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झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक

महेन्द्र कुलश्रेष्ठ

प्रकाशक : राजपाल एंड सन्स प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 642
आईएसबीएन :81-7028-429-5

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प्रस्तुत पुस्तक में कलाम के जीवन का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया गया है...

Jhopadi se Rashtrapati Bhawan Tak - A hindi Book by - mahendra kulasresth झोंपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक - महेन्द्र कुलश्रेष्ठ

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मछुआरे की झोंपड़ी से भारत के राष्ट्रपति पद पर पहुँचे, जन जन के प्रिय, लाखों बच्चों के चाचा, शासकों से लेकर पत्रकारों, वैज्ञानिकों, उद्योगपतियों, व्यापारियों, किसानों सभी को अपनी अपूर्व योजनाओं से प्रेरित करने वाले, कवि, संगीतकार-सभी दृष्टियों से अतुलनीय अनुपम व्यक्तित्व भारतरत्न डॉ.अब्दुल कलाम के जीवन तथा उनकी योजनाओं का चुने हुए शब्दों में ‘फोकस्ट’ परिचय-जिसका सन् 2020 तक देश को समृद्ध तथा सामर्थ्यवान बनाने में उपयोग किया जा सकता है।
प्रत्येक नागरिक तथा युवा पीढ़ी के लिए विशेष रूप से पठनीय।

राष्ट्रपति डॉ.अब्दुल कलाम के विषय में बहुत कुछ लिखा गया है और लिखा जा रहा है-जिसमें मुख्य दो पुस्तकें उनकी अपनी ही हैं-परंतु ऐसी पुस्तक अभी कोई नहीं आई है जिसमें संक्षेप में सरल सुयोजित शब्दों में, उनके जीवन और देश के लिए उनके मिशन की पूरी जानकारी हो। उनके जबरदस्त प्रेरणापूर्ण जीवन के साथ देश को कुछ ही वर्षों में परम समृद्ध और शक्तिशाली बनाने की उनकी योजनायें भी महत्वपूर्ण हैं जिनको भलीभांति समझकर प्रत्येक भारतीय, विशेषकर युवा पीढ़ी को, परिश्रमपूर्वक पूरा करना है।

यह पुस्तक इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए लिखी गई है। इसमें ‘कैपस्यूल’ की तरह सभी संबंधित विषयों को इस तरह समो दिया गया है कि आज के बच्चे भी इसे बड़ी आसानी से समझ सकेंगे-बच्चे, जिन्हें जगाने का कार्य डॉ. कलाम ने राष्ट्रपति बनते ही बड़ी शिद्दत के साथ करना आरंभ कर दिया है।
आज़ादी भारत का पहला सपना था जो पूरा हुआ, और अब डॉ.कलाम ने देश को यह दूसरा सपना और मिशन दिया है जिसे पूरा करने में यह पुस्तक सहायक होगी।

दो शब्द


राष्ट्रपति डॉ. कलाम के संबंध में यह छोटी पुस्तक लिखने के कई कारण हैं-और सभी को मैं विशेष मानता हूं। पहला तो यही कि वे जिस तेजी के साथ देश को विकसित तथा शक्तिशाली बनाने का मिशन लेकर भारतीय आकाश में उदित हुए, वह चमत्कारी होने के साथ साथ देश की सर्वोपरि आवश्यकताओं का उत्तर प्रस्तुत करता है। दूसरे, जिस विलक्षण ढंग से उन्होंने अपने कार्य की शुरुआत की है उसे ‘अनुपम’ ही कहा जा सकता है-ऐसा राष्ट्राध्यक्ष भारत में तो कभी हुआ नहीं, बाहर भी शायद न हुआ हो। उन्हीं की भाषा को उधार लेकर कहें तो यह ईश्वर की ही प्रेरणा से हो रहा है-जिस पर वे अत्यन्त विश्वास करते हैं।

एक कारण यह है कि उन पर यद्यपि बहुत कुछ छपा है, जिसमें काफी-कुछ उन्होंने स्वयं भी लिखा है, और दूसरों द्वारा संपादित कुछ बेकार भी हैं, परंतु ऐसी कोई पुस्तक सामने नहीं आई है जिसमें संक्षेप में, सरल शब्दों में, ‘फोकस’ के साथ उनके जीवन तथा मिशन की सभी बातें रखी गयी हों। जीवन में तो उनके ज्यादा कुछ है भी नहीं, उनका कार्य उच्च विज्ञान से संबंधित होने के कारण पढ़ने में कठिनाइयाँ प्रस्तुत करता है-हम भारतीयों की मानसिकता विज्ञान से दूर है-डी.आर.डी.ओ., एस.एल.वी. आदि पारिभाषिक शब्द बार-बार उपस्थित होकर समझने में उलझनें पैदा करते हैं।
इसी के साथ उनका मिशन और कार्ययोजना सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं है, काम करने के लिए भी, या ही, है। हम भारतीय इन्हें आसानी से समझ सकें और इनके अनुसार कार्य कर सकें, इसलिए इन्हें सूत्रों की तरह स्पष्ट करके प्रस्तुत किया गया है। टाइप भी बड़ा इस्तेमाल किया गया है।

डॉ. कलाम ने हमारे समाज, मानसिकता, प्रशासन, विधि-विधान सभी की कमियों को भी जगह-जगह रेखांकित किया है। इनका विशेष महत्व है। इन्हें चुन-चुनकर प्रस्तुत किया गया है जिससे ये हमारी मार्गदर्शिका बन सकें।
अंग्रेजी में कहूँ तो इसे मैं सामान्य भारतीय की ‘हैंडबुक ऑफ डॉ. कलाम एण्ड हिज़ मिशन’ कहना चाहूंगा।
अंतिम कारण राजपाल एण्ड सन्ज़ के स्वामी श्री विश्वनाथ रहे जिन्होंने पीछे पड़कर यह काम करवा ही लिया। 84 वर्ष की दीर्घायु में एक तरह से इस राष्ट्रीय महायज्ञ के प्रति यह उनकी भी विनम्र श्रद्धांजलि है।
इसे अंग्रेजी में भी करने का विचार है।

-लेखक


‘‘धर्म राष्ट्र से ऊपर नहीं है। किसी भी धर्म या व्यक्ति को राष्ट्र की अस्मिता से खेलने नहीं दिया जाना चाहिए।
‘‘यदि धर्मों का शक्तीकरण किया जाए तो वे प्रखर आध्यात्मिक चेतना जगाकर विश्व में शान्ति स्थापित कर सकते हैं’’

-डॉ. अब्दुल कलाम


मेरी कहानी


‘‘मेरी कहानी जैनुल आबदीन के बेटे की कहानी है जो रामेश्वरम् की मस्जिद वाली गली में सौ साल से ज्यादा तक रहे और अपना शरीर छोड़ा। यह उस किशोर की कहानी है जिसने अपने भाई की मदद के लिए अखबार बेचे। यह कहानी शिव सुब्रह्मण्यम् अय्यर और अयादुरै सोलोमन के शिष्य की कहानी है। यह उस छात्र की कहानी है जिसे पनदलाई जैसे शिक्षकों ने पढ़ाया। यह उस इंजीनियर की कहानी है जिसे एम.जी.के. मेनन ने उठाया और प्रो. साराभाई जैसी हस्ती ने तैयार किया, और एक ऐसे टीम के नेता की कहानी है जिसे बड़ी संख्या में विलक्षण व समर्पित वैज्ञानिकों का समर्थन मिलता रहा।

