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राजस्थान की लोक कथाएँ - 3 भागों में

पुरुषोत्तमलाल मेनारिया

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :48
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5027
आईएसबीएन :81-7043-569-7

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राजस्थान की लोक कथाओं का वर्णन....

Rajasthan Ki Lok Kathayein 1 A Hindi Book by Purushottamlal Menariya

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

पुतली की कहानी

चार मित्र थे। इनमें से एक खाती था, एक दर्जी था, एक सुनार था और एक ब्राह्मण था। चारों ने परदेश में जाकर धन कमाने की सोची। और एक दिन ठीक मुहूर्त देखकर अपने गांव से रवाना हो गए। चलते- चलते शाम हो गयी तो एक कुँए के पास रात-वासे के लिए ठहर गए।

सबने भोजन किया और फिर सोने की तैयारी करने लगे। सुनार के पास सोना था इसलिए उसने कहा, ‘‘ भाइयों सबका एक साथ सो जाना ठीक नहीं होगा।’’

दर्जी ने कहा, ‘‘हाँ भाई, ठीक कहते हो। हमको बारी-बारी से पहरे पर जागना चाहिए।’’
ब्राह्मण ने सबके पहरे का समय निश्चित किया। पहरे पर सबसे पहले खाती की बारी आई। वह जागने का प्रयत्न करने लगा किन्तु थकावट के कारण उसको नींद आने लगी। उसने सोचा कुछ काम करना चाहिए।

खाती ने एक लकड़ी का टुकड़ा लिया, औजार निकाले और पुतली बनाने लगा। अपना पहरा खत्म होते-होते उसने लकड़ी की एक सुन्दर पुतली बना ली और फिर दर्जी को जगाकर सो गया।

दर्जी ने देखा पुतली तो बहुत सुन्दर बनी है उसने रंग -रंगीले कपड़े निकाले। पुतली का नाप लिया और फिर सीने लगा। अपने पहरे के समय़ मे उसने पुतली के लिए अच्छी-सी चोली और घेरदार घाघरा तैयार कर लिया। साड़ी के नाप का चूँदड़ी का कपड़ा लिया और पुतली को सभी कपड़े पहना-ओढाकर ख़ड़ी कर दी।...

एक बुढ़िया की कहानी

एक समय की बात है कि राजा भोज और माघ पंडित सैर करने गए। लौटते समय वे रास्ता भूल गए। तब दोनों विचार करने लगे, ‘‘रास्ता भूल गए, अब किससे पूछे ?’’ तब माघ पंडित ने निवेदन किया, ‘‘पास ही एक बुढ़िया गेहूँ के खेत की रखवाली करती है, उससे पूंछे।’’

राजा भोज ने कहा, ‘‘हाँ ठीक है। चलो।’’
दोनों बुढ़िया के पास गए और कहा, ‘‘राम-राम !’’
बुढ़िया बोली, ‘‘भाई ! आओ, राम-राम !’’
तब बोले, ‘‘यह रास्ता कहाँ जाएगा ?’’

बुढ़िया ने उत्तर दिया, ‘‘यह रास्ता तो यहीं रहेगा, इसके ऊपर चलने वाले ही जाएँगे। भाई ! तुम कौन हो ?’’
‘‘बहन ! हम तो पथिक है।’’ राजा भोज बोला।
बुढ़िया बोली, ‘‘पथिक तो दो हैं- एक तो सूरज, दूसरा चन्द्रमा। तुम कौन से पथिक हो, भाई ! सच बताओ, तुम कौन हो ?’’
‘‘बहन ! हम तो पाहुने हैं।’’ माघ पंडित बोला।

‘‘पाहुने दो हैं, एक तो धन, दूसरा यौवन। भाई ! सच बोलो, तुम कौन हो ?’’
भोज बोला, ‘‘हम तो राजा हैं।’’
‘‘राजा दो हैं- एक इन्द्र, दूसरा यमराज। तुम कौन से राजा हो ?’’ बुढ़िया बोली।
‘‘बहन ! हम तो क्षमतावान हैं।’’ माघ बोला।...

ननद-भौजाई की कहानी

एक परिवार में एक लड़का था और एक लड़की। लड़के के एक बहू भी थी। बाप-बेटे दोनों परदेश चलने लगे तो बाप रख गया घी-शक्कर और बेटा रख गया गेहूँ। बहूँ को कहा, ‘‘दोनों मिलकर खाना।’’

बहन ने भौजाई से रोटी माँगी। भौजाई ने कहा, ‘‘रोटी तब दूँगी जब तू सूखी नदी से गीले झाग ले आएगी।’’ तब वह सूखी नदी के पास पहुंची और कहने लगी-
‘‘बाप गयो बनारसी और वीरो गयो परदेश।

निकले क्यूँ नी जीवड़ा, भौजाई दुख देय।’’
तब नदी बोली, ‘‘बहन ! तू मेरी शरण में क्यों आई है ?’’ बहन कहने लगी, मेरी भौजाई ने सूखी नदी से गीले झाग मँगाए हैं और कहा है कि लाएगी तब रोटी मिलेगी।’’ नदी को दया आई तुरन्त बहती हुई आई और किनारे पर झाग छोड़कर चली गई। बहन ने झाग ले जाकर भौजाई को दिए और कहा, ‘‘अब रोटी दो।’’

तब भौजाई ने बोली, ‘‘सूखी नीमड़ी से ताजा निंबोली (नीमफल) लाओ, तब रोटी मिलेगी।’’
बहन सूखी नीमड़ी के पास गई और बोली—
‘‘बाप गयों बनारसी और वीरो गयो परदेश।
निकले क्यूँ नी जीवड़ा, भौजाई दुख देय।’’...

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