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उपभोक्ता वस्तुओं का विज्ञान

रामचन्द्र मिश्र

प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6847
आईएसबीएन :978-81-8361-190

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बाजार में नित नये प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं की बड़ी रेलम-पेल है, यह भी खाओ, वह भी खाओ जैसे सोचने के बजाय क्या खाएं, क्या छोड़ें यह समझने की जरूरत आज सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है....

Upbhokta Vastuon Ka Vigyan - A Hindi Book - by Ramchandra Mishra

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

लेखकीय कथन

प्रायः सभी व्यक्ति जन्म से मृत्यु तक अपने दैनिक जीवन में वस्तुतः उपभोक्ता होते हैं, प्रत्येक व्यक्ति के संबंध में विविध उपभोक्ता वस्तुओं के प्रयोग का सिलसिला न सिर्फ जन्म से मृत्यु तक बल्कि गर्भधारण से लेकर अंत्येष्टि तक चलता रहता है। उपभोक्ता वस्तुओं का प्रयोग स्वभावतः सर्वव्यापक और नित्य क्रिया है। खाने-पीने की वस्तुओं और पहनने-ओढ़ने की चीजों से लेकर आवास, साफ-सफाई, सुरक्षा-बचाव, साज-संवार तथा भोग-विलास से संबंधित अनेकानेक वस्तुओं का दिनरात निरंतर प्रयोग किया जाता है। खाऊ उपभोक्ता (अप) संस्कृति के चलते अवाश्यक या अतिशय उपभोग की अंधी दौड़ चल पड़ी है। बाजार में नित नए प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं अथवा नए-नए व्यापारिक नामों से आ रही वस्तुओं की बड़ी रेलम-पेल कायम है। यह भी खाओ, वह भी खाओ जैसा सोचने के बजाय क्या खाएं, क्या छोड़े यह समझने की जरूरत आज सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।

विचारणीय है कि विविध उपभोक्ता वस्तुओं की प्रत्येक उत्पत्ति और दैनिक प्रयोग का संबंध देश की माटी, देश के जल, देश का हवा, देश के निवास और देश की सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं से जुड़ा हुआ है, जिनके साथ रुढ़ियों और अंधविश्वास का भी अपमिश्रण हुआ है। उपभोग की जो विरासत हमारी है उसकी वैज्ञानिकता को अपना कर ही हम सतत्-उपभोग की उपयुक्त संस्कृति को कायम रख सकते हैं।

दैनिक उपयोग की वस्तुओं की गुणवत्ता, संघटन, विश्वसनीयता, उपयोग के लाभालाभ, सुरक्षा, पर्यावरणीय प्रभावों इत्यादि आवश्यक तथ्यों यानी उपभोक्ता वस्तुओं के विज्ञान से उपभोक्ता प्रायः कम ही अवगत होते हैं। विविध प्रयोजनों हेतु सर्वोत्तम वस्तुओं का चुनाव और निपुण प्रयोग करने में इन वस्तुओं पर वैज्ञानिक जानकारी की कमी अक्सर आड़े आती है। वर्तमान में उपभोक्ताओं को दिए गए कानूनी अधिकारों का प्रभावी प्रयोग करने और उनसे अपेक्षित कर्तव्यों को निभाने में भी उक्त वैज्ञानिक जानकारी की आवश्यकता होती है। भारत में उपभोक्ता अदालतों की विस्तृत व्यवस्था है, किंतु वैज्ञानिक जानकारी के अभाव में उपभोक्ता-शिकायतों का निपटान अक्सर बाधित होता है।

उपभोक्ता वस्तुओं पर प्रचलित पारंपरिक जानकारी प्रायः अपूर्ण और भ्रामक पाई जाती है। विविधता वाले इस देश में उपभोग की मान्यताएं भिन्न हैं। निर्माता या विक्रेता बेची जाने वाली वस्तुओं के लेबल, निर्देश-पर्ची या उत्पाद-पुस्तिका में प्रायः महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक या तकनीकी जानकारी देने से रह जाते हैं औऱ तथ्यहीन लुभावनी बातें बढ़-चढ़ कह देते हैं। आर्थिक उदारीकरण तथा भूमंडलीकरण के चलते उपभोक्ता-बाजार में प्रतिस्पर्द्धा की शक्तियां हावी हैं और स्थूल व्यापारिक हथकंडों के चरिए अधिकाधिक वस्तुओ की कृत्रिम आवश्यकता पैदा की जा रही है। इस प्रकार उपभोक्ताओं के लिए विशेष रूप से जरूरी हो गया है कि वे ऐसी वस्तुओं के संबंध में वैज्ञानिक जानकारी प्राप्त करें। विचारणीय समस्या यह है कि खाद्य तथा अखाद्य सभी प्रकार की उपभोक्ता वस्तुओं का विज्ञान वस्तुतः बहुविषयक क्षेत्र है जिस पर संगठित रूप से पर्याप्त जानकारी सुलभ नहीं है।

उपभोक्ता संरक्षण हेतु राष्ट्रीय स्तर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के प्रयोग से लंबे समय तक जुड़े होने के कारण मुझे यह महसूस हो रहा था कि उपभोक्ता वस्तुओं पर वैज्ञानिक जानकारी को देश की राजभाषा तथा राष्ट्रभाषा हिंदी में देने वाली लोकप्रिय स्तर की एक ऐसी पुस्तक उपलब्ध हो जो आम शिक्षित उपभोक्ता का मार्गदर्शक बन सके। जनहित की भावना से लिखी गई यह पुस्तक अपने उद्देश्य में कितनी सफल होगी, इसका निर्णय सुधी पाठकों को करना है। लेखक या मंतव्य है कि उपभोक्ता वस्तुओं पर नित नई जानकारी की उत्पत्ति के अनुरूप पुस्तक को समृद्ध करने की आवश्यकता बनी रहेगी।
आशा है कि प्रस्तुत पूरे उपभोक्ता-समाज के लिए, स्वयंसेवी संगठनों, छात्रों, शिक्षको तथा उपभोक्ता प्रशासन-तंत्र आदि के लिए ज्ञानवर्धक और उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक को समृद्ध बनाने के लिए पाठकों के विचारों और सुझावों का हार्दिक स्वागत होगा।

लेखक उन सभी शुभ चिंतकों का सद्यः आभारी है जिनके सौहार्दपर्ण व्यवहार से उत्पन्न सार्थक ऊर्जा का प्रयोग उसने इस पुस्तक को लिखने में किया है। पांडुलिपि के संसाधन में सहायता के लिए अजय मिश्र को सस्नेह धन्यवाद !
रामचन्द्र मिश्र


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