‘‘यह छोटी सी कहानी मेरे जीवन के साथ खत्म हो जाएगी। मेरे पास न धन है, न सम्पत्ति, न मैंने कुछ इकट्ठा किया, न ऐसा कुछ बनाया जो शानदार हो, ऐतिहासिक हो, आलीशान हो। मैंने अपने पास कुछ नहीं रखा है-न मेरा परिवार है, न बेटी-बेटा। मेरे परदादा अबु पकिर और पिता जैनुल आबदीन की पीढ़ी अब्दुल कलाम के साथ खत्म हो जाएगी-परंतु उस सार्वभौम ईश्वर की कृपा इस पुण्यभूमि पर कभी खत्म नहीं होगी।
‘‘मैं नहीं चाहता कि मैं दूसरों के लिए कोई उदाहरण बनूँ लेकिन मुझे विश्वास है कि कुछ लोग मेरी जीवन-कहानी से प्रेरणा जरूर ले सकेंगे और अपने जीवन में संतुलन लाकर वह सन्तोष प्राप्त कर सकेंगे जो केवल आत्मा के जीवन में ही पाया जा सकता है।

-अब्दुल कलाम


1

अनुपम राष्ट्रपति


विश्व में अमेरिका ही अकेला ऐसा देश है जहाँ झोपड़ी से ऊपर उठकर सर्वोच्च पदों तथा अपार धनी व्यक्तियों की श्रेणी तक पहुँचने वाले लोगों की परम्परा रही है। अब्राहम लिंकन, जॉ़र्ज वाशिंगटन, एंड्रयू कारनेगी तथा हेनरी फोर्ड जैसे लोगों ने अपने विशिष्ट क्षेत्रों में चमत्कारी रूप से यश तथा धन कमाकर एक ही शताब्दी में न केवल अपने नए बसते हुए देश को उन्नति के चरम शिखर पर पहुंचा दिया बल्कि अपनी क्षमता द्वारा संसार को आश्चर्यचकित कर दिया। यही नहीं, इन लोगों ने अप्रतिम उद्योग के द्वारा जो विपुल सम्पत्ति अर्जित की, उसका अधिकांश और कई दफा पूरा सौ प्रतिशत सेवा-कार्यों के लिए दान भी कर दिया-जिनमें कारनेगी, फोर्ड, येल (इसने मद्रास में जेवरों के व्यापार से अपार सम्पत्ति अर्जित की और उसे कठिनाई से चल रहे एक कालेज को दान कर दिया जो अब येल विश्वविद्यालय के नाम से विख्यात है), फोर्ड, राकफेलर इत्यादि आज भी अपनी महान संस्थाओं के द्वारा संसार का हित साधन कर रहे हैं।

भारतीय संस्कृति पुरानी होने पर भी यहाँ ऐसी पम्पराओं का अभाव रहा है। परन्तु झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक पहुँचने और पद पर आसीन होने के तुरन्त पश्चात् भारत की युवा पीढ़ी को संस्कारित करने के अपने जीवनोद्देश्य में जी-जान से जुट जाने के डॉ. अब्दुल कलाम के उदाहरण से यह परम्परा टूटती-सी दिखाई दे रही है। वे अपने उच्चतम पद का विचार किए बिना न केवल युवकों बल्कि छोटे-छोटे बच्चों से भी जिस प्रकार उत्साहपूर्वक मिलते और उन्हें अपने जीवनोद्देश्य की परिभाषा करने तथा उसे प्राप्त करने का उद्योग करने की प्रेरणा देते दिखाई दे रहे हैं, वह आश्चर्यजनक है। भारत ही नहीं, दुनिया भर में ऐसा कभी नहीं हुआ। यही नहीं, वे अपने कार्यकाल के प्रथम वर्ष में ही देश-भर का दौरा कर चुके हैं और शासकीय नियमों को तोड़कर भी जो उचित समझते हैं, वही करना आरम्भ कर देते हैं। स्वयं वैज्ञानिक तथा शस्त्र-विशेषज्ञ होने के कारण वे सरकारी अधिकारियों को भी प्रोफसर की तरह मानचित्र इत्यादि की सहायता से समझाते घंटों व्यतीत करते हैं। आश्चर्य नहीं कि उनको देखने तथा उनकी बातें सुनने के लिए देश-भर में लोगों की भीड़ उमड़-उमड़ पड़ती है और आवश्यक होने पर घंटों बिना शिकायत किये उनकी प्रतीक्षा भी करती है।

