कहिए क्या हुक्म है ?’’
मस्यो त्रिवेल ने प्रसन्न होकर कहा, ‘‘मैं अभी तुम्हारे साथियों से कह रहा था कि सम्राट की तिलंगा पलटन के जवान रास्ते में मारपीट करने के लिए हैं। हम सम्राट के अंगरक्षक हैं !’’
लेकिन ऐथोस की कमज़ोरी बढ़ती जा रही थी। वह अधिक देर तक खड़ा नहीं रह सका। उसके पांव लड़खड़ाने लगे और देखते-देखते वह बेहोश होकर ज़मीन पर गिर पड़ा। मस्यो त्रिवेल यह देखकर घबरा उठे और चिल्लाकर बोले, ‘‘हाय, यह क्या ! जल्दी करो, किसी हकीम को बुलाओ !’’

देखते-देखते उस कमरे में कई सिपाही आ पहुंचे और ऐथोस को संभालने लगे। हकीम पास ही रहता था। अरामिस और पार्थस ने बेहोश ऐथोस को उठाकर पास के कमरे में लिटा दिया। वहां हकीम उसका इलाज करने लगा।
इधर मस्यो त्रिवेल ने सब सिपाहियों को वहां से चले जाने को कहा। जब कमरा ख़ाली हो गया तो उन्होंने दार्ता को अपने पास बुलाया और उससे सारा किस्सा पूछने के बाद कहा, ‘‘मुझे पता नहीं था कि तुम मेरे मित्र के लड़के हो। तुम तो मेरे लिए अपने बेटे के समान हो। अच्छा कहो, तुम्हें क्या कहना है ?’’
दार्ता बोला, ‘‘यहां आने से पहले मेरी यही एकमात्र इच्छा थी कि मैं आपके सिपाहियों में भरती हो जाऊं और एक शाही तिलंगे के रूप में काम करूं। लेकिन यहां आकर जो कुछ मैंने अपनी आंखों से देखा, उससे लगता है कि मैं शाही सेना में भरती होने योग्य नहीं हूं।’’
उसकी बात सुनकर मस्यो त्रिवेल ने कहा, ‘‘यह तो ठीक है कि सम्राट की शाही सेना में फ्रांस के चुने हुए बहादुरों को ही जगह दी जाती है। हर किसी को उसमें भरती नहीं किया जाता और भरती सम्राट की आज्ञा से ही होती है। इसके लिए यह ज़रूरी है कि कोई पहले सम्राट को अपनी बहादुरी की सबूत दे और फिर दो साल तक किसी सेना में भरती होकर लड़ाई में अपनी बहादुरी दिखाए। इसके बाद ही उसे शाही सेना की इस तिलंगा पलटन में जगह मिल सकती है।’’
फिर कुछ सोचकर वे बोले, ‘‘मैं तुम्हें निराश नहीं करना चाहता। परन्तु सबसे पहले तुम्हें फ़ौजी तालीम लेनी पड़ेगी। उसमें भी सबको नहीं लिया जाता। बड़े-बड़े अमीरों के लड़के उसमें भरती होने के लिए तरसते रहते हैं। लेकिन मैं तुम्हें सैनिक विद्यालय में भरती करा दूंगा।’’

यह सुनकर दार्ता का चेहरा उतर आया। उसे लगा कि जिस काम के लिए वह घर से निकला है, वह पूरा नहीं हो सकता। वह उदास स्वर में बोला, ‘‘‘क्या करूं महाशय, अब मुझे मालूम हुआ कि उस चिट्ठी को खोकर मैंने कितना नुकसान किया है। अगर वह चोरी न चली गई होती तो शायद आज मुझे इस तरह आपके यहां से खाली हाथ न लौटना पड़ता।’’
मस्यो त्रिवेल ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘कैसी चिट्ठी ? और तुम कहते हो कि वह चोरी हो गई ? भला इतनी हिम्मत किसमें है कि मेरे नाम लिखी गई चिट्ठी को चुरा ले जाए !’’
इस पर दार्ता ने सरायवाली घटना बता दी। उसकी बात सुनकर मस्यो त्रिवेल ने कहा, ‘‘अच्छा, यह बताओ, जिस सरदार के बारे में तुम कह रहे हो, उसके दाहिने घाव पर कोई गाल पर कोई निशान तो नहीं था ?’’
दार्ता याद करके बोला, ‘‘जी हां, आपने उसे ठीक पहचान लिया है। मुझे अच्छी तरह याद है कि उसके गाल पर घाव का निशान बना था। अगर एक बार भी वह मुझे मिल जाए तो मैं उसे अच्छी तरह मज़ा चख़ा सकता हूं।’’

