लोगों की राय

हास्य-व्यंग्य >> तिलस्म

तिलस्म

शरद जोशी

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :141
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5923
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

197 पाठक हैं

प्रस्तुत है पुस्तक तिलस्म....

Tilisam

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

भगवान भास्कर अपनी किरणों को समेटकर अस्ताचलगामी हो चुके थे और खूबसूरत चिड़ियाँ गाती हुई दिल पर बेढ़ब असर डाल रही थीं। इस समय शहर से दूर झरने की ओर जानेवाली सड़क पर एक जवान तेजी से चला जा रहा था। चलते-चलते वह फिक्र और तरद्दुद के निशान थे और उसकी गरदन झुकी हुई थी। अभी तक हम पाठकों को इस शख्स का नाम नहीं बताते हैं। और उसके पीछे चलकर देखते हैं कि आखिर वह कहाँ जाता है। कुछ ही दूर चलकर वह दाहिने को मुड़ता है। तीस-चालीस कदम बाद एक ऐसी चौमुहानी पर पहुँचता है,

जिसके बीच में एक चबूतरा बना है। चबूतरे के बीच एक पेड़ लगा है और चबूतरे पर लगे एक पत्थर पर काले अक्षरों में इबारत लिखी हुई है। चबूतरे के चारों तरफ घूमकर देखने वाला इस पत्थर को बखूबी देख सकता है और इबारत पढ़ सकता है। इबारत में पेड़ लगाने वाले का नाम और समय दिया हुआ है। इस चौमुहानी के आसपास बहुत सारे मकान हैं और उन तक पहुँचने के लिए रास्ते बने हुए हैं। सारे मकान एक जैसे हैं,

जिन्हें देख अनजान आदमी ताज्जुब में पड़ जाता है। किसी ऐयार या होशियार शख्स के लिए, जो मकानों पर लिखी संख्याएँ पहचानता है, यहाँ कोई तकलीफ नहीं पड़ती।

वह नौजवान शायद यही का रहनेवाला है या इस बस्ती में कई बार आ-जा चुका है, इसलिए वह सीधा एक खास मकान की तरफ बढ़ता है। मकान क्या, इसे छोटा-मोटा तिलस्म कहिए। आइए देखें, यह शख्स इनमें क्यों जा रहा है और कैसे जाता है। दस कदम कच्चा रास्ता चलने के बाद वह एक गलियारे में घुसता है। गलियारा पक्का है और यहाँ रोशनी भी काफी है। गलियारे के आखिर में चार दरवाजे हैं जो सभी बन्द हैं। ये दरवाजे अलग-अलग मकानों में जाने के लिए हैं,

मगर अक्सर बन्द रहते हैं, क्योंकि मकान के रहनेवाले अपने लिए दूसरे दरवाज़ों का इस्तेमाल करते हैं। इस समय भी दरवाजे बन्द हैं। दरवाजें के सामने एक सीढ़ी है, जो ऊपर को चली गई है। कुछ ही सीढ़ियों के बाद फिर सीढ़ी विपरीत दिशा में मुड़ जाती है। यहाँ हवा और प्रकाश के लिए मोखे बने हैं,

जहाँ से सामने का नजारा भली-भाँति देखा जा सकता है और इस तरह से जिसे देखा जाए उसे पता भी न लगे। यहीं पर एक ताक है जिस पर अलमारी की तरफ पलड़ा लगा हुआ है। पलड़े पर जाली है जिसमें से देखने पर ताक के अन्दर लगे हुए कुछ कल-पुर्जे दिखाई देते हैं। यहीं पर एक खटका ऐसा है जिसे दबाने से कुल कमरों में अँधेरा हो सकता है। पाठकों की जानकारी के लिए हम बता दें कि यह बिजली का मीटर है।

वह शख्स, जिसकी हम बात कर रहे हैं, अब तक सीढ़ियों तक पहुँच गया। यहाँ फिर चार दरवाजे हैं और पता नहीं लगता कि कौन दरवाजा कहाँ गया है और खास तरह से दरवाजा खटखटाता है। दरवाजा अन्दर से बन्द है और यह जाहिर है कि जब तक अन्दर से कोई मद्दगार न हो, वह उसे क्योंकर खोल सकता है। वह फिर दरवाजा खटखटाता है और इस बार अन्दर से एक आवाज़ सुनाई देती है।