भारत-रत्न राष्ट्रपति डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसा राष्ट्रपति देश में अभी तक कोई नहीं हुआ है। वे अपनी मिसाल आप हैं। उनका जीवन सभी दृष्टियों से अनुपम है। यहाँ हम उनके विलक्षण प्रतिभाशाली जीवन की उन विशेषताओं पर प्रकाश डालेंगे जो अनुकरणीय हैं।
15 जून 2002 से पहले किसी ने सोचा भी न होगा कि भारत के प्रसिद्ध न्यूक्लियर वैज्ञानिक डॉ. अब्दुल कलाम एक महीने बाद देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होकर भारत के राष्ट्रपति बनेंगे। परन्तु राजनीति की उठापटक के कारण जैसे ही प्रधानमन्त्री की ओर से इस नाम का प्रस्ताव किया गया, देश का जन-जन प्रसन्नता से भर उठा और सर्वसम्पत्ति से उनका समर्थन करने के लिए खड़ा हो गया।

किसने यह सोचा होगा कि दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मन्दिरों के नगर रामेश्वरम् की एक छोटी सी गली की एक साधारण झोंपड़ी से निकला नाविक परिवार का एक गरीब बालक, जो अखबार बेचकर अपना गुजारा चलाता था, वैज्ञानिक बनने की अपनी इच्छा और दृढ़-शक्ति के सहारे किसी प्रकार क्रमश: अपनी शिक्षा पूरी कर शस्त्र-निर्माण के क्षेत्र में उन्नति करता हुआ एक दिन भारत की राजधानी में प्रधानमन्त्री का वैज्ञानिक सलाहकार बन जाएगा, प्रथम भारतीय परमाणु बम के निर्माण और विस्फोट में सफलता प्राप्त करेगा, और अनेक प्रकार के अग्नि-अस्त्रों का निर्माण करके देश भर में ऐसी अमर कीर्ति अर्जित करेगा कि राष्ट्र के इस सर्वोच्च पद के लिए समूचा देश उसी का सबसे योग्य व्यक्ति के रूप में–क्षमा करें, उसके मुसलमान होने के बावजूद निश्चिंत होकर वरण करेगा।

डॉ. अब्दुल कलाम का जीवन सचमुच एक विलक्षण उपलब्धि और चमत्कार है-एक ऐसा महान चमत्कार जिस पर विश्वास करना आसान नहीं है। वे धर्म से यद्यपि मुसलमान हैं परन्तु जिस देश के वे निवासी हैं वह धर्म-निरपेक्ष सेकुलर देश है-भारत-जहाँ अनेक धर्मों के निवासी न केवल बसते हैं बल्कि जहाँ प्राचीन युगों में विदेशों से भगाये गए धर्मों के लोगों को भी शरण तथा पूरे नागरिक की हैसियत प्रदान की गई है; जहाँ किसी प्रकार का धार्मिक भेदभाव स्वीकार नहीं किया जाता बशर्ते नागरिक देश के प्रति वफादार रहे, उसे अपनी पूरी निष्ठा प्रदान करे। ऐसे देश संसार में कम ही हैं और इसी कारण भारत का विश्व में विशेष स्थान तथा महत्व है। डॉ. अब्दुल कलाम को कुरान शरीफ के साथ-साथ भगवद्गीता से भी लगाव है। वे शाकाहारी हैं क्योंकि वे अपना पेट भरने के लिए जीवों को मारना पसन्द नहीं करते। कहा जा सकता है कि आचरण में वे बौद्ध हैं। उनके मित्र उन्हें अब्दुल कलाम ‘अय्यर’ कहते हैं-यानी अय्यर ब्राह्मणों की तरह कट्टर। उन्होंने देश की रक्षा सुदृढ़ करने के लिए परमाणु बम बनाया, अन्य हथियार भी बनाए। उनकी निश्चित मान्यता है-
‘‘शक्ति, शक्ति की ही प्रतिष्ठा करती है’’

