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उपन्यास >> ज़र्री बानो

ज़र्री बानो

क़ैसरा शहराज़

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :455
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7157
आईएसबीएन :9780143066835

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‘ज़र्री बानो : इश्क़ की दास्तान’ इश्क़, जुदाई, और मज़बूत इरादों की एक अनोखी दास्तान...

Zarri Bano Ke Ishq Ki Dastan - A Hindi Book - by Kaisra Sharaz

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

बला की ख़ूबसूरत ज़र्री बानो से नज़रें मिलाने की हिम्मत किसी में नहीं। लेकिन जब सिकंदर उसकी आंखों में झांकता है, और उसके दिलो-दिमाग़ पर छाता चला जाता है, तब शुरू होती है एक कशमकश-एक रुढ़िवादी पिता और उसकी बेटी के बीच, एक कबीले की जागीरदाराना प्रथाओं और नई पीढ़ी की आज़ादी और आत्मनिर्भरता के बीच।
ज़र्री बानो और सिकंदर को अपनी मुहब्बत परवान चढ़ाने की इजाज़त नहीं, और दूर रहकर जी पाना उन्हें आता नहीं। उन्हें ये भी पता नहीं कि भाग्य अपना अनोखा खेल खेलने वाला है... और भविष्य के गर्त में कुछ और ही छिपा है।
‘ज़र्री बानो : इश्क़ की दास्तान’ इश्क़, जुदाई, और मज़बूत इरादों की एक अनोखी दास्तान है, जिसको शुरू करके आख़िर तक पढ़े बग़ैर नहीं रहा जा सकता।

शुरुआत

सिंध के ज़िले में एक छोटे से शहर के बाहर खुले रेगिस्तानी मैदान में मेला लगा हुआ था। इस सालाना मेले में शिरकत करने के लिए दूर-दूर से लोग जमा थे और ठंडे-ठंडे शर्बत व गर्मागर्म पकवान का लुत्फ़ उठाते नटों और बाज़ीगरों का तमाशा देख रहे थे।
पाकिस्तान के चारों सूबों से भांति-भांति के तमाशागर सिंध के लोगों के सामने अपना-अपना कमाल दिखाने जमा थे। तालियों के शोर, सीटियों की आवाज़ और नौजवानों के क़हक़हों ने इस गर्म दोपहर में एक अजीब ख़ुशदिली और उम्मीद का समां पैदा कर दिया था। एक बाकमाल बाज़ीगर, जिसके चारों तरफ़ लोगों की भीड़ थी, तीन गेंदों को मुसलसल हवा में उछाल रहा था और लोग वाह-वाह कर रहे थे।

यह तमाशा खत्म होते ही एक चुस्त बुड्ढा शीशे के काम की टोपी पहने एक बंदर को रस्सी में बांधे हुए घेरे में आया। और जैसे ही बंदर ने अपनी घेरदार स्कर्ट और लाल टोपी हिला-हिलाकर नाचना शुरू किया तो सब लोग हंसी के मारे लोट गए। बंदरवाले ने उनकी तरफ़ अपने पोपले मुंह से मुस्कुराकर देखा और एक तबला निकालकर उसको दो डंडियों से बजाना शुरू कर दिया जिसको सुनते ही बंदर कलाबाजियां खाने लगा और ताली बजाते हुए लोग कुछ पीछे हट गए ताकि उसके लिए जगह बन जाए।

सामने की रेतीली सड़क पर दूर से एक काली जीप आती नज़र आई, जिसमें दो आदमी बैठे थे। थोड़ी सी देर में वो मेले के क़रीब आकर रुक गई। ड्राइवर की तरफ़ से एक तीस-बत्तीस साल का ख़ुशसूरत अजनबी नौजवान निकला और दरवाज़ा बंद करके उससे टेक लगाकर अपनी टांगें सीधी करने लगा। फिर उसने अपनी धूप की ऐनक उतारकर सामने होते हुए तमाशे पर एक नज़र डाली और बंदर के करतब देखकर उसके चेहरे पर एक महज़ूज़ मुस्कुराहट नुमाया हुई। थोड़ी देर बाद तमाशा देखने से बोर होकर उसने अपने चारों तरफ़ के मंज़र का जायज़ा लिया। तभी उसकी आँखें एक घोड़े पर जा रुकीं, जो सामने एक पेड़ से बंधा खड़ा था। घोड़े के पास उस पेड़ की घनी छांव के नीचे एक नौजवान लड़की खड़ी थी। काले शिफ़ॉन का एक नफ़ीस शलