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हास्य-व्यंग्य >> चोर पुराण

चोर पुराण

विमल कुमार

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :194
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5091
आईएसबीएन :978-0-14-310164

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मेरे भी दो हाथ, दो आंखें, दो कान हैं। मैं भी हंसता-रोता हूं। मैं भी गाने गाता हूं। मैं भी नहाता हूं। मैं भी किसी के घर जाता हूं। मेरी भी पत्नी है, बाल-बच्चे हैं।

Chor Puran - A Hindi Book - by Vimal Kumar

चोर ! चोर ! सुनते ही कान खड़े हो जाते हैं। दिमाग़ आप से आप एलर्ट मोड में आ जाता है। ऊपर से यह चोर पुराण !

चौंकिए मत, जनाब। चौर-विद्या पर हमारे संस्कृत ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है। पहले समय के चोर भी उसूलों वाले हुआ करते थे, मगर आज हालात काफ़ी बदले हैं। इन बदलते हालात से ख़ुद चोर भी हैरान-परेशान हैं। वे भी परेशान हैं कि कौन चोर है और कौन सिपाही ?

इसी माहौल के मद्देनज़र चोर पुराण की महती आवश्यकता महसूस होने लगी थी। हो सकता है, इन मौसेरे भाइयों की सीनाज़ोरी का कुछ राज़ (या दर्दे-जिगर) आप पर भी ज़ाहिर हो जाए।

आवरण फ़ोटो : पूर्णिमा सहाय

मंगलाचरण


चोर ने लिखी एक कहानी
इक कहानी में, सबकी कहानी
सबकी कहानी, सबकी कहानी
चोर ने लिखी एक कहानी

झूठ का है बस बोलबाला
ताक़त का है सब खेल सारा
पर सच की रहेगी हर पल निशानी
चोर ने लिखी एक कहानी
इक कहानी में, सबकी कहानी

लाखों डकारे पर चोर न कहलाए
राजा का वो ही मन बहलाए
जो छल करे वो इनाम पाए
जो तारीफ़ करे वो सम्मान पाए
चोर ने लिखी एक कहानी
इक कहानी में, सबकी कहानी

भांडा फूटे तो सब मिल जावें
अपने को ख़ूब नैतिक कहलावें
कोई न देखे हमारी मजबूरी
हमने देखी सबकी कमज़ोरी
चोर ने लिखी एक कहानी
इक कहानी में, सबकी कहानी

जमा करे जो सोना-चाँदी
वो ही छीने हमारी आज़ादी
आएगी एक दिन इंकलाब की आंधी
बरसेगा तब ख़ूब पानी
चोर ने लिखी एक कहानी
इक कहानी में, सबकी कहानी

ढाई शब्द


पाटलिपुत्र से 140 किलोमीटर दूर पश्चिम में एक साधु बरगद के पेड़ के नीचे बैठा भरी दोपहरी में कथा वाचन कर रहा था। वहाँ पीले रंग के वस्त्रों में काफ़ी स्त्रियां बैठी थीं। राहगीर भी रुक-रुककर साधु के मुंह से कथा सुनते थे। एक दिन यह लेखक भी वहां से गुज़र रहा था। जब उसने देखा कि बरगद के पेड़ के नीचे काफ़ी लोग बैठे हैं तो वह भी वहां उत्सुकतापूर्वक बैठ गया। उसने भी ये कथाएं सुनीं। उसे काफ़ी रोचक लगीं।
लेखक ने उनमें से कुछ कथाएं अपनी कॉपी में उतार लीं। आप भी ये कथाएं सुनिए।

चोर का वक्तव्य


मैं चोर ज़रूर हूं पर एक मनुष्य भी तो हूं।

मेरे भी दो हाथ, दो आंखें, दो कान हैं। मैं भी हंसता-रोता हूं। मैं भी गाने गाता हूं। मैं भी नहाता हूं। मैं भी किसी के घर जाता हूं। मेरी भी पत्नी है, बाल-बच्चे हैं। मां-बाप हैं, भाई-बहन हैं। दादा-दादी नाना-नानी हैं। मेरा भी कोई पड़ोसी है। मैंने भी बचपन में कंचे खेले हैं। मैदान में दौड़ें लगाई हैं। मैंने भी फूल, पत्तियों को छुआ है। फूल मुझे भी अच्छे लगते हैं। उनकी सुगंध ली है। हवा मुझे भी प्यारी लगती है। चांद-सूरज को मैंने भी बड़े प्यार से देखा है।

