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बाल एवं युवा साहित्य >> लवकुश

लवकुश

प्लानेट

प्रकाशक : प्लेनेट पब्लिकेशन प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6237
आईएसबीएन :81-903593-5-5

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Lava Kusha-A Hindi Book by Planet

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लवकुश


चौदह वर्ष के पश्चात् जब श्री राम अयोध्या लौटे तो प्रजा ने उनका स्वागत किया व उन्हें अपना राजा स्वीकार किया। श्रीराम के राज्य में प्रजा सुखी व सुरक्षित थी।
राम अपनी प्रजा के सुख-दु:ख का ध्यान रखते थे।
सायं काल में वह अपनी महारानी ‘सीता’ के साथ अपने दूतों से मिलते थे जो उन्हें अयोध्या के बारे में जानकारी देते थे।
एक दिन उनके दूत ने बताया कि उनके राज्य में एक धोबी है जो कल अपनी पत्नी को पीट रहा था। और पीटते-पीटते बोल रहा था कि मैं राम नहीं हूँ। जो दूसरे के घर रही औरत को अपना लूँ।
यह सुनकर राम चिन्तित हो गए।

उन्होंने सोचा कि यदि आज यह विचार एक व्यक्ति का है और कल कहीं पूरी प्रजा इस बात को स्वीकार कर ले तो। प्रजा का मेरे प्रति विश्वास समाप्त हो जाएगा। और प्रजा के प्रति मेरा कर्तव्य सर्वोपरि है। इसलिए मुझे सीता का त्याग करना होगा। वह चिन्तित थे कि वह यह बात सीता को कैसे कहें।

इसलिए राम ने लक्ष्मण को बुलवाया और कहा कि तुम सीता को वन में छोड़ आओ।
लक्ष्मण ने इस बात का विरोध किया परन्तु श्रीराम ने कहा कि यह मेरा आदेश है।
लक्ष्मण न चाहते हुए रथ ले आए। और कुछ ही क्षण में वह सीता को लेकर वन की ओर चल दिए।
वन पहुँच कर लक्ष्मण के हृदय में विचार आने लगे कि वह सीता को इस भयानक वन में कैसे छोड़ दें परन्तु भईया का आदेश तो मानना ही होगा।

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