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अंतरिक्ष परी सुनीता विलियम्स

आराधिका शर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :93
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5503
आईएसबीएन :81-7315-652-2

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सुनीता विलियम्स के जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण, रोचक एवं प्रेरक प्रसंग...

Antriksh Pari Sunita Williams a hindi book by Aaradhika Sharma & Capt. s.Seshadri - अंतरिक्ष परी सुनीता विलियम्स - आराधिका शर्मा. कैप्टन एस.शेषाद्रि

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भारतीय मूल की अंतरिक्ष वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स का नाम आज कौन नहीं जानता ! यह नाम है एक ऐसा असाधारण महिला का, जिसके नाम अनेक रिकार्ड दर्ज हो चुके हैं। उन्होंने अंतरिक्ष में 194 दिन, 18 घंटे रहकर विश्वरिकार्ड बनाया। यह पुस्तक उसी अप्रतिम महिला की असाधारण इच्छाशक्ति, दृढ़ता, उत्साह तथा आत्मविश्वास की कहानी है। उनके इन गुणों ने उन्हें एक पशु चिकित्सक बनने की महत्वाकांक्षा रखने वीली छोटी-सी बालिका के एक अंतरिक्ष-विज्ञानी, एक आदर्श प्रतिमान बना दिया। अंतरिक्ष में अपने छह माह के प्रवास के दौरान वे दुनियाभर के लाखों लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रहीं।

सुनीता समुद्रों में तैराकी कर चुकी हैं महासागरों में गोताखोरी कर चुकी हैं, युद्ध और मानव-कल्याण के कार्य के लिए उड़ानें भर चुकी हैं, अंतरिक्ष तक पहुँच चुकी हैं और अंतरिक्ष से अब वापस धरती पर आ चुकी हैं और एक जीवन्त किंवदंती बन गई हैं। प्रस्तुत कृति में उनके जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण, रोचक एवं प्रेरक प्रसंग वर्णित हैं।
प्रत्येक आयु वर्ग के पाठकों के लिए पठनी व संग्रहणीय कृति।

भूमिका

सुनीता विलियम्स के जीवन और उनकी असाधारण उपलब्धियों पर आधारित इस पुस्तक के लिए भूमिका लिखना मेरे लिए गौरव की बात है। यह ‘महिला एक, व्यक्तित्व अनेक’ की सच्ची कहानी है : नौसेना पोत चालक, हेलीकाप्टर पायलट, परीक्षण पायलट, पेशेवर नौसैनिक, गोताखोर, तैराक, धर्मार्थ धन जुटानेवाली, पशु-प्रेमी, मैराथन धाविका और अब अंतरिक्ष यात्री एवं विश्व-कीर्तिमान धारक !

एक साधारण व्यक्तित्व से ऊपर उठकर सुनीता ने अपनी असाधारण संभाव्यता को पहचाना और कड़ी मेहनत तथा आत्मविश्वास के बल पर उसका भरपूर उपयोग किया। अपनी असाधारण सफलता से उन्होंने उन लोगों के लिए एक प्रतिमान तैयार किया है, जो उनके पदचिह्नों पर चलना चाहते हैं। यह सफलता उन्होंने अपने स्नेही और सहयोगी परिवार व मित्रों के सहयोग से प्राप्त की है।

पुस्तक में सुनीता की उपलब्धियों के साथ-साथ उनके बचपन से जुड़ी यादों और एस.टी.एस. 116 अभियान की एक सदस्या के रूप में अमेरिकी अंतरिक्ष कार्यक्रम में उनके योगदान का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
सचमुच, यह एक प्रेरक कहानी है।

-विंग कमांडर (से.नि.) राकेश शर्मा
शोध अंतरिक्ष-विज्ञानी, भारत
सोयुज टी-10/ सैल्यूट-7

आमुख


सुनीता लिन पांड्या विलियम्स का जन्म 19 सितम्बर, 1965 को अमेरिका के ओहियो प्रांत में स्थित क्लीवलैंड में हुआ था। उनके पिता और मेरे पति डॉ. दीपक एन पांड्या (एम.डी) हैं, जो भारत के मंगरौल से हैं। मैं सुनी (सुनीता) की माँ बानी जालोकर पांड्या हूँ। सुनी का एक बड़ा भाई जय थॉमस पांड्या और एक बड़ी बहन डायना एन पांड्या है। जब सुनीता एक वर्ष से भी कम की थी तभी हम लोग बोस्टन आ गए थे। हालाँकि बच्चे अपने दादा-दादी, ढेर सारे चाचा-चाची और चचेरे भाई-बहनों को छो़ड़ कर ज्यादा खुश नहीं थे, लेकिन हम सभी ने दीपक को उनके चिकित्सा पेशे में प्रोत्साहित किया।

