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नेहरू बाल पुस्तकालय >> रंग बिरंगी मुर्गी

रंग बिरंगी मुर्गी

गिजुभाई बधेका

प्रकाशक : नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :33
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6236
आईएसबीएन :81-237-4786-1

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कहानी कहूँ ताजा, सुन लो मेरे राजा, राजा ने बनाया महल, चूहा तो गया दहल...

Rang Birangi Murgi A Hindi Book by Gijubhai Badheka

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लड्डू चोर

कहानी कहूँ ताजा, सुन लो मेरे राजा, राजा ने बनाया महल, चूहा तो गया दहल, चूहे ने खोदा कुआँ, उस में निकली बुआ, बुआ ने पिरोई सूई, ताउ जी बोले उई, नाना ने दिए दाम, तब नानी ने खाए आम, गुठलियाँ मैंने बाग में डाली, बाग ने मुझे पेड़ दिये। पत्ते मैंने बकरी को डाले, बकरी ने मुझे दूध दिया,

दूध मैंने मोर को पिलाया, मोर ने मुझे पंख दिया, पंख मैंने राजा को दिखाया, राजा ने मुझे घोड़ा दिया, घोड़ा मैंने बबूल में बाधा, बबूल ने मुझे काटा दिया, काटा मैंने पर्वत को चुभोया पर्वत की हवा निकल गई, बन गया पर्वत इतना छोटा, जैसे हो चूहा तगड़ा मोटा, चूहे ने दिया मिट्टी का ढेर, मिट्टी मैंने कुम्हार को दे दी, कुम्हार ने एक गगरी बनाई, गगरी मैंने माली को दे दी। माली ने मुझे फूल दिए, फूल मैंने भगवान को चढ़ाए, भगवान ने मुझे लड्डू दिए।
डिंग-शास्त्र
एक था ब्राह्मण। वह काशी से ज्ञानप्राप्त कर आया था। काम की तलाश में था। तभी उसे पड़ोस के गाँव से न्योता मिला। वह कथा सुनाने पहुंच गया। उसे आया देख गाँव के पंच इकट्ठा हुए और उसे मुखियाँ के घर ले आए। वहां उसके रहने का अच्छा इन्तजाम हो गया। दोपहर को बढ़िया भोजन मिला। घंटा भर विश्राम कर ब्राह्माण चौपाल पर आया।

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