फिर दार्ता ने उन्हें बताया कि किस तरह उस सरदार से उसकी लड़ाई हुई थी। उसने यह भी बताया कि उस सरदार ने एक स्त्री को एक सन्दूक दिया था और कहा था इसमें एक ज़रूरी काग़ज़ है और इंग्लैण्ड पहुंचने के पहले सन्दूक को न खोला जाए। फिर उसने कहा, ‘‘अगर आप मुझे शाही पलटन में भरती नहीं करा सकते तो मुझ पर एक कृपा कीजिए। मुझे उस सरदार का नाम और पता बता दीजिए। मैं उससे अपने अपमान का बदला लेना चाहता हूं !’’
यह सुनकर मस्यो त्रिवेल कुछ गम्भीर हो गए और बोले, ‘‘सुनो दार्ता, अभी जो कुछ तुमने मुझसे कहा है, उसे तुम किसी दूसरे आदमी के सामने मत कहना। यह मैं तुम्हारी भलाई के लिए कह रहा हूं, वरना तुम किसी मुसीबत में फंस जाओगे। अगर उस सरदार से रास्ते में कभी तुम्हारी मुलाकात हो जाए, तो चुपचाप मुंह फेरकर निकल जाना। उससे झगड़ा मोल मत लेना।’’
कुछ देर सोचकर मस्यो त्रिवेल ने आगे कहा, ‘‘अच्छा, अभी तुम जाओ। मैं तुम्हें एक चिट्ठी लिखकर देता हूं, जो तुम्हारे काम आएगी।’’ यह कहकर उन्होंने एक प्रमाण-पत्र लिखा और उस पर अपनी मुहर लगा दी।
दार्ता जैसे ही चिट्टी लेकर बाहर जाने लगा अचानक खिड़की के बाहर उसकी नज़र गई और वह उत्तेजित होकर बोला, ‘‘लो, मिल गया, वह रहा शैतान ! देखता हूं, अब वह किस तरह बच कर जाता है।’’ यह कह कर वह तेज़ी से बाहर की ओर दौड़ पड़ा।
मस्यो त्रिवेल ने उसे रोकने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘‘कौन है, किसे देखा तुमने ?’’
दार्ता बाहर निकलते हुए बोला, ‘‘वही आदमी है, वही जो मेरी चिट्ठी चुरा ले गया है !’’
बाहर निकलते-निकलते दार्ता सीढ़ी पर एक सिपाही से टकरा गया। सिपाही लड़खड़ाकर नीचे जा गिरा। दार्ता बोला, ‘‘माफ़ करना भाई, मैं ज़रा जल्दी में था !

लेकिन इतने में ही उस सिपाही ने उछलकर उसके कुर्ते का गला पकड़ लिया। दार्ता ने देखा कि यह वही ऐथोस नाम का सिपाही था, जिसे अभी कुछ देर पहले त्रिवेल बेहोश हो जाने पर एक कमरे में हकीम के पास सुला आए थे। ऐथोस ने उसे डांटकर कहा, ‘‘लड़के मालूम होता है, तेरा दिमाग़ कुछ फ़िर गया है ! इस तरह किसी को धक्का मारकर तुम आसानी से बच निकलना चाहते हो ! लगता है, तुम्हें कुछ तमीज़ सिखानी पड़ेगी !’’
‘‘अगर मुझे जल्दी न होती तो मैं देखता कि कौन मुझे तमीज़ सिखा सकता है !’’ दार्ता ने क्रोध से कांपते हुए कहा !
ऐथोस बोला, ‘‘ठीक है, तुम अपना काम पूरा कर लो। फिर अगर हिम्मत हो तो पादरियों के मठ के पास वाले मैदान में मुझसे मिलना। मैं बारह बजे तक तुम्हारी राह देखूंगा।’’
‘‘ठीक है, मैं तुमसे निबट लूंगा। मैं कोई कायर आदमी नहीं हूं !’’ यह कहते हुए दार्ता बाहर दरवाज़े पर आ पहुंचा।
दरवाज़े पर पार्थस खड़ा चौकीदार से बातें कर रहा था। वे दोनों इस तरह खड़े थे कि उन दोनों के बीच में से एक आदमी आसानी से निकल सकता था। दार्ता ने उनके बीच से निकलने की कोशिश की, लेकिन उसकी तलवार की मूठ में अटककर पार्थस का कुर्ता फट गया। पार्थस नाराज़ होकर बोला, ‘‘बेवकूफ़ कहीं के ! क्या अन्धे हो गए हो ? देखकर नहीं चल सकते ?’’