-जो भारतीय जनता पार्टी तथा उसकी आधार संस्था रा.स्व. संघ की घोषणा लगती है।
इस वाक्य को वे बार-बार दोहराते हैं और राष्ट्रपति बनने के पश्चात् भारत को समृद्ध बनाने के साथ-साथ उनका एक प्रमुख उद्देश्य देश को परम शक्तिशाली राष्ट्र बनाना भी है।
डॉ. अब्दुल कलाम सभी प्रकार से पूर्ण भारतीय हैं। उन्हें भारतीयता का आदर्श कहा जा सकता है, कहा जाना चाहिए शायद इसीलिए उन्हें देश का प्रथम भारतीय, प्रथम नागरिक बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। नई 21वीं शताब्दी, नई तीसरी सहस्राब्दी में, उनके नेतृत्व में भारत-सूर्य अपनी सम्पूर्ण तेजस्विता से संसार में चमकेगा। उन्होंने भारत ही नहीं विश्व भर के लिए मानवता के एक नए आदर्श की स्थापना की है, इसी आदर्श पर चलकर भारत तथा विश्व का कल्याण है।
डॉ. अब्दुल कलाम ईश्वर के परम विश्वासी हैं। उनका मानना है कि ईश्वर एक है, किसी धर्म का ईश्वर अलग नहीं है और मनुष्य मात्र को उसी एक ईश्वर की आराधना करनी चाहिए।

कुछ वर्ष पहले की बात है, ‘राजपाल एण्ड सन्स’ ने उनकी युग-प्रवर्तक पुस्तक ‘‘भारत 2020-नवनिर्माण की रूपरेखा’’ प्रकाशित की। इसमें उन्होंने अगले 20 वर्षों में अर्थात् सन् 2020 तक अपने देश भारत को किस प्रकार संसार के सबसे अधिक उन्नत 4-5 देशों की पंक्ति में ले जाकर खड़ा किया जा सकता है, इसका विस्तृत विवेचन किया है। राष्ट्र जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में यह स्थिति प्राप्ति करने के लिए क्या योजनाएँ क्रियान्वित की जाएँ, ये विवरण विस्तार से पुस्तक में दिए गए हैं। उनका मानना है कि वैज्ञानिक उन्नति के द्वारा ही देश को आगे बढ़ाया जा सकता है, कोई अन्य मार्ग नहीं है।
उसी समय राजधानी दिल्ली में पुस्तक मेला लगा। हमने उनसे आग्रह किया कि वे इसमें पधारें जिससे लोग उनकी पुस्तक के साथ उन्हें भी देख सकें, उनसे बातचीत कर सकें। वे आयें। दर्शकों की भीड़ लग गई। लोग उन्हें देखने और उनकी पुस्तक पर उनके हस्ताक्षर करवाने लगे।

हमने अपने अंग्रेजी प्रकाशनों का सूचीपत्र उन्हें दिया और आग्रह किया कि वे अपनी पसन्द की पुस्तकों का चुनाव कर लें। दो-तीन सेकिंडों में ही उन्होंने कुछ ऐसी पुस्तकों पर उंगली रख दी जो अध्यात्म से सम्बन्धित थीं। हम कुछ और भी पुस्तकें उन्हें भेंट करना चाहते थे परन्तु उन्होंने इनके अलावा अन्य कुछ भी स्वीकार नहीं किया।
याद आया कि एलबर्ट आइन्स्टाइन की भी ईश्वर की सत्ता में अगाध निष्ठा थी !

