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कागज और कलम की कहानी

हरीश यादव

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1998
पृष्ठ :36
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5085
आईएसबीएन :00000

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कागज और कलम की कहानी ...

Kagaj Aur Kalam Ki Kahani -A Hindi Book by Harish Yadav

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

कागज की कहानी

पत्र, पत्रिकाओं, पुस्तकों, अखबार, कापियों, कलेण्डरों, पैकिंग के डिब्बों आदि अनेक वस्तुओं के निर्माण में कागज का ही उपयोग किया जाता है। कागज आज हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गया है। विभिन्न सामग्री के निर्माण में विभिन्न किस्मों के कागज का प्रयोग होता है।

कागज को अंग्रेजी में पेपर कहा जाता है। पेपर शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी शब्द ‘पेपियर’ और ग्रीक शब्द ‘पेपाइरस’ से हुई है। इतिहासविज्ञों का मानना है कि मनुष्य में कला का विकास लगभग तीस हजार वर्ष पूर्व हुआ। इस समय प्रागैतिहासिक मनुष्य ने गुफाओं में प्रस्तरों पर अपने सामाजिक जीवन का चित्रण शुरू किया और फिर जैसे-जैसे सभ्यता का विकास होता गया मानव ने अपनी भाषा और चित्र लिपि का आविष्कार कर लिया तथा उसे लिखने की आवश्यकता महसूस होने लगी। इसका कारण यह था कि चौथी सहस्राब्दी ईसा पूर्व तक मनुष्य का ज्ञान इतना बढ़ गया था कि सभी कुछ याद रखना और मौखिक रूप से दूसरों को बता पाना अब संभव नहीं था। लेखन कला या लिपि का जन्म मिस्र में राज्य की उत्पत्ति के साथ हुआ।

मिस्र में लेखन के लिए बहुत अच्छी सामग्री उपलब्ध थी। वहाँ पेपाइरस नाम की चार-पाँच मीटर ऊँची घास उगा करती थी। इसके तनों को काटकर पतली-पतली परतें निकाल लेते थे और उन्हें आपस में चिपका कर कागज के पन्ने जैसा बना लेते थे। अब इस पन्ने पर नरकुल की कलम और स्याही से लिखा जाता था। अगर पन्ना पूरा नहीं पड़ता तो उस पर नीचे एक और पन्नी चिपका लिया जाता था। इस तरह एक लम्बी पट्टी बन जाती थी। इन पन्नों को पेपाइरस ही कहा जाता था।

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