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मनोरंजक कथाएँ >> जादू का दीपक

जादू का दीपक

श्रीकान्त व्यास

प्रकाशक : शिक्षा भारती प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5015
आईएसबीएन :9788174830685

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अरब की प्रसिद्ध लोक-कथाएं स्टोरीज फ्रॉम अरेबियन नाइट्स का सरल हिन्दी रूपान्तर...

Jadu ka Dipak

प्रस्तुत है पुस्तक के कुछ अंश

1

मिस्त्र के काहिरा नामक शहर में एक सौदागर रहता था उसका नाम था हसन। वह बहुत अमीर था। रुपये-पैसे, हीरे-जवाहरात तो उसके यहां ढेरों थे। ज़मीन-जायदाद की भी उसे कमी नहीं थी। अपने ज़माने में वह सबसे बड़ा अमीर माना जाता था।
सौदागर का एक लड़का था। वह बड़ा सुन्दर था। जब वह सड़क से निकलता था तो लोग उसे देखते रह जाते थे। उसका नाम था अली। घर में उस्ताद रखकर अली को सब विषयों की शिक्षा दी गई। एक मौलवी साहब उसे कुरान पढ़ाते थे, तो दूसरे उसे हिसाब-किताब की शिक्षा देते थे।
कुछ ही दिनों में वह पढ़-लिखकर तैयार हो गया और अपने पिता के साथ तिजारत में हाथ बंटाने लगा। हसन ने उसे दूर-दूर व्यापार के लिए भेजा और कुछ ही दिनों में बहुत अच्छा सौदागर बना दिया। कुछ दिनों बाद हसन बीमार पड़ा। उसकी बीमारी बढ़ती ही गई। यहां तक कि उसे लगा कि अब बचना मुश्किल है।
उसने अपने लड़के को पास बुलाया और कहा, ‘‘बेटा, यह दुनिया, जिसमें हम लोग रहते हैं, एक न एक दिन खत्म हो जाएगी। लेकिन वह दुनिया, जहां हम मरने के बाद जाते हैं और जहां खुदा का राज है, कभी खत्म नहीं होती। मैं अब उसी दुनिया में जाने की तैयारी कर रहा हूं। मेरी मौत करीब है। चलते-चलते मैं तुम्हें दो-एक बातें कहना चाहता हूं। अगर तुम मेरी सीख के मुताबिक चलोगे तो जिन्दगी-भर आराम से रहोगे और तुम्हें किसी बात की तकलीफ नहीं होगी। लेकिन अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी तो बाद में पछताओगे और तुम्हें बहुत दुख उठाना पड़ेगा।’’

लड़का बोला, ‘‘नहीं अब्बाजान, भला यह कैसे हो सकता है कि मैं आपकी बात न मानूँ ! आप जो कुछ कहेंगे मेरे भले के लिए ही तो कहेंगे। मैं आपकी बात को खूब गौर से सुनूंगा और हमेशा याद रखूंगा।’’
‘‘हां बेटा, मुझे तुमसे यही उम्मीद थी। सुनो, मैं तुम्हारे लिए इतनी बड़ी जायदाद छोड़कर जा रहा हूं। इतनी धन-दौलत, सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात, यह सब तुम्हारा हो जाएगा। अगर तुम रोज़ चार मोहरें खर्च करो, तो यह धन कभी खत्म नहीं हो सकता।
लेकिन बेटा, तुम खुदा को कभी मत भूलना। गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करना। सिर्फ ऐसे ही लोगों का साथ करना जो अच्छे और भले हों और समझदार हों। कभी लालच मत करना और बुरी आदतों से बचना। अपने नौकर-चाकर, बच्चे और बीवी पर दया रखना।’’
लड़के ने सिर झुकाकर बड़े ध्यान से अपने पिता की सीख सुनी और कहा, ‘‘अब्बाजान, यकीन रखिए, मैं आपकी बात को कभी नहीं भूलूंगा।’’
यह सुनकर बूढ़े हसन को बड़ी खुशी हुई। उसने प्यार से अपने बच्चे का सिर चूम लिया और फिर थोड़ी देर में उसकी सांस उखड़ गई। देखते-देखते वह चल बसा।

