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परीक्षा गुरु

लाला श्रीनिवास दास

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :213
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6827
आईएसबीएन :00-00-0000-0

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हिन्दी का अत्यधिक चर्चित पहला रोचक और मौलिक उपन्यास

Pariksha Guru

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लाला श्रीनिवासदास के शब्दों में


इस पुस्तक मैं दिल्ली के एक कल्पित (फर्जी) रईस का चित्र उतारा गया है और उस्को जैसे का तैसा (अर्थात् स्वाभाविक) दिखाने के लिए संस्कृत अथवा फारसी अरबी के कठिन, कठिन शब्दों की बनाई हुई भाषा के बदले दिल्ली के रहने वालों की साधारण बोलचाल पर ज्यादा दृष्टि रक्खी गई हैं। अलबत्ता जहाँ कुछ विद्याबिषय आ गया है वहाँ विवश होकर कुछ, कुछ शब्द संस्कृत आदि के लेनें पड़े हैं परन्तु जिनको ऐसी बातों में झमेला मालूम हो उन्की सुगमता के लिए ऐसे प्रकरणों पर ऐसा + चिन्ह लगा दिया है जिस्सै उन प्रकरणों को छोड़कर हरेक मनुष्य सिलसिलेवार वृतान्त पढ़ सक्ता है।

प्रस्तुत पुस्तक मैं संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी की कविता का तर्जुमा अपनी भाषा के छन्दों मैं हुआ हैं परन्तु छन्दों के नियम और दूसरे देशों का चाल चलन जुदा होने की कठिनाई से पूरा तर्जुमा करने के बदले कहीं, कहीं भावार्थ ले लिया गया है।

अब इस पुस्तक के गुणदोषों पर विशेष विचार करने का काम बुद्धिमानों की बुद्धि पर छोड़कर मैं केवल इतनी बात निवेदन किया चाहता हूँ कि कृपा करके कोई महाशय पूरी पुस्तक का बांचे बिना अपना बिचार प्रकट करने की जल्दी न करैं और जो सज्जन इस विषय मैं अपना विचार प्रकट करैं वह कृपा करके उस्की एक नकल करके मेरे पास भी भेज दें (यदी कोई अखबारवाला उस अंक की कीमत चाहेगा तो वह तत्काल उस्के पास भेज दी जायेगी) जो सज्जन तरफदारी (पक्षपांत)छोड़कर इस विषय में स्वतंत्रता से अपना बिचार प्रकट करैंगे मैं उन्का बहुत उपकार मानूँगा।

इस पुस्तक के रचने मैं मुझको महाभारतादि संस्कृत, गुलिस्तां वगैरे फारसी, स्पैक्टेटर, लार्ड बेकन, गोल्ड स्मिथ, विलियम कूपर आदि के पुराने लेखों और स्त्रीबोध आदि के वर्तमान रिसालों सै बड़ी सहायता मिली है इसलिए इन सबका मैं बहुत उपकार मानता हूँ और दीनदयालु परमेश्वर की निहैंतुक कृपा का सच्चे मनसै अमित उपकार मानकर यह लेख समाप्त करता हूँ।
श्रीनिवासदास, दिल्ली


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