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गांधी : एक जीवनी

कृष्ण कृपलानी

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2004
पृष्ठ :103
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6140
आईएसबीएन :81-237-2167-7

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जब गांधी जी का जन्म हुआ तब भारत में अंग्रेज शासन अपनी जड़ें बड़ी गहराई से जमा चुका था।

Ghandi Ek Jivani A Hindi Book by Krishna Kriplani

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

परिचय

जब गांधी जी का जन्म हुआ तब भारत में अंग्रेज शासन अपनी जड़ें बड़ी गहराई से जमा चुका था। सिपाही विप्लव, महावविद्रोह या स्वतंत्रता का पहला संग्राम इन नामों से पहचाने जाने वाले 1857 के आंदोलन ने अंग्रेज साम्राज्य की जड़ों को मजबूत कर दिया था। लोगों की बुद्धि और संस्कृति पर विदेशी साम्राज्य का प्रभाव पड़ चुका था। लोग अपनी इच्छा से पराधीनता स्वीकार करने लगे थे।

लेकिन भारत को आजादी मिलने से जो गूंगे हो गए थे उन्हें आवाज मिली। अहिंसा का ऐसा शस्त्र मिला जो अंग्रेजों की बंदूकों से अधिक शक्तिशाली था। जो संसार के शस्त्रागार में अनूठा था। जो किसी को मारे बिना विजय प्राप्त करता था।
इस चमत्कार की कहानी ही गांधीजी के जीवन की कहानी है। ऐसी ऐतिहासिक घटना के रचयिता और प्रणेता स्वयं गांधीजी थे। इसलिए ऋणी राष्ट्रवासी उन्हें राष्ट्र पिता कहते हैं।

राष्ट्रपिता तो इस दुनिया में कई हुए। उनमें से कुछ न भी होते तो चल जाता। लेकिन गांधीजी राष्ट्रपिता से भी अधिक थे। उनकी सिद्धियां अनेक हैं। प्रत्येक का अमल और उसका परिणाम उन्हें संसार में यश और गौरव दे सकता था।
‘अस्पृश्यों’ के लिए गांधीजी ने जो काम किया वह भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। सदियों से उनके पैरों में जाति प्रथा के अत्याचार और सामाजिक हीनता की बेड़ियां पड़ी थीं गांधीजी ने उन्हें तोड़ डाला।


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