अब अली पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। सौदागर के मरने पर उसके दोस्त और जान-पहचान के लोग मातमपुर्सी के लिए आने लगे। घर में कोहराम मच गया। रिश्तेदारों ने अली के पिता को कब्रिस्तान में ले जाकर दफन कर दिया। इसके बाद करीब चालीस दिन तक अली अपने अब्बाजान की याद में घर से बाहर नहीं निकला।
अन्त में एक दिन उसके दोस्तों ने उसे आ घेरा। कहा, ‘‘अली, इस तरह कब तक गम मनाओगे ? तुम्हारा सारा रोज़गार और तिजारत चौपट हुई जा रही है। हम लोग तुमसे मिले बिना बड़ी मनहूसी से दिन काट रहे हैं।’’
दूसरे दोस्तों ने उससे कहा, ‘‘चलो, अब बहुत हो गया, बाप तो सभी के मरते हैं। ऐसा भी क्या गम ! अपना घोड़ा निकालो, चलो, कहीं घूम-फिर आएं, या आओ कुछ खाया-पिया जाए। हम तुम्हारा गम दूर करना चाहते हैं।’’ अली ने उनकी बात मान ली। वह उनके साथ घोड़े पर बैठकर घूमने निकल पड़ा। दिन-भर वह उनके साथ घूमता रहा और हंसी-मज़ाक करता रहा। सबने मिलकर खूब खाया और सैर-सपाटा किया। अन्त में शाम को सब अपने-अपने घर लौट आए। अली भी लौट आया।
लेकिन दूसरे दिन वे लोग फिर आ धमके और अली को अपने साथ चलने को कहने लगे। अली ने उनकी बात मान ली। वह फिर उनके साथ चल पड़ा। इस दिन भी उन्होंने खूब अच्छा खाना खाया और खूब शराब पी। उसके दोस्तों ने उससे कहा, ‘‘शराब से आदमी अपना दुख भूल जाता है, लो पियो !’’

अली दिन-भर उन लोगों के साथ खूब शराब पीता रहा। जब वह घर पहुंचा तो उसकी बीवी यह देखकर चौंकी कि उसके मुंह से शराब की बदबू आ रही थी। उसे बड़ा दुख हुआ। उसने सिसकते हुए कहा, ‘‘हाय अल्लाह, तुम तो उन सारी बातों को भूल गए, जिनकी सीख तुम्हारे अब्बाजान मरते वक्त दे गए थे।’’
अली बोला, ‘‘क्यों इसमें क्या हुआ ? ये सब तो मेरे दोस्त हैं। ये सब अच्छे आदमी हैं। सभी सौदागरों के लड़के हैं, उन सौदागरों के जो अब्बाजान के दोस्त थे।’’
इस तरह उसने अपनी बीवी की एक न सुनी। वह अपने दोस्तों को छोड़ने के लिए तैयार न हुआ। दिन-भर वह उनके साथ इधर-उधर घूमता था, बाज़ार में खाता था और अक्सर शराब पीता था। उसके दोस्त बड़े चालाक थे, बहुत पैसा खर्च करा देते थे।
आखिर महीने के अन्त में उसने दोस्तों पर बहुत-सा रुपया बराबर कर डाला। जब उसके खजांची ने हिसाब बताया तो उसने यह कहकर टाल दिया, ‘‘तुम फिक्र न करो, मेरे पास बहुत दौलत है, मैंने जितना महीने-भर में खर्च किया है, इतना अगर रोज़ खर्चकरूँ तो भी मेरी जायदाद खत्म नहीं हो सकती।’’

