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काका की कहानियाँ

सत्यप्रभा पाल

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2001
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5070
आईएसबीएन :81-7043-520-x

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इसमें काका की कहानियों का उल्लेख किया गया है......

Kaka Ki Kahaniyan -A Hindi Book by Satyaprabha Pal

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

नाक की करामात

बच्चो, बहुत पुरानी बात है कि एक लड़ाई में एक राजा के तीन सिपाही बहुत बुरी तरह घायल हो गए। उन्हें मृत समझकर, रणक्षेत्र में ही छोड़, राजा की सेना अपने राज्य में लौट गई। ठंडी हवा के साथ जब वर्षा की बूंदें उन पर पड़ीं तो धीरे-धीरे उन्हें होश आ गया और तीनों पक्के मित्र बन गए, क्योंकि वह आपस में एक-दूसरे का सहारा भी थे। अब समस्या उनके सामने खाने-पीने की थी क्योंकि वे राज्य से दूर रणक्षेत्र में पड़े थे। तीनों ने आपस में शरीर के अनुरूप नाम रख लिए थे,—जो मोटा था, वह मोटू हो गया। जो लम्बा था वह लम्बू हो गया और जो कद में छोटा था वह छोटू हो गया।

वे आपस में इसी नाम से एक-दूसरे को पुकारते। खाने और धन्धे की खोज में ये तीनों सिपाही मित्र निकल पड़े। चलते-चलते इन्हें कई बाग मिले जहाँ के फल खाते ये आगे बढ़ते रहे। पर अभी किसी नगर तक नहीं पहँचे थे कि रात हो गई। इसलिए उन्हें जंगल में ही रात काटनी पड़ी। अब समस्या थी कि जंगली जानवरों से कैसे रक्षा की जाए, सो अन्त में तय हुआ कि एक जागकर पहरा देगा और बाकी दो नींद पूरी करेंगे और जब जागने वाला थक जाएगा तो वह अपने सोते हुए मित्रों में से एक को उठा देगा और स्वयं सो जाएगा।

सबसे पहले लम्बू सिपाही को पहरा का भार सौंपा गया। छोटू-मोटू खर्राटे मारने लगे। लम्बू सिपाही ने लकड़ियाँ बीन कर आग जलाई और चौकन्ना हो पहरेदारी करने लगा। इतने में उसे लाल कोट पहने एक सुन्दर-सा आदमी दिखाई दिया। लम्बू तो अच्छा स्वभाव का था। उसने कहा, ‘‘अरे भाई, दूर क्यों खड़े हो ? आओ आग तापो।’’
इस पर नवागन्तुक बोला, ‘‘तुम तीनों कौन हो ? यहाँ क्या कर रहे हो ?’’
लम्बू ने अपनी रामकहानी सुनाई कि किस प्रकार वे य़ुद्ध क्षेत्र में मृत समझ छोड़ दिए गए थे और अब स्वस्थ होने पर वे नौकरी की तलाश में घूम रहे हैं।


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