जिस समय दीपक एक चिकित्सक के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित कर रहे थे, उस समय बच्चे भी अलग-अलग गतिविधियों में संलग्न हो गए थे। मैंने तीनों बच्चों को विभिन्न खेल व संगीत गतिविधियों में लगा दिया था। मुझे बच्चों के लिए खाना पकाना बहुत अच्छा लगता था और स्कूल से लौट कर बच्चे भी बड़े चाव से मेरा पकाया ताजा-ताजा खाना खाया करते थे। बच्चे पहले अपना गृहकार्य करते और फिर तैराकी के अभ्यास हेतु जाने के लिए कार में इकट्ठा हो जाते थे। इन दो घंटों के दौरान मैं बुनाई का काम करते हुए बच्चों को तैरते देखा करती थी। चूँकि दीपक शुद्ध शाकाहारी है, इसलिए मुझे रसोई में दो तरह का खाना तैयार करना पड़ता था—एक भारतीय और एक स्लोवेनियाई। बच्चों को दोनों तरह का खाना दिया जाता था।

बाद में मैंने रात्रिकालीन विद्यालय में बुनाई का प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। जब बच्चे बड़े हो गए तो मैंने स्कूल में पूर्णकालिक आधार पर पढ़ाना शुरू कर दिया और रोज सुबह साढ़े पाँच बजे बच्चों को तैराकी के अभ्यास के लिए भी ले जाती रही। उस समय तक जय ने अपना लाइसेंस प्राप्त कर लिया था; दोपहर के बाद वह हम सबको कार में बैठाकर तैराकी के अभ्यास के लिए ले जाने लगा था। इस प्रकार पांड्या परिवार की दिनचर्या काफी व्यस्त हो गई थी। हमारे पड़ोसी हमें हमेशा आते-जाते देखकर हैरान रहते थे।
जय अमेरिकी नौसैनिक अकादमी में और डायना स्मिथ कॉलेज में पढ़ने लगी थी; लेकिन व्यस्तता अब भी कुछ कम नहीं हुई थी। यूरोप और अमेरिका से दीपक के चिकित्सा सहकर्मी अक्सर आते रहते थे और दीपक के साथ काम करते हुए वे हमारे घर पर ही ठहरा करते थे। व्यवसाय में अपनी उपाधि लेने के लिए मैंने रात्रिकालीन स्कूल में पढ़ाई शुरू कर दी। उधर, सुनीता तैराकी और पढ़ाई में लगी रही। एक बार गर्मियों के दौरान उसने तैराकी प्रशिक्षिका के रूप में भी कार्य किया था।

न्यू इंग्लैंड हमारा घर बन गया था और बोस्टन में रहना सभी को अच्छा लगने लगा था। हम बड़े-बड़े संगीत नाटक, पैट्रिऑट और रेड सॉक्स खेल देखने तथा नदियों, झीलों एवं समुद्र में तैरने के लिए जाया करते थे।
पतझड़ के मौसम में हमें न्यू हैंपशायर और माइन के भ्रमण पर जाना अच्छा लगता था, जहाँ हम वृक्षों के हरे-हरे पत्तों को लाल, पीले और नारंगी रंगों में बदलते देखते थे। बच्चों को डंठल और कद्दू तथा हैलोवीन कपड़े बहुत अच्छे लगते थे, जो मैं उनके लिए तैयार किया करती थी। उन्हें क्रिसमस और धन्यवाद-ज्ञापन के साथ-साथ दीवाली व अन्य भारतीय त्योहार अच्छे लगते थे। इन अवसरों पर मैं उनके लिए गुगरा, हलवा, जलेबी और गुलाबजामुन आदि बनाया करती थी। सर्दियों में सुबह उठकर बर्फ की सफेद चादर देखना सभी को अच्छा लगता था। कभी-कभी डायना और जय खिड़की से बाहर झाँकते हुए सोचने लगते—अरे, आज तैराकी नहीं हो पाएगी। लेकिन उधर, सुनी पहले से तैयार होकर तैराकी के लिए जाने के लिए प्रतीक्षा कर रही होती थी।

