गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्रीमद्भगवद्गीता श्रीमद्भगवद्गीतागीताप्रेस
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इस गीताशास्त्र में मनुष्यमात्र का अधिकार है, चाहे वह किसी भी वर्ण, आश्रम में स्थिति हो; परंतु भगवान् में श्रद्धालु और भक्तियुक्त अवश्य होना चाहिये; क्योंकि भगवान् ने अपने भक्तों में ही इसका प्रचार करने के लिये आज्ञा दी है तथा यह भी कहा कि स्त्री वैश्य, सूद्र और पापयोनि भी मेरे परायण होकर परमगति को प्राप्त होते हैं।
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