भारत के वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी तथा राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम में अनेक समानताएँ हैं। पहली महत्वपूर्ण समानता तो यही है कि दोनों आज तक कुँवारे हैं और किसी का अपना कोई घर-परिवार नहीं है। एक और समानता जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया, यह है कि वाजपेयी जी के जीवन की शुरुआत ‘‘2, अटल मार्ग, लखनऊ’’ से हुई जहाँ उन्होंने मासिक, साप्ताहिक और दैनिक पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन से जीवन का आरम्भ किया (और जहां इन पंक्तियों के लेखक को भी रहने का अवसर प्राप्त हुआ)। इसी प्रकार ‘‘2, मस्जिद मार्ग, रामेश्वरम्’’ डॉ. कलाम का पुश्तैनी घर है जहाँ उनका बचपन बीता और जहाँ रहकर उनकी आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा हुई। उनका जीवन भी समाचार पत्रों से जुड़ा रहा, भले ही वह उन्हें बेचने का काम ही रहा हो। जो लोग मनुष्य की नियति को संख्याओं द्वारा संचालित मानते हैं, उनके लिए यह विचार और अध्ययन का विषय है। दोनों ही बिल्कुल अनपेक्षित रूप से राष्ट्र के सर्वोच्च पदों पर, जिनकी संख्या भी 2 ही हैं, पहुँच गए हैं।

दोनों व्यक्तियों के स्वभाव की निश्छल सरलता भी दर्शनीय है। दोनों की ईमानदारी एक समान है-दोनों ने ही अपने सगे-सम्बन्धियों तथा मित्रों पर यह स्पष्ट कर रखा है कि उनसे किसी की सिफारिश न की जाए। डॉ. कलाम के पदग्रहण समारोह के अवसर पर उनके परिवार के जो लोग भी कार्यक्रम में सम्मिलित हुए, उन सब का व्यय उन्होंने स्वयं ही वहन किया। प्रधानमन्त्री के तत्सम्बन्धी ऐसे ही व्यवहार के भी कई उदाहरण सामने आ चुके हैं। राजनीतिक क्षेत्र में आगे पहुँचे हुए लोगों के लिए, विशेषकर आज के भ्रष्टाचार से पूरी तरह डूबे हुए वातावरण में, यह महत्वपूर्ण बात है। कहा जा सकता है कि ईश्वर स्वयं चुन-चुनकर ऐसे व्यक्तियों को इन सर्वोच्च पदों के लिए भेज रहा है-कि वे परिवर्तन कर सकें।
एक विख्यात वैज्ञानिक का, और वह भी न्यूक्लियर वैज्ञानिक, जिसे पोखरण परमाणु बम विस्फोट के बाद से देश में ‘न्यूक्लियर बम का जनक’ तथा ‘मिसाइल मैन’ की संज्ञा से जाना जाने लगा, जिसे अपने विविध वैज्ञानिक कार्यों के लिए दो दर्जन से अधिक डॉक्टरेट तथा एक दर्जन पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं, राष्ट्रपति पद पर आसीन होना आधुनिक युग के इतिहास में एक युगान्तकारी घटना ही कही जाएगी।

साथ ही डॉ. कलाम का सैद्धान्तिक रूप से शक्ति की महत्ता मानना इस परिवर्तन को और भी बल प्रदान करता है-आज तक किसी भी प्रधानमन्त्री या राष्ट्रपति ने यह बात नहीं कही। स्वाधीनता-प्राप्ति के समय से ही पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ भारत के संघर्षपूर्ण सम्बन्ध आज भी देश की केन्द्रीय समस्या बने हुए है। कश्मीर की समस्या भी इसी व्यापक संघर्ष का एक अंग है। पाकिस्तान के साथ भारत के चार युद्ध तो हो ही चुके हैं जिनमें यद्यपि उसने कमोबेश विजय ही प्राप्त की है, परन्तु इससे उत्पन्न परिस्थितियाँ राजनीतिक ही नहीं, आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टियों से भी अनेक अन्तहीन समस्याओं को जन्म देने वाली सिद्ध हो रही हैं।

यदि यह मान लें कि लम्बे समय तक कांग्रेस के शासन, विशेष रूप से नेहरू जी की नीतियों के कारण, इन समस्याओं पर अंकुश लगाना सम्भव नहीं हुआ है, और अब राजग तथा वाजपेयी की सरकार ने उनको स्थायी रूप से सुलझाने का निश्चय कर लिया है, डॉ. कलाम का राष्ट्रपति बनना उसे सुदृढ़ तथा शक्तिशाली समर्थन देने वाला ही सिद्ध होगा। अमेरिका में ‘ट्रेड टावर्स’ पर भयंकर आतंकवादी आक्रमणों के पश्चात् अफगानिस्तान और ईराक में उसकी कार्यवाही से भी आतंकवाद-विरोध को, स्वयं मुस्लिम देशों में भी, बल प्राप्त हो रहा है जिससे भारत पाकिस्तान के आपसी झगड़े का हल निकलने की सम्भावनाएँ प्रबल हो गई हैं। प्रधानमन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा की सफलता भी इस क्षेत्र में भारत के हाथ मजबूत कर रही है।

2
विकास का मिशन


अपने आज तक के कार्य में डॉ. अब्दुल कलाम ने बड़े स्पष्ट शब्दों में स्वयं अपने तथा सम्पूर्ण देश के लिए एक मिशन सुनिश्चित कर दिया है : नई शताब्दी में सन् 2020 तक देश को आर्थिक, औद्योगिक, सामरिक तथा वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से पूर्ण समर्थ बनाकर दुनिया के सबसे उन्नत 4-5 देशों के साथ खड़ा कर देना। राष्ट्रपति बनने के पश्चात् उन्होंने व्यक्तिगत उद्योग से तथा अपना ही धन लगाकर ‘‘डेवेलप्ड इंडिया फाउंडेशन’’ के नाम से एक ट्रस्ट की स्थापना भी कर दी है। एक और ट्रस्ट भी उन्होंने बनाया है। इनकी सहायता से वे स्वतन्त्र रूप से भी कार्य करने करवाने में समर्थ होंगे।
हम भारतीयों को यह लक्ष्य आश्चर्यजनक लग सकता है परन्तु डॉ. कलाम का मानना है कि बीस वर्ष में भारत का इस सीमा तक विकास कर सकना निश्चित रूप से सम्भव है।

जरा गहराई से विचार करने पर उनकी मान्यता सही लगने लगती है। जब दूसरे महायुद्ध के पश्चात् पूरी तरह नष्ट-भ्रष्ट जापान दो दशक में ही न अपने पैरों पर खड़ा हो गया, बल्कि उद्योग के अनेक क्षेत्रों में अमेरिका तथा जर्मनी जैसे देशों को पछाड़कर सबसे आगे भी पहुंच गया, तो भारत के लिए भी ऐसा कुछ कर दिखाना पूरी तरह सम्भव ही मानना होगा। यही नहीं, जापान के पश्चात् उसी के नक्शे-कदम पर चलकर दक्षिण कोरिया जैसा छोटा देश भी और उससे भी छोटा ताईवान द्वीप, दुनिया के बाजारों में अपनी धाक जमा पाने में सफल हुए हैं। दक्षिण कोरिया के सैमसुंग, एल.जी, ड्युंडे सैनसुई, डेवू, आदि कंपनियों के एक से एक उन्नत माल से भारत का बाजार पटा पड़ा है। इसलिए यह मानना गलत नहीं कि हम भी ऐसा ही कुछ करके दिखा सकते हैं-और इसके लिए उन्होंने देश की युवा पीढ़ी को जगाने का कार्य भी अपने हाथों में ले लिया है। राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने न केवल अपने राष्ट्रपति भवन में छात्र-छात्राओं के ग्रुपों को बुलाकर उनको उत्साहित करना आरम्भ कर दिया है, बल्कि स्वयं भी, अपने पद के प्रतिबंधक नियमों के बावजूद स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों में जा-जाकर उनकी सोई हुई शक्ति को फिर से उत्साहित और सचेत करने का महान कार्य करना आरम्भ कर दिया है।





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