गरमियों में हम भ्रमण पर ज्यादा जाते थे। जय और मैं कैंपर को कार में लगाते थे और सुनी और डायना भोजन व कपड़े आदि तैयार करती थीं। उसके बाद हम पहले पालतू कुत्ते को साथ में लेकर दीपक के अस्पताल में पहुँच जाते थे। बच्चों के चचेरे भाई-बहन भी एक-दो सप्ताह के लिए आते थे और समुद्र में तैराकी व नौकाचालन का आनंद उठाया करते थे।
हमारे घर पर रुकना सभी को अच्छा लगता था। हम 4 जुलाई को पार्टी आयोजित करते थे। इस मौके पर मैं सबकी पसंद का खाना बनाती थी और बच्चे अपने दोस्तों तथा परिवार के सदस्यों के साथ वॉलीबाल खेला करते थे। बच्चों के लिए पिकनिक लंच (मध्याह्न भोजन) रखना तथा रेलगाड़ी द्वारा बोस्टन जाकर स्वतंत्रता दिवस समारोह देखना विशेष रूप से पसंद था। वे प्रायः चार्ल्स नदी के किनारे किसी पेड़ पर चढ़कर स्वतंत्रता समारोह पर होनेवाली आतिशबाजी और गीत संगीत का आनंद लेते थे।

सचमुच, बोस्टन का माहौल पलने-बढ़ने के लिए बहुत उपयुक्त था। हमारे कई पारिवारिक मित्र थे। बच्चों के अध्यापक-अध्यापिका भी बहुत अच्छे थे, जिनसे उन्हें ज्ञान एवं सकारात्मक दृष्टिकोण मिला। दीपक के मित्रों से भी बच्चों को अलग-अलग संस्कृतियों की जानकारी मिली फिर अलग-अलग पृष्ठभूमि के माता–पिता मिलने का सौभाग्य भी उन्हें प्राप्त था, जिन्होंने एक साथ मिलकर अपनी कड़ी मेहनत से उनके जीवन को समृद्ध बनाया। जय, डायना और सुनी इस संदर्भ में विशेष थे।

बाद में दीपक बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में शरीररचना विज्ञान और तंत्रिका जीव विज्ञान के प्रध्यापक हो गए। चार दशकों तक उन्होंने बोस्टन सिटी हॉस्पिटल की हावर्ड न्यूरोलॉजिकल यूनिट, बोस्टन वेटरंस एडमिनिस्ट्रेशन हॉस्पिटल के अफासिया अनुसंधान केंद्र और बेडफोर्ड के वेंटरसन एडमिनिस्ट्रेशन हॉस्पिटल में शरीर-रचना पर शोधकार्य किए।

इस कार्य के लिए उन्हें ‘कैजल क्लब डिस्कवरर ऐंड एक्सप्लोरर अवार्ड’ तथा ‘सिग्नोरेट अवार्ड’ मिल चुका है। इस दौरान उन्होंने अपना क्लीनिक कार्य तथा छात्रों को पढ़ाने का कार्य जारी रखा था।
सुनीता लिन पांड्या विलियम्स एक असाधारण एवं विलक्षण महिला हैं। पुस्तक के लेखकद्वय आराधिका शर्मा व कैप्टन एस. शेषाद्रि को उन्होंने अपने जीवन, बचपन आदि से जुड़ी जानकारियों से सहर्ष अवगत कराया है।

-बॉनी पांड्या
केप कॉड, मैसाचुसेटस
संयुक्त राज्य अमेरिका


प्रस्तावना


सुनीता लिन विलियम्स अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र पर अपने छह माह के प्रवास के बाद अब वापस आई हैं, जहाँ उन्होंने एक फ्लाइट इंजीनियर (Flight engineer) के रूप में सेवा की। नासा (NASA) के चौदहवें अभियान (Expedition-14) दल की एक सदस्या के रूप में चार बार कुल 29 घंटे 17 मिनट तक अंतरिक्ष में चलकर उन्होंने महिलाओं के लिए एक विश्व-कीर्तिमान स्थापित किया है, जिसे नासा ने ‘असाधारण वाहनीय कार्य’ (Extravehicular Activity) का नाम दिया है।
सुनीता स्वयं में एक प्रतिमान बन गई हैं। आज वह जिस ऊँचाई तक पहुँची हैं, उसमें उनके जीवन से जुड़े अनेक अनुभवों और प्रभावों का योगदान रहा है, जो उन्हें अपने परिवार और पारिवारिक पृष्ठभूमि से मिले हैं।