दार्ता बोला, ‘‘ असल में ज़रा जल्दी में हूं, मुझे एक आदमी को पकड़ना है, वरना मेरी आंखें तुमसे ज्यादा अच्छी हैं।’’
पार्थस गुस्से से कांपते हुए बोला, ‘‘क्या बक रहा है, लड़के ! जानता नहीं है, तू किससे बात कर रहा है ! लगता है तुझे सिखाना पड़ेगा कि शाही तिलंगे से किस तरह बात करनी चाहिए। !’’
‘‘रहने दो, तुम मुझे क्या सिखाओगे ! लेकिन अगर तुम मुझसे लड़ना ही चाहते हो तो कुछ देर बाद मैं तुमसे भी निबट सकता हूं।’’ दार्ता ने अकड़कर कहा।
‘‘अच्छा ऐसा ? तो फिर तुम मुझसे शाही बाग़ के सामने एक बजे मिलना !’’
‘‘ठीक है, मिल लूंगा !’’ कहते हुए दार्ता बाहर सड़क पर निकल आया और उसी तरह दौड़ने लगा, जिधर उसने अपने दुश्मन को जाते हुए देखा था। लेकिन उसे देरी हो गई थी। वह आदमी वहां से जा चुका था। दार्ता ने ढूंढ़ने की बड़ी कोशिश की, लेकिन वह नहीं मिला।
अपने दुश्मन से बदला लेने का मौका चूक जाने पर दार्ता को बड़ा अफ़सोस हुआ। कुछ दूर आगे चलने पर उसने देखा कि अरामिस नाम का एक दूसरा सिपाही, जिसे उसने मस्यो त्रिवेल की बैठक में देखा था, एक जगह खड़ा कुछ सिपाहियों से बातें कर रहा था। अरामिस भी फ़ौरन उसे पहचान गया। वह उससे कुछ नाराज़ था। उसे याद आया कि मस्यो त्रिवेल उसे डांट रहे थे, तब यह लड़का भी वहां मौज़ूद था।

लेकिन दार्ता के मन में ऐसी कोई बात नहीं थी। उल्टे वह अरामिस से अपनी जान-पहचान बढ़ाना चाहता था। उसने देखा कि अरामिस की जेब से एक रुमाल सड़क पर गिर गया है। जान-पहचान बढ़ाने का मौका देखकर दार्ता ने वह रुमाल उठा लिया और अरामिस को देते हुए कहा, ‘‘लीजिए, यह आपका रुमाल नीचे गिर पड़ा था।’’
लेकिन अरामिस ने उसकी तरफ़ इस तरह घूरकर देखा जैसे उसने कोई अपराध किया हो। सचमुच अनजाने में दार्ता से अपराध हो गया था। बात यह थी कि अरामिस ने मज़ाक-मज़ाक में अपने पास खड़े एक सिपाही की जेब से रुमाल निकाल लिया था। वह उसे छिपाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन रुमाल ज़मीन पर गिर पड़ा था। अब उसकी चाल खुल गई थी। जब उसके साथी उसकी हंसी उड़ाते हुए वहां से चले गए तो उसने दार्ता से कहा, ‘‘क्यों लड़के, तुमको रुमाल छीनने के लिए किसने कहा था ? जानते हो, तुमने क्या कर डाला ?’’
दार्ता ने आश्चर्य से कहा, ‘‘आप इस तरह बिगड़ क्यों रहे हैं ?’’
‘‘क्या हो गया, यह समझने की अक्ल तुम्हारे-जैसे देहाती गंवार में कहां से हो सकती है ?’’
दार्ता को और भी बुरा लगा। वह बोला, ‘‘तुम इस तरह गाली क्यों बक रहे हो ? आख़िर अपने को तुम समझते क्या हो ?’’
अरामिस बोला, ‘‘मैं जो कुछ अपने को समझता हूं, अगर वह जानना ही है तो तुम दोपहर में दो बजे मस्य त्रिवेल की कोठी के सामने मिलना। वहीं मैं तुम्हें बताऊंगा !’’
‘‘ठीक है, मैं तुमसे भी निबट लूंगा !’’ दार्ता ने अकड़कर कहा। इसके बाद दोनों अलग-अलग दिशा में चले गए।



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