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हृदय रोग और जनसाधारण

एस. पद्मावती

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :65
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5793
आईएसबीएन :81-237-2102-1

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प्रस्तुत है हृदय रोग संबंधी जानकारियाँ

Hriday Rog Aur Jansadharan

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

हृदय रोग का नाम सुनते ही लोग डर जाते हैं। इसलिए, इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य हृदय रोग को सही परिप्रेक्ष्य में देखना है। इसमें सरल ढंग से बताया गया है कि संरचना और उसके कार्य में विकृति आने पर कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं। हृदय रोग के चिह्नों और लक्षणों, परीक्षण और उपचार(दवा एवं शल्यक्रिया) की सामान्य विधियों तथा रोकथाम के उपायों की विस्तार से चर्चा की गई है। आशा की जाती है कि हृदय रोग के बारे में प्रचलित भ्रांतियों को दूर करने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी।

1
सामान्य हृदय :
संरचना और कार्य


हृदय, मांसपेशियों का बना एक शक्तिशाली पंप है जिसका काम सिर से पैर तक, शरीर के सभी भागों में रक्त पहुंचाना है।


स्थिति, भार और रचना


यह सीने के मध्य से कुछ बायीं ओर, पसलियों और रीढ़ की हड्डी के बीच स्थित होता है। एक वयस्क के हृदय का भार 200-350 ग्राम (पुरुष 250-350 ग्राम; स्त्री 200-300 ग्राम) होता है।
बाहर से हृदय का आकार एक अंडे की तरह होता है जो नीचे की तरफ कुछ नुकीला होता है जहां आप इसे धड़कता हुआ महसूस कर सकते हैं।

अंदर से यह चार कक्षों में विभाजित होता है। दो कक्ष ऊपर की ओर, और दो नीचे की ओर होते हैं। ऊपर वाला कक्ष अलिंद और नीचे वाला निलय कहलाता है। एक मांसपेशीय दीवार, जिसे सेप्टम कहते हैं, हृदय को दाएं और बाएं कक्षों में विभाजित करती है प्रत्येक भाग का कार्य अलग-अलग होता है।

मायोकार्डियम नामक हृदय की मजबूत पेशी, पेरीकार्डियम या हृदयावरण नाम तरल बैग से ढकी रहती है इसे फेफड़े और सीने की दीवार से रगड़ खाने से बचाती है। इसमें भीतर की ओर एक परत होती है जो रक्त के संपर्क में रहती है और एंडोकार्डयम कहलाती है।
कक्षों के बीच वाल्व होते हैं जो एक ही दिशा में रक्त के बहाव को नियन्त्रित रखने के लिए खुलते और बंद होते हैं।


कोरोनरी या परिहृद धमनियां


दो प्रमुख नलिकाएं और उनकी शाखाएं हृदयपेशी को किसी किरीट की तरह ढके रहती हैं। इन्हें परिहृदय या कोरोनरी धमनियां कहते हैं। ये धमनियां मायोकार्डियम को पोषक तत्त्वों एवं आक्सीजन की आपूर्ति करती हैं ताकि वह रक्त को पंप करने का अपना काम कर सके। इसीलिए ये अत्यंत महात्त्वपूर्ण होती हैं।


रक्त वाहिनियां, धमनियां, शिराएं और केशिकाएं


हृदय से रक्त नलिकाओं के एक तंत्र द्वारा प्रवाहित होता है, जिन्हें धमनी कहते हैं। ये धमनियां छोटी और उससे भी छोटी नलिकाओं और अंत में अत्यंत सूक्ष्म नलिकाओं (इन्हें आंखों से नहीं देखा जा सकता), जिन्हें केशिका कहते हैं, में समाप्त होती है।

धमनियां मजबूत और लचीली होती हैं। सबसे बड़ी धमनी का व्यास लगभग 3 से. मी. होता है। यह बाह्य निलय से निकली है और इसे महाधमनी कहते हैं। छोटी और बड़ी शिराएं, अशुद्ध रक्त को शुद्धिकरण के लिए हृदय में वापस लाती हैं। यदि रक्त परिसंचरण की सभी नलिकाओं को आपस में लंबाई में जोड़ दिया जाये तो कुल लंबाई भूमध्यरेखा पर पृथ्वी के व्यास के चार गुना के बराबर होगी।


रक्त : उसके घटक


रक्त, लाल रुधिर कोशिकाओं (इरिथ्रोसाइट), शश्वेत रुधिर कोशिकाओं (ल्यूकोसाइट) और जल से मिल कर बना होता है, जिसमें आक्सीजन, सोडियम, पोटैशियम, शर्करा, यूरिया, लौह और सूक्ष्म मात्रा में अन्य खनिज तथा वसा, प्लेटलेट्स और रेशेदार पदार्थ (फाइब्रिनोजन) घुलनशील या निलंबित अवस्था में होते हैं। इसके साथ इसमें विटामिन और एन्जाएम आदि भी होते हैं।


हृदय के कार्य

दायां ऊपरी कक्ष (दायां अलिंद) अशुद्ध या नीला रक्त ग्रहण करता है। वहां से यह दाएं कक्ष (दाएं निलय) में जाता है जो इसे फेफड़े में भेज देता है, जहां इसमें आक्सीजन मिलाकर इसे शुद्ध किया जाता है। फेफड़ों से शुद्ध लाल रक्त बाएं आलिंद में आता है और वहां से बाएं निलय में जाता है, जहां से इसे महाधमनी द्वारा पंप किया जाता है। रक्त को क्रमशः फेफड़ों और शरीर के सभी भागों में भेजने के लिए दायां और बायां निलय एक साथ संकुचित होते हैं। धमनी और शिराओं का हृदय जाल, परिसंचरण तंत्र बनाता है।


चक्र


1. शरीर से आक्सीजन-अल्प रक्त आकार दाएं अलिंद में जमा होता है जो संकुचित होकर इसे दाएं निलय में भर देता है
2. दायां निलय संकुचित होकर रक्त को फेफ़ड़ों में भेजता है।
3. फेफड़ों में रक्त कार्बन-डाइआक्साइड देकर आक्सीजन ग्रहण करता है।
4. आक्सीजन प्रचुर रक्त दाएं बाएं अलिंद में आता है जो संकुचित होकर उसे बाएं निलय में भर देता है।
5. बाएं निलय के शक्तिशाली संकुचन से आक्सीजन-प्रचुर रक्त महाधमनी में आता है जहां से धमनियों की शाखाएं सारे शरीर में रक्त का संचरण करती हैं।
6. मांशपेशियां और शरीर के अन्य अंगों में रक्त वाहिनियां आक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाती हैं और आंतों में भोजन और पानी का पोषण करती हैं। यकृत पोशक तत्वों को संसाधित करता है और गुर्दों की मदद से रक्त को साफ करता है।

7. आक्सीजन-अल्प रक्त शिराओं द्वारा हृदय में वापस आता है और फिर दूसरा चक्र आरंभ हो जाता है।



नाड़ी


कलाई की धमनी या गर्दन के किसी भी ओर की धमनी पर उंगलियां रखने पर आप शरीर की धमनियों में रक्त के प्रवाह को महसूस कर सकते हैं।
हृदय की क्रिया के दो चरण होते है। पहला प्रकुंचन या सिस्टेल, जब रक्त बाहर जाता है। दूसरा बहुत ही संक्षिप्त विश्राम चरण होता है—संप्रसारण या डायस्टोल।
हृदय के हर स्पंद के लिए एक धड़कन होती है जो एक सिस्टोल और डायस्टोल का मिश्रण होती है।



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