और वह ज्याद से ज्यादा खर्च करने लगा। इसी तरह तीन साल बीत गए। उसकी बीवी उसे रोकने की बहुत कोशिश करती थी। लेकिन उसने उसकी एक न सुनी। उसने अब्बा की सीखों का भी कोई ख्याल न किया। धीरे-धीरे नकद रुपया खत्म होने लगा तो उसने पुराने जवाहरात बेचने शुरू किए। यहां तक कि दोस्तों के चक्कर में धीरे-धीरे उसके सारे काम उसकी सारी ज़मीन-जायदाद भी बिक गई। अब उसके पास कुछ नहीं बचा।
अंत में एक दिन उसकी बीवी ने उससे कहा, ‘‘देखो, मैं तुम्हें पहले ही कहती थी कि इस तरह तुम अपनी सारी दौलत से हाथ धो बैठोगे। लेकिन तुमने मेरी एक न सुनी। तुम्हारे दोस्तों ने तुम्हारा सब कुछ लुटवा दिया। अब तो हमारे लिए खाना मिलना भी मुश्किल हो जाएगा। जाओ, अपने दोस्तों के पास जाओ। वे बहुत अमीर हैं और सौदागरों के लड़के हैं। मुमकिन है, वे पुरानी दोस्ती का ख्याल करके तुम्हारी कुछ मदद कर दें। उनसे कुछ पैसा मांग लाओ, वरना कल हम सबको भूखा रहना पड़ेगा।’’
अली अपने दोस्तों के पास गया। लेकिन भला अब वे उसे क्यों पहचानने लगे ! किसी ने उसकी मदद नहीं की। सबने उसकी ओर से मुंह फेर लिया। किसी ने उसे एक पैसा तक नहीं दिया। अब जाकर अली की आंखें खुलीं। अन्त में मजबूर होकर वह खाली हाथ घर लौट आया। घर आकर उसने अपनी बीवी से कहा, ‘‘मैं नहीं जानता था कि मेरे दोस्त मौके पर मुझे इस तरह धोखा देंगे। खैर, कोई बात नहीं। यहां तो पैसा मिलना मु्श्किल है, मैं कहीं बाहर सफर पर जाऊंगा। मुमकिन है, खुदा मेरी मदद करे और मेरा काम चल जाए।

उसकी बीवी और बच्चों ने उसे रोते-रोते विदा किया। अली का मन भी भर आया। किसी तरह दिल कड़ा करके वह निकल पड़ा। वह सीधा बन्दरगाह की ओर गया। वहां से एक बड़ी नाव नील नदी के मुहाने पर बसे दामिता शहर की ओर जा रही थी। वहां उसे एक आदमी मिला, जो उसके पिता का मित्र थे। उसने अली से पूछा, ‘‘अली, तुम कहां जा रहे हो ?’’
अली बोला, ‘‘दामिता जा रहा हूं। वहां मेरे कुछ दोस्त रहते हैं। उन्हीं से कुछ मदद मागूंगा, लेकिन मेरे पास इस समय एक भी पैसा नहीं है।’’ उस आदमी को अली पर दया आ गई। उसने उसे कुछ रुपये दिए और खाना खिलाया और फिर जहाज़ पर चढ़ाकर उसे विदा कर दिया।
दामिता पहुंचने पर अली जब जहाज़ से उतरा तो उसकी समझ में यह न आया कि वह कहां जाए और क्या करे। वह यों ही मारा-मारा सड़कों पर घूमने लगा। अचानक एक सौदागर की नज़र उस पर पड़ी। उसकी हालत देखकर सौदागर को उस पर दया आई। वह उसे अपने घर ले गया।
कुछ दिनों तक वह उसी सौदागर का मेहमान रहा। लेकिन ऐसे कितने दिन चल सकता था। अन्त में एक दिन वह उसके यहां से चल पड़ा। किसी ने उसे बताया कि बहुत जल्द ही एक जहाज़ सीरिया जाने वाला है। अली ने तुरन्त ही सीरिया जाने का निश्चय किया। उस सौदागर ने दो-एक दूसरे रहमदिल लोगों ने उसकी मदद कर दी और खाना तथा थोड़ा पैसा दे दिया। अली जहाज़ में बैठकर सीरिया के किनारे पहुंच गया।
वहां से दमिश्क पहुंचा। दमिश्क से कुछ दिनों बाद एक कारवां बगदाद जाने वाला था। अली भी उस कारवां में शरीक हो गया।