अपने पिता से उन्होंने सरल जीवन-शैली, आध्यात्मिक संतोष, पारिवारिक संबंधों और प्रकृति के सुखद सौंदर्य के मूल्यों की परख करना सीखा है।

अपनी माँ से उन्होंने शक्ति और सौंदर्य प्राप्त करने के साथ-साथ हमेशा सकारात्मक, रचनात्मक, प्रसन्नचित्त और तरोताजा बने रहना सीखा है।

अपने भाई से उन्होंने खेल और अध्ययन में कड़ी मेहनत के महत्त्व को समझा है।
उनकी बहन उन्हें जीवन भर की सहेली के रूप में मिलीं तथा उनका अनुकरण करके भी उन्होंने बहुत कुछ सीखा।
तैराकी में अपने प्रतियोगियों से उन्होंने निष्ठा, प्रतिबद्धता व समर्पण तथा जीवन भर के महत्त्व को समझा। साथ ही, अपने प्रतिस्पर्धियों से आगे निकलने के लिए अपनी पूरी शारीरिक ऊर्जा का उपयोग करना सीखा।

नौसेना अकादमी से उन्होंने नेतृत्व और उत्तरजीविता के गुर सीखे तथा पुरुष-प्रधान परिस्थितियों में निडर होकर एक टीम सदस्य के रूप में काम करना सीखा।

नेवी डाइविंग (नौसेना गोताखोरी) से उन्हें पानी के भीतर रहने और काम करने के व्यवहारिक कौशल मिले, जिसका लाभ उन्हें स्वयं को एक सफल अंतरिक्ष यात्री बनाने में भी मिलेगा।

परीक्षण पायलट के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने चुनौतियों को स्वीकार करना सीखा और समस्याओं का हल निकालने के साथ-साथ साहस तथा दृढ़ निश्चय के साथ काम करना सीखा।
अपने पति से उन्हें मित्रता, प्रेम, सम्मान और सुरक्षा का मूल्य समझने को मिला।

गोर्बी—उनका पालतू (जैक रसेल) कुत्ता—से उन्होंने शांति, आनंद और विनोद के महत्त्व के साथ-साथ सहयोग करना सीखा।

सुनीता (पांड्या) विलियम्स के माता-पिता उनके कैरियर की अब तक की यात्रा के बारे में कुछ इसी तरह की बात करते हैं।

यह एक ‘साधारण महिला’ की असाधारण कहानी है, जो अपनी असाधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से प्रोत्साहन व प्रेरणा लेकर सफलता के शिखर पर पहुँची है।

अप्रैल 2007 में जब सुनीता विलियम्स पर कोई पुस्तक लिखने की बात आई तो मैं एवं कैप्टन शेषाद्रि (शेष) तैयार हो गए थे, लेकिन मन में यह प्रश्न उठ लगा कि ‘पुस्तक के लिए आवाश्यक सामाग्री कहाँ से मिलेगी ? न तो सुनीता से हमारी कोई खास निकटता है और न ही उनके परिवार से। मेरा आशय है कि उनके लोग आधे भूमंडल पर फैले हैं, अमेरिका में और वह स्वयं..वह आधे आसमान तक छाई हुई हैं।’
‘कोई बात नहीं, चिंता मत करो, हम सब संभाल लेंगे। शेष ने अपनी चिर-परिचित शैली में कहा था। इससे मैं काफी आश्वस्त हुई थी।
इस प्रकार सुनीता के बारे में हमने जानकारियाँ इकट्ठी करनी और उनका विश्लेषण करना शुरू कर दिया। हमने अपने-अपने शहर (मैं चंडीगढ़ और शेष चेन्नई) में पुराने और भूले-बिसरे पुस्तक भंडारों का भ्रमण किया और उन सभी पुस्तकों, लेखों आदि को पलटना शुरू कर दिया जिसमें सुनीता विलियम्स के बारे में कुछ जानकारी मिलने की उम्मीद थी। इसके साथ ही, मैं अपने सभी मित्रों एवं परिचितों से भी बात की और उनसे पूछा कि क्या उन्हें ‘पांड्या परिवार’ या सुनीता के पति माइकल विलियम्स के बारे में जानकारी है ? शेष कुछ इसी तरह अपने शोध-कार्य में लगे रहे।
अंत में, एक दिन मेरे मित्र रूपिंदर सिंह (जिनका इस पुस्तक में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है) ने मुझे फोन किया। मुझे याद है, वह खुशी से चीखते हुए बोले—मिल गया ! मिल गया !
‘क्या मिल गया आपको ?’ मैंने आश्चर्य और उत्सुकता भरे स्वर में पूछा था। सचमुच उस समय मुझे आर्कमिडीज के ‘यूरेका’ की याद हो आई थी।