कुछ ही पल बाद दरवाजा लगा देता है और उस औरत के साथ एक ऐसी कुरसी पर बैठ जाता है जिस पर चार आदमी बैठ सकते हैं और जिसकी नरम गद्दी मानो थके हुए मुसाफिर को आराम देने के लिए ही बनी है। शख्स ने, जो बहुत थका हुआ लग रहा था, उस कुरसी पर बैठकर पैर फैला दिए और बदन को आराम देने लगा। जिस कमरे में हम एक औरत के साथ इस शख्स को बैठे देख रहे हैं, वह कोई खास बड़ा नहीं है।

वहाँ सामान भी, एक बार देखने से, मामूली दर्जे का लगता है। दीवार पर एक बुजुर्ग की तसवीर लगी है जिनके चेहरे पर सफेद दाढ़ी है व बाल कान के पीछे तक चले गए हैं। बदन पर एक दुशाला या चादर जैसा वस्त्र है और आँखें झुकी हुई हैं। पाठक इसे देखने ही पहचान जाएँगे कि यह रवीन्द्रनाथ की तसवीर है। इसके अलावा कमरे में तसवीरें और हैं जिन्हें गौर से देखने पर पता लगता है कि ये औरतों की तसवीरें हैं। साधारण व्यक्ति तो इसे सिर्फ कुछ लकीरें और धब्बे ही समझेगा, पर जो फन के जानकर और ऐयार हैं, वे इसे देखते ही समझ जाएँगे कि यह मॉर्डन आर्ट है।

सुनिए, वह औरत और आदमी आपस में बातें करने लगे हैं। ज़रूर यह कोई गुप्त बात होगी।
औरत-आज बहुत थके हुए लग रहे हो ?
आदमी-हाँ, आज दफ्तर में बहुत काम था और मैं काफी दूर से पैदल भी आ रहा हूँ।
औरत-क्या रास्ते में रुक गए थे ?
आदमी-मुझे कुछ काम निबटाना था।

औरत-कौन-सा कान था ? क्या कोई खास बात हुई ?

आदमी-किराने वाले का बिल चुकाना है। अब मेरे पास ज़रा भी रम नहीं बची और सारा माह गुज़ारना है।
आदमी के इस आखिरी वाक्य को सुन वह औरत भी चौंक उठी और चिन्ता में पड़ गई। फिर वह धीरे से उठी और अन्दर चली गई। जिस जगह यह आदमी आराम कर रहा था, उसके सामने ही दूसरे कमरे का दरवाज़ा था जिस पर एक पर्दा पड़ा हुआ था। पर्दे के कारण वह अन्दर के हाल साफ तौर से देख तो नहीं सकता था,

पर जब हवा से पर्दा हिलता था, तो अन्दर की कार्यवाही की झलक ज़रूर मिल जाती थी। मगर उसकी आँखें थकान की वजह से बन्द थीं। इसी तरह पाव घड़ी बीत गई और वही औरत एक प्याले में चाय लेकर आई और उस आदमी को उठाने के बाद सामने रखकर चली गई। कुछ देर बाद वह उस कमरे में आई। इस बार उसके हाथों में हुबहू वैसा ही एक प्याला था जिसमें चाय थी। कुछ देर बाद आदमी ने उस औरत से एक सवाल पूँछा, ‘‘बच्चे कहाँ हैं ?’’

‘‘खेलने गए हैं।’’ औरत ने जवाब दिया।
इसके बाद फिर खामोशी हो गई। फिर वह शख़्स सामने वाली मेज़ पर उस प्याले को रख खड़ा हो गया और पर्दा हटाकर अन्दर चला गया। अब उस कमरे में वह औरत अकेली रह गई है।

इस मकान में तीन कमरे हैं, जिनमें तरह-तरह का जरुरी सामान रखा है। वह आदमी तीसरे कमरे में जाकर एक खटका दबाता है, तो कमरे में उजाला हो जाता है। अब कमरे में रखी सभी चीजें साफ दिखाई देने लगी हैं। वह आदमी सामने दीवार में रखी अलमारी खोलता है और कपड़े निकालता है। फिर अपने कपड़े उतारकर दीवारों में लगी खूँटियों पर टाँग देता है और दूसरे कपड़े पहन लेता है। तभी वह स्त्री, जिसे हम पहले कमरे में छोड़ आए हैं, उस आदमी के पास आकर खड़ी हो जाती है।

‘‘पोस्टमैन आज आया था,’’ वह कहती है।
‘‘क्या कोई चिट्ठी आई है ?’’