असल में एक सौदागर भी उसी कारवां में बगदाद जा रहा था। उसे अली पर तरस आया और उसने उसे अपने साथ ले लिया। रास्ते में उसे अली ने सबकुछ बतला दिया। धीरे-धीरे कारवां बहुत दूर पहुंच गया। अब बगदाद पहुंचने में सिर्फ एक दिन की देरी थी।
लेकिन इसी बीच डाकुओं के गिरोह ने कारवां पर हमला कर दिया। डाकू सबकुछ लूट ले गए। लूट-पाट में उन्होंने बहुत लोगों को मार डाला। लेकिन अली किसी तरह बच निकला और गिरते-पड़ते बगदाद पहुंच गया। जब वह बगदाद के शाही दरवाज़े के पास पहुंचा तो पहरेदार दरवाज़ा बन्द ही करने जा रहे थे। अली ने उनसे मिन्नत करते हुए कहा, ‘‘मुझे अन्दर आ जाने दो।’’
पहरेदारों ने पूछा, ‘‘तुम कहां से आ रहे हो और कहां जाना चाहते हो ?’’
मैं काहिरा से आ रहा हूं। एक काफिला लेकर तिजारत के लिए बगदाद आ रहा था। मेरा पास बहुत सारा सामान था। लेकिन बदकिस्मती से रास्ते में डाकुओं ने हमला कर दिया। किसी तरह जान बचाकर मैं यहां तक पहुंच पाया हूं।’’
पहरेदारों ने उसकी बात पर विश्वास कर लिया। उन्हें उस पर दया आ गई। वे बोले, ‘‘आओ, रात में तुम हमारे यहां ही ठहर जाओ। सवेरे तुम्हारा कुछ इन्तज़ाम कर देंगे।’’

अली ने अपनी जेबें टटोलीं तो अचानक उसे सोने की एक मोहर मिल गई। यह मोहर उसे उसी सौदागर ने रास्ते में दी थी। उसने मोहर एक पहरेदार को देते हुए कहा, ‘‘लो, इससे सब लोगों के लिए खाना खरीद लाओ।’’ उस सोने की मोहर से इतना खाना आया कि पहरेदारों ने खूब दावत उड़ाई। वे लोग बड़े खुश हुए। रात-भर उन्होंने उसे बड़े आराम से अपने यहां टिकाया।
सवेरे पहरेदार उसे अपने साथ लेकर बगदाद के एक बड़े अमीर के पास पहुंचे। अली ने उसे अपनी मुसीबत की कहानी सुनाई। अमीर ने उसकी कहानी पर विश्वास कर लिया। उसे यह सुनकर बड़ा अफसोस हुआ कि अली का सारा माल डाकू लूट ले गए। उसने उसे पहनने के लिए अच्छे कपड़े दिए और फिर अपने एक गुलाम को बुलाकर कहा, ‘‘मसूद, आज से ये तुम्हारे मालिक हैं। इनको ले जाओ, और मेरे जो मकान खाली पड़े हैं, इन्हें दिखा दो। इनको जो मकान पसन्द आ जाए, उसकी चाबी इनको सौंप देना। वहीं ये रहेंगे।’’
गुलाम अली को साथ लेकर चल पड़ा। दोनों एक सड़क पर पहुंचे। वहां तीन मकान आस-पास बने हुए थे। गुलाम ने मकानों की ओर इशारा करके कहा, ‘‘हुजूर, ये मकान मेरे मालिक के हैं। आप इनमें से कोई एक चुन लीजिए। उसी की चाबी मैं आपको सौंप दूंगा।’’

उन तीनों मकानों में बीच वाला मकान सबसे बड़ा था। अली ने पूछा, क्या यह मकान तुम्हारे मालिक का ही है !’’
‘‘जी हां।’’
‘‘जरा इसे खोलो तो, देखें कैसा है ?’’
इस गुलाम ने घबराकर कहा, ‘‘नहीं हुजूर, यह मकान ठीक नहीं है; यह बड़ा खतरनाक मकान है। लोग इसको भुतहा घर कहते हैं। जो कोई रात में इसमें ठहरता है, वह सुबह मरा पाया जाता है। यहां तक कि लोग मरे हुए आदमी की लाश उठाने के लिए भी इसका दरवाज़ा नहीं खोलते। दूसरे मकान की छत से उतर जाते हैं और वहीं से लाश को निकालते हैं। कोई भी इसका दरवाज़ा खोलने की हिम्मत नहीं करता।’’
अली ने कुछ देर तक सोचा फिर गुलाम को हुक्म दिया, ‘‘मैं कहता हूं, इसका दरवाज़ा खोलो ! तुम्हें मेरा हुक्म मानना चाहिए।’’

अली ने अपने मन में सोचा कि ऐसी ज़िन्दगी से तो मर जाना ही बेहतर है। अच्छा है रात में मैं यहीं रहूंगा और सुबह मर जाऊंगा, इस तरह सारी मुसीबतों से छुटकारा मिल जाएगा।
जब वह नहीं माना तो गुलाम ने ताला खोल दिया। अली ने अन्दर जाकर देखा, मकान बहुत ही खूबसूरत था। उसे पसन्द आ गया। वह बोला, ‘‘ठीक है मैं यहीं रहूंगा। मकान की चाबी मुझे दे दो।’’
लेकिन गुलाम ने चाबी नहीं दी। वह बोला, ‘‘नहीं हुजूर, जब तक मुझे मालिक का हुक्म नहीं मिल जाएगा तब तक मैं यह मकान आपको नहीं दे सकता। आप कोई दूसरा मकान ले लें।’’ फिर वह दौड़ा-दौड़ा अमीर के पास गया।
जब अमीर ने यह सुना तो उसने भी अली को समझाने की बड़ी कोशिश की लेकिन उसने एक न सुनी। वह इस बात पर अड़ गया कि अगर मैं रहूंगा तो उसी मकान में रहूंगा वरना बगदाद में और कहीं जाकर टिकूंगा।
अमीर बोला, ‘‘खैर, अगर तुम इस बात पर अड़े हो तो ठीक है, मुझे कोई एतराज़ नहीं। तुम वहीं रहो, लेकिन एक कागज़ पर मुझे पहले यह लिखकर दे दो कि अगर उस मकान में रहने से किसी खतरनाक मुसीबत में फंस गए, या तुम्हें कुछ हो गया तो तुम मुझे दोष नहीं दोगे। मैं इस ज़िम्मेदारी से बरी होना चाहता हूं।’’

अली इसके लिए राजी हो गया। फौरन काजी की अदालत से एक आदमी बुलाया गया। उसने अदालती कागज़ तैयार किया। अली ने गवाहों के सामने उस पर अपने दस्तखत किए। लिखा-पढ़ी हो जाने के बाद सौदागर ने उस मकान की चाबी अली को सौंप दी। फिर उसने गुलामों के हाथ अली के लिए बिस्तर-कपड़े और खाने-पीने की चीज़ें भिजवा दीं। थोड़ी देर बाद अली मकान में बिल्कुल अकेला रह गया।
वह मकान में इधर-उधर घूमकर उसे अच्छी तरह देखने लगा। भीतर आंगन में उसे एक कुआं मिला। उसने कुएं से पानी निकाला। अपना मुंह और हाथ-पैर धोए और नमाज़ पढ़ी। थोड़ी देर बाद सौदागर के घर से एक गुलाम उसके लिए ताज़ा बना हुआ खाना लेकर पहुंचा। लेकिन वह वहां रुका नहीं और खाना रखकर वापस लौट गया।
अली ने दीया जलाया और फिर आराम से बैठकर खाना खाया। खाना खाकर उसने सोने की तैयारी शुरू की। उसने सोचा कि क्यों न मैं अपना बिस्तर ऊपर ले जाऊं। वहां हवा भी अच्छी आती होगी। वह अपना बिस्तर लेकर ऊपर पहुंचा और एक अच्छे-से सजे-सजाए कमरे में बिस्तर लगाकर लेट गया।
थोड़ी ही देर बाद अचानक उसने सुना, कोई कह रहा था, ‘‘अली ! अली ! बताओ, तुम्हें क्या चाहिए ? कहो तो, तुम्हें कुछ सोना भेज दूं।’’

पहले तो अली घबराया। उसकी समझ में नहीं आया कि यह आवाज़ कहां से आ रही है। फिर उसे याद आया कि सौदागर और उसके गुलाम ने यह बताया था कि यह मकान भुतहा है और इसमें रहना खतरे से खाली नहीं है, लेकिन फिर हिम्मत कर उसने जवाब दिया, ‘‘लाओ भेजो, कहां है सोना ?’’
उसका यह कहना था कि कमरे की छत से सोने की मोहरों की वर्षा होने लगी। आधा कमरा मोहरों से भर गया।
इसके बाद फिर आवाज़ आई, ‘‘लो, हमने तुम्हें सोना दे दिया। अब तुम मुझे आजाद कर दो। मैंने अपना काम पूरा कर दिया। मुझे जो सोना तुम्हें देने के लिए मिला था वह मैंने तुम्हें सौंप दिया। अब मुझे यहां से जाने दो।’’
अली बोला, ‘‘लेकिन खुदा के नाम पर यह तो बताओ कि सोना तुझे कहां से मिला है ? इतनी सारी मोहरें यहां कैसे आईं ?’’
उस अजनबी आवाज़ ने जवाब दिया, ‘‘बात यह है कि एक खजाना पुराने ज़माने से इस मकान में रहता चला आया है। अब तक जो आदमी यहां सोने के लिए आया, उससे हमनें यह सवाल किया कि बोलो, ‘‘तुम्हें सोना चाहिए ?’ लेकिन आवाज सुनते ही लोग इस कदर डर जाते थे कि उनकी घिग्घी बंध जाती थी और मुंह से आवाज़ तक नहीं निकलती थी। उन्हें इस तरह डरते हुए देखकर मैं उन पर टूट पड़ता था। और देखते-देखते उनकी गर्दन मरोड़कर भाग जाता था। लेकिन तुम डरपोक नहीं हो। मेरी आवाज़ सुनकर तुम घबराए नहीं। उल्टे तुमने जवाब दिया और मुझसे सोना मांगा। मुझे लगा कि तुम्हीं सोने के असली मालिक हो। इसलिए सारी मोहरें मैंने तुम्हीं को सौंप दीं।

‘‘अब आज से यह खजाना तुम्हारा हुआ। इसके अलावा अरब के यमन नामक शहर में तुम्हारे लिए और खजाना गड़ा हुआ है। तुम वहां जाकर उसे ले लो और मुझे यहां से आजाद कर दो, ताकि अब मैं कहीं और जा सकूं।’’
यहां अली ने कुछ चालाकी से काम लिया। उसने उसे डांटकर कहा, ‘‘नहीं, मैं तब तक तुम्हें आजाद नहीं कर सकता जब तक कि यमन का खजाना मुझे मिल नहीं जाता।’’
उस अजनबी आवाज़ ने कांपते हुए पूछा, ‘‘लेकिन मालिक, अगर मैं वह खजाना तुम्हारे लिए ले आऊं तो क्या तुम मुझको और खजाने के रखवाले गुलाम को आजाद कर दोगे ?’’
‘‘हां, ’’ अली ने जवाब दिया।
‘‘तो मालिक, कसम खाइए !’’
अली ने कसम खाई और कहा, ‘‘लेकिन मेरा एक काम तुम्हें और करना होगा। काहिरा में मेरी बीवी और दो बच्चे रहते हैं। उन्हें तुम आराम से यहां ले आओ।’’
उस जिन ने जवाब दिया, ‘‘ठीक है, हम लोग उन्हें सही सलामत यहां ले आएंगे।’’ फिर वह अली से तीन दिन की छुट्टी लेकर वहां से चल पड़ा।

सवेरे जब उजाला हुआ तो अली ने मकान को अच्छी तरह से देखना शुरू किया। वह अपनी मोहरों को कहीं छिपाकर रख देना चाहता था। एक जगह उसे पत्थर से ढका एक गुप्त दरवाज़ा दिखाई दिया। उसने जब दरवाज़े की कल घुमाई तो दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलने लगा। वह दरवाज़ा एक कमरे में खुलता था, जिसमें मजबूत कपड़े की बहुत-सी बोरियां रखी थीं। अली ने उन बोरियों में मोहरें भरकर उसी कमरे में रखना शुरू किया। अब वह सारी मोहरें कमरे में रख चुका तो उसने दरवाज़ा फिर उसी तरह बन्द कर दिया।
फिर वह नीचे आया और एक कुर्सी पर बैठकर सुस्ताने लगा। इतने में किसी ने दरवाज़ा खटखटाया। उसने दरवाज़ा खोल दिया। वह उस मकान के मालिक का गुलाम था और यह पता लगाने आया था कि रात-भर में अली का क्या हाल हुआ।
जब गुलाम ने अली को सही-सलामत देखा तो मारे खुशी के वह चीख पड़ा। यह पहली बार वह किसी आदमी को उस भुतहे मकान में रात बिताने के बाद ज़िन्दा देख रहा था। वह दौड़ा-दौड़ा सीधे अपने मालिक के पास गया और बोला, ‘‘हुज़ूर, हुज़ूर ! मेहमान तो उस मकान में बड़े मजे से रहा है। जब मैं गया तो वह कुर्सी पर आराम से बैठा था।’’
सौदागर को यह सुनकर बड़ा ताज्जुब हुआ। वह अली के लिए खाना लेकर गुलाम के साथ चल पड़ा। वहां पहुंचकर उसने अली से पूछा, ‘‘कहो बिरादर, क्या हाल हैं ?’’

‘‘खुदा की रहम से सब कुछ ठीक है ! अली ने कहा ‘‘मैंने रात में खाना खाया, फिर कुरान के आयतें पढीं और रात-भर आराम से सोता रहा। मुझे यहां किसी बात की दिक्कत नहीं हुई।’’
सौदागर यह सुनकर आश्चर्य में पड़ गया। फिर वह अपने घर लौट गया, वहां से उसने बहुत-से गुलाम अली के मकान को झाड़-पोंछकर साफ करने के लिए और अच्छी तरह सजाने के लिए भेज दिए।
गुलामों ने थोड़े ही समय में मकान को खूब चमका दिया। अब वह मकान नहीं, एक छोटा-मोटा महल मालूम होता था। आस-पास के लोग मकान को देखने के लिए आने लगे। लोगों ने उससे पूछना शुरू किया, ‘‘तुम्हारा सामान कब तक आने वाला है ? क्या बाल-बच्चे भी आ रहे हैं ?’’
अली ने जवाब दिया, ‘‘हां, वे लोग मेरे सामान के साथ तीन दिन बाद यहां पहुंच जाएंगे।’’
और तीन दिन बाद सचमुच ही जिन लौट आया। उसने अली से कहा, ‘‘चलिए और अपना खजाना संभालिए।’’
जब अली ने यह सुना तो मन ही मन बहुत खुश हुआ। वह दौड़ा-दौड़ा सौदागर के पास गया और बोला, ‘‘चलो भाई, मेरे घर के लोग मेरा सामान लेकर आ रहे हैं, जरा आगे चलकर हम लोग उनका स्वागत करें।’’

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