‘डॉ. दीपक पांड्या के दफ्तर का फोन नंबर और उनका ई-मेल पता।’ रूपिंदर सिंह ने बताया।
पहले तो हमने अपनी-अपनी खुशी प्रकट की और एक-दूसरे को बधाई दी, उसके बाद मैंने शेष को सारी बात बताई। शेष ने डॉ. पांड्या से पत्र-व्यववार करने की जिम्मेदारी सँभाल ली। कुछ दिनों तक डॉ. पांड्या की ओर से जवाब का इंतजार करने के बाद हमें पता चला कि वह बोस्टन में नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि डॉ. पांड्या आजकल बोस्टन में एक स्नायु-शल्य-विज्ञानी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

अब हम केवल वर्ल्ड वाइड वेबसाइट पर ही निर्भर रह गए थे। पुस्तक के लिए औपचारिक योजना हमने पहले ही बना ली थी और अब हमने उस पर काम भी शुरू कर दिया था। इस प्रकार हमने अपनी पांडुलिपि पूरी करके प्रकाशक के पास अनुमोदन के लिए भेज दी। तभी शेष के पास डॉ. पांड्या की ओर से ई-मेल संदेश आया, जिसमें लिखा था—‘प्रिय कैप्टन शेषाद्रि, आपके ई-मेल संदेश का उत्तर देने में विलंब हुआ, इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ। मैं पिछले सात माह से बाहर हूँ।’ जब शेष ने मुझे इसके बारे में बताया तो मैं खुशी से लगभग चीख पड़ी थी। चीख सुनकर मेरे कार्यालय के सहकर्मी भी उत्सुकता से मेरे पास इकट्ठा हो गए थे।
हमने ढेर सारे प्रश्नों से भरा एक ई-मेल संदेश डॉ. पाड्या के पास भेजा। कुछ ही दिन बाद शेष ने पुनः फोन करके बताया, ‘उत्तर मिल गया है। कई-कई पृष्ठों की सामाग्री के साथ-साथ तश्वीरें भी आ रही हैं।
पूरे पांड्या परिवार—दीपक, बॉनी (उर्सलाइन, सुनीता की माँ) और डायना (बहन)—सबने मिलकर ढेर सारी सामाग्री हमारे पास भेज दी, जिसमें सुनीता और परिवार से जुड़ी पर्याप्त व्यक्तिगत जानकारियाँ थीं। ऐसे में हमें विवश होकर पुस्तक को पुनः लिखने का निर्णय लेना पड़ा। उसके बाद अपनी बहन डायना के माध्यम से सुनीता ने स्वयं अंतरिक्ष (SPACE) से संदेश भेजा, जिसमें कुछ ऐसी बातें थीं, जिन्हें वह पुस्तक में देखना चाहती थी। सारी सामाग्री का अध्ययन करने के बाद बॉनी और दीपक के स्नेह भरे सहयोग के बारे में पता चला, जो वे अपने बच्चों को देते रहे हैं। सुनीता आज अंतरिक्ष में अनुसंधान कर रही हैं, लेकिन इसके लिए आधारभूमि उनके परिवार और भाई-बहनों ने ही तैयार की है; सचमुच, उड़ने के लिए पंख उन्हें परिवार से ही मिले हैं।

इस पुस्तक का लेखन-कार्य मेरे और शेष के लिए एक रोचक अभियान की तरह रहा है। सुनीता जैसे व्यक्तित्व के इतने संमृद्ध, संपन्न, समर्पित और अनुशासित जीवन पर अध्ययन-विश्लेषण और शोध करना सचमुच एक सुंदर अनुभव रहा है। पहले हमने उन्हें एक प्रतिमान के रूप में देखा, लेकिन बाद में हमने उनके भीतर एक मेहनती, स्पष्ट, स्नेही और लक्ष्य-केंद्रित व्यक्तित्व देखा। धन्य है वह परिवार, जिसमें वह व्यक्तित्व पला-बढ़ा है।

-आराधिका शर्मा



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