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उपन्यास >> विष्णुगुप्त चाणक्य

विष्णुगुप्त चाणक्य

वीरेन्द्र कुमार गुप्त

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :408
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7111
आईएसबीएन :81-267-0039-4

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इस उपन्यास का केंद्र चाणक्य एक षड्यंत्रकारी राजनेता न होकर एक जीवंत पुरुष, ऋषि एवं प्रतिबद्ध राष्ट्र-निर्माता है।...

Vishnugupt chanakya

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

कवि, कथाकार एवं चिंतक वीरेन्द्रकुमार गुप्त का प्रस्तुत उपन्यास उनके चिंतनशील, शोधक व्यक्तित्व की उत्कृष्ट देन है। उपन्यास अत्यंत मनोरंजक है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सकता है। साथ-साथ वह उस काल-विशेष के इतिहास एवं जीवन की प्रामाणिक प्रस्तुति भी है। उस काल में सामाजिक व्यवहार, संस्कृति एवं राजनीतिक घटनाओं का इतना जीवंत चित्रण शायद ही कहीं प्राप्त हो। श्री गुप्त ने सिकंदर-सिल्यूकस और चाणक्य-चन्द्रगुप्त के बीच संघर्ष के निमित्त से भारत की एकता, राजनीतिक सुदृढ़ता एवं सामाजिक सामंजस्य की अवधारणाओं को भारतीय मानस में स्थापित करने का सशक्त प्रयास किया है। विशेषता यह है कि घटनाओं की संकुलता एवं चरित्रों की मानसिक जटिलता ने भाषा को क्लिष्ट नहीं बनाया है। वह इतनी सरल एवं बोधगम्य है कि सामान्य पाठक भी कृति का भरपूर आनन्द ले सकता है।

दो शब्द

चाणक्य और चन्द्रगुप्त के जीवन एवं उनकी उपलब्धियों के विषय में जो मूल तथ्य निर्विवाद रूप से मान्य हैं, वे हैं: 1.चाणक्य तक्षशिला में राजनीतिशास्त्र के अध्यापक थे और चंद्रगुप्त को शिष्य-रूप में ग्रहण करके उन्होंने उसे एक वीर योद्धा का रूप दिया था; 2. जिस समय सिकंदर का आक्रमण हुआ, चंद्रगुप्त लगभग 22-23 वर्ष का युवक था और सिकंदर एवं पुरु के युद्ध के समय वह अपने गुरु के साथ युद्ध-क्षेत्र में उपस्थित था; 3. किसी कारण नंद ने चाणक्य का घोर अपमान किया और क्रुद्ध चाणक्य ने नंद के विनाश का प्रण लिया; 4. चाणक्य और चंद्रगुप्त ने पाटिलपुत्र पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया और नंद के स्थान पर चंद्रगुप्त सम्राट बना; 5.अब चाणक्य के मार्ग-दर्शन में चंद्रगुप्त ने साम्रज्य-विस्तार किया एवं मगध-साम्राज्य में पश्चिम में तक्षशिला तक फैल गया; तथा 6. जब अनेक वर्ष बाद सिल्यूकस ने आक्रमण किया तो चंद्रगुप्त ने उसे सिंधु-तट पर बुरी तरह पराजित किया और उससे कई पश्चिमोत्तर प्रांत छीन लिए। सिल्यूकस को अपनी कन्या का दान भी करना पड़ा। इन मूलभूत तथ्यों से संबंधित विविध विवरण एवं अवर तथ्य अनिश्चित हैं।

ग्रीक लेखों, बौद्ध-जैन-हिन्दू ग्रंथों में बिखरे उल्लेखों, पुरातात्त्विक अवशेषों-शिलालेखों तथा काव्याख्यानों में प्राप्त वर्णनों एवं किंवदंतियों के हवाले देकर इतिहासकारों ने अपनी-अपनी चिंतना और धारणा के अनुसार चाणक्य-चंद्रगुप्त के अनिश्चित जीवन-तथ्यों को एक निश्चित रूपरेखा देने का प्रमाण किया है। इन दो इतिहास-पुरुषों को लेकर रचे गये अनेक नाटकों एवं उपन्यासों के रचयिताओं ने भी इतिहासकारों के ही पथ पर चलकर अपनी-अपनी कथावस्तुओं की रचना अपने-अपने ढंग से की है। कोई अन्य मार्ग रहा भी नहीं है और प्रस्तुत उपन्यास में भी इसी का अनुसरण किया गया है। अनिश्चित विविरणों-तथ्यों को विषय रूपरेखा देते समय मेरा क्या चिंतन रहा, यह स्पष्ट करना आवश्यक मानकर ही दो शब्द मैं लिख रहा हूँ।

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