‘‘हाँ, एक चिट्ठी आई है।’’ वह उत्तर देती है और साथ ही एक लिफाफा निकालकर भी देती है। लिफाफा खुला हुआ है, यानी इससे साफ ज़ाहिर है कि इस आदमी को देने के पहले वह औरत यह चिट्ठी पढ़ चुकी है। जब तक वह आदमी चिट्ठी पढ़ता है औरत उसके चेहरे के भाव देखती है। पूरी चिट्ठी पढ़ने के बाद वह शख्स लम्बी साँस लेता है।
‘‘क्या करें ?’’ वह औरत से पूछता है।

‘‘क्या करें ?’’ औरत जवाब देती है।
‘‘कुछ नहीं किया तो वे लोग क्या सोचेंगे ?’’ आदमी कहता है। औरत कुछ नहीं बोलती और सिर झुका लेती है।
‘‘देखो क्या होता है,’’ कहता हुआ आदमी चिट्ठी उसी अलमारी में डाल पहले कमरे में आ जाता है। चिट्ठी पढ़ने के बाद उसके चेहरे पर फिक्र के निशान बढ़ जाते हैं। वह मेज़ पर से एक किताब उठाता है और उसका निश्चित पृष्ठ खोल पढ़ने लगता है। एक घड़ी-भर तक वह पुस्तक को पढ़ता रहता है

और तभी भय और घबराहट के कारण उसका बदन सुन्न हो जाता है। तिलस्मी शैतान ने बेहोश पड़े प्रभाकरसिंह और चीख मारकर बेसुध हुई मालती को अपने कन्धे पर लाद लिया है और सिंहासन वाले रास्ते से वह उस जगह पहुँच गया है जहाँ चारों तरफ मनुष्य और पशुओं की हड्डियाँ बिखरी हैं। चारों ओर चार मनुष्यों के कंकाल ठीक उसी सूरत के खड़े थे, जैसे शैतान के थे। एकाएक चारों कोनों में खड़े वे हड्डी के ढाँचे कुछ अजीब तरह से हिलने लगे और उनके जबड़े हरकत करने लगे। कुछ देर बाद वे नरकंकाल हिलते-डुलते, लड़खडा़ते आगे बढ़े। उन्हें आगे बढ़ता देख तिलस्मी शैतान ज़ोर से हँसा और बोला, ‘‘लो, आज तुम्हारे लिए खुराक।’’

एक ढाँचे के मुँह से भयानक शब्द निकले, ‘‘क्या इन लोगों को हमारे भोजन के लिए ही लाए हैं ?’’
तिलस्मी शैतान ने जवाब दिया, ‘‘हाँ।’’

तिलस्मी शैतान आग के कुएँ के पास आया और वह सिक्कड़ खोला, जिससे देग बँधा हुआ था। इसके बाद मालती और प्रभाकरसिंह के पास आया और बारी-बारी से एक-एक को उठाकर उसने उसी देग में डाल दिया। तिलिस्मी शैतान ने अब सिक्कड़ पकड़ लिया और देग को धीरे-धीरे उसी अग्नि-कुण्ड में उतारने लगा तथा बाकी के ढाँचों ने हड्डियाँ उठा-उठाकर कुएं में फेंकनी शुरू कीं, जिसके साथ लपटों ने देग को चारों तरफ से घेर लिया। चिरांयध मिली बदबू से वह कोठरी भर गई और वहाँ इतनी गरमी हो गई कि खड़ा रहना मुश्किल हो गया।.....

उस शख्स ने घबराकर किताब रख दी। उससे आगे पढ़ा नहीं गया। उसके चेहरे पर पसीना आ गया। उसे लगा यह सारा मकान किसी तिलस्मी शैतान की देग है और वे लोग प्रभाकरसिंह और मालती की तरह उसमें डाल दिए गए हैं। इस कल्पना से वह घबरा गया। घर की हर चीज अब तिलस्मी हो गई थी। यह पर्दा क्यों हिल रहा है ? इसके पीछे कोई नकाबपोश तो नहीं। अभी पर्दा हटेगा और कोई उस पर आक्रमण करेगा।

तभी दरवाज़ा खटखटाता है। कोई खतरा है। जब दरवाजा खुलता है, एक नई मुसीबत अन्दर प्रवेश करती है। वह दरवाज़ा हिलाने से घबराता है। वह दरवाजा खोलता है। इन बार उसके बच्चे हैं, खेलकर लौटे हैं। वे सीधे उसके पास से अन्दर चले जाते हैं। वह हँस देता है।

नकाबपोश खंजर उठाकर बार करना चाहता है कि उसने देखा कि हाय, यह तो कमलिनी है।



प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book