मैंने भी एक लड़की से प्रेम किया है। उसके प्रेम में रातभर जागा हूं।
स्कूल से भागकर सिनेमाहॉल में फ़िल्में मैंने भी देखी हैं।
मैंने भी चुनाव में वोट डाला है। मैं भी इस देश का नागरिक हूं। मेरे भी कुछ अधिकार हैं। मेरे भी कुछ कर्तव्य हैं।

लेकिन मैंने अगर जीवन भर चोरी की है तो उससे क्या मैं मनुष्य नहीं रह गया। चोर का कलंक मेरे माथे पर लग गया। मैं इस कलंक को मिटा नहीं सकता, धो नहीं सकता। मैं चोर हूं पर इस दुनिया को देखने की मेरी भी एक दृष्टि है। लोकतंत्र में अगर समाज के सारे लोगों की दृष्टियों को मान्यता मिल सकती है, तो मेरी दृष्टि को क्यों नहीं ?

आप जिसे अच्छा कहते हैं, संभव है, मैं उसे अच्छा न कहूं। आप जिसे बुरा मानते हैं, मैं उसे बुरा न मानूं। मेरी भी एक राय है। जैसे आपने मेरे बारे में एक राय बना ली है। वैसे, मैं आपके बारे में भी एक राय बना सकता हूं। जैसे इस दुनिया में औरों के गिल-शिकवे हैं, मेरे भी हैं।

मैं चंद शब्दों में अपीन बात कहना चाहता हूं। तफ़्सील में जाने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है। आप उसे मेरा वक्तव्य समझें या प्रलाप या विलाप। जो भी है, वह आपके सामने इस चोर-पुराण में है।

चोर वंदना


हे ! राजन ! पृथ्वी पर नाना रूप हैं तुम्हारे
तुम्हीं साधु हो, तुम्हीं चोर हो
तुम्हीं सीबीआई के इंस्पेक्टर हो
तुम्हीं दाऊद के रिश्तेदार हो

तुम्हारी कथा अनमोल है
आकाश की तरह तुम फैले हो
समुद्र की तरह तुम चौड़े हो
पर्वत की तरह तुम ऊंचे हो
तुम योजना आयोग की फ़ाइलों में
तुम कितने सुंदर आंकड़े हो
तुम एनडीए हो, तुम यूपीए हो
कितना मधुर संभाषण हो
तुम वोल्कर हो, तुम ही राशन हो

बिस्किट किंग तुम्हें कहते हैं
गुटका सम्राट तुम हो
तुम हो इस्पात नरेश
तुम्हे ही मिलता है राजदरबार में सम्मान
तुम परमवीर हो। शूरवीर हो !
पीएमओ में तुम्हीं हो
तुम्हारा ही जादू चलता है चारों तरफ़
तुम करिश्माई हो, तुम विलक्षण हो
कैमरे में तुम हो, कैसेट में भी तुम हो

तुम्हारी लीला अपरम्पार
तुम्हीं तीनों लोकों के स्वामी
तुम घोटालों में बेताज बादशाह
विष्णु के साक्षात अवतार तुम हो

तुम्हें भेदना असंभव,
तुम चिरंतन, तुम शाश्वत
तुम्हें मेरा शत-शत प्रणाम !

।।चोरों की हरि अनंत कथा।।
चोर का जन्म


चोर का जब जन्म हुआ तो उसके माता-पिता नहीं जानते थे कि वह चोर है। वे तो उसे अपनी नेक संतान समझते थे। उन्होंने उसे पाल पोसकर बड़ा किया। बच्चा भी नहीं जानता था कि वो एक दिन बड़ा होकर चोर बनेगा। उसके माता-पिता भी नहीं सोचते थे कि उनका बच्चा बड़ा होकर चोर बनेगा। वे उसे बहुत लाड़-प्यार करते थे, लेकिन बच्चा बड़ा होकर चोर बन गया। चोर को भी आश्चर्य हुआ कि वह चोर कैसे बन गया ! न तो चोर उस रचना प्रक्रिया को समझ पाया और न ही उसके माता-पिता।

पाद टिप्पणी : लेखक की रचना प्रक्रिया को समझा जा सकता है, पर चोर बनने की प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। इतनी जटिल कि उसे रोकना असंभव है और यही कारण है कि धरती पर सभ्यता के शुरू से ही चोर हर युग में पैदा होते रहे हैं।

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