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हमारी नदियों की कहानी भाग 2

अल. वलीअप्पा

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :64
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 510
आईएसबीएन :81-237-0405-4

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नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित नेहरू बाल पुस्तकालय की बच्चों के लिए एक रोचक पुस्तक...

Hamari Nadiyon Ki Kahani Part 2 - A hindi Book by - Al. Valiappa हमारी नदियों की कहानी भाग 2 - अल. वलीअप्पा

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हमारी नदियों की कहानी

उत्तर भारत और दक्षिण भारत की नदियों में एक खास अंतर है। उत्तर भारत की नदियाँ बारहमासी हैं, यानी पूरे वर्ष उनमें पानी रहता है। बरसात में तो उनमें पानी भरता ही रहता है, हिमालय की चोटियों पर जमी बर्फ भी पिघल-पिघल कर उनको भरती रहती है।

दक्षिण भारत की नदियों को बर्फ का पानी नहीं मिलता। मुख्य नदियाँ दो मानसूनों- दक्षिण-पश्चिमी और उत्तरी-पूर्वी- की वर्षा से ही बनती हैं और उनसे ही पानी मिलता है। अधिकतर दक्षिणी नदियों में, बरसात में और उसके तुरन्त बाद, खूब पानी रहता है, लेकिन जैसे-जैसे गरमी निकट आती है, वे घटती-घटती नाले जैसी हो जाती है और, सूखी-प्यासी, अगली बरसात की प्रतीक्षा करती रहती हैं। दक्षिण की छोटी नदियाँ तो इस कदर सूख जाती हैं कि बच्चे बलुए थाले में खेलते हैं। लेकिन और सब मामलों में, और मनुष्य के दैनिक जीवन में अपनी उपयोगिता की दृष्टि से, उत्तर भारत और दक्षिण भारत की नदियों में कोई अंतर नहीं है। उनके बारे में भी अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं, वे भी पूजी जाती हैं, और उनकी स्तुति में भी गीत गाये जाते हैं। देश के अन्दर एक जगह से दूसरी जगह सामान ले जाने के लिए वे जल-मार्गों का काम भी देती है। इंजीनियरों ने उन पर बाँध बनाकर उनके पानी को जमा करने और उनसे बिजली पैदा करने की भी व्यवस्था कर दी है।
भारत के अधिकतर लोग या तो खेती करते हैं, या खेती से ही संबंधित व्यापारों और धंधों में लगे हैं। खेती के लिए बहुत पानी की आवश्यकता होती है। इस कारण लोगों का जीवन नदियों पर निर्भर करता है, जिसमे हमें पानी मिलता है।



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