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ग़ज़ल 2000

बशीर बद्र

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :137
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 6651
आईएसबीएन :81-8143-657-1

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उर्दू ग़ज़लों का देवनागरी लिपि में प्रस्तुतीकरण

Gazal 2000 - A Hindi Book by Bashir Badra

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

आज ग़ज़ल का मसला क्या है उर्दू ग़ज़ल पढ़ने वाले लाख-सवा लाख हैं तो उसी उर्दू ग़ज़ल को देवनागरी लिपि में, ग़ज़ल गायकी में, जिंदगी की गुफ़्तगू में हिन्दुस्तान-पाकिस्तान क्या दुनिया के मुख़्तलिफ़ हिस्सों मे, करोड़ों-करोड़ों हैं। इस बड़ी ताकत का अंदाज़ा हमारे उन किताबी नक़्क़ादों को नहीं हो रहा है, जो आज की ग़ज़ल को फ़ारसी ग़ज़ल की उतरन समझते हैं। मेरा ख़्याल है उर्दू के ऐसे किमखुरदा अल्फ़ाज़ नासेह, ज़ाहिद वाईज, दारोरसन, चारागन, ईसा नफ़स, क़फ़स, सैयात, गुलचीं, कावे-कावे वयक्क़फ़-बुरदन, सददिल जैसे 50 अल्फ़ाज़ के बजाय हज़ारों ज़िंदगी के अल्फ़ाज़ को बरतते हैं। इस बोली वाली जदीद लफ़्जीयात का बड़ा हिस्सा ग़ज़ल की ज़बान बनता जा रहा हैं। हमारे अहद में सच्ची ग़ज़ल के दो दुश्मन थे एक तो यही, जिनका ज़िक्र हो रहा है यानी उर्दू को अरबी और फ़ारसी की बाँदी समझने वाले और दूसरे मुशायरों में नाचने और गाने वाले फ़ारसी और अरबी के ये गा़लिब, अहसासे-कमतरीं में मुब्तिला जब मुशायरे में बुलाए जाते हैं तो सर के बल जाते हैं और गालियाँ बकते वापस आते हैं और दूसरी तरफ़ मुशायरे को क़व्वाली की महफिल समझने वाले क़व्वाल और नौटंकी का बदल बनाने वाले अदाकार। न वो शाइर हैं, न ये शाइर हैं।
अब तक ग़ज़ल की किताबें ज़िन्दगी
का पता देती थीं - यह ज़िन्दगी की किताब है -
LIFE LIKE जो ग़ज़ल का पता देती है - गोरी जागी सेज से
हम को आना है, हम को जाना है
जो नया है वही पुराना है।

 

ग़ज़ल 2000

 

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये
बशीर बद्र



हमने इक शाम चराग़ों से सजा रक्खी है
शर्त लोगों ने हवाओं से लगा रक्खी है
वाली आसी



दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
चले आओ जहाँ तक रौशनी मालूम होती है
नुशूर वाहिदी



मुझसे मत जी को लगाओ कि नहीं रहने का
मैं मुसाफिर हूँ कोई दिन को चला जाऊँगा
मुहम्मद मीर सोज़



आज सोचा तो आँसू भर आये
मुद्दतें हो गईं मुस्कराये
कैफ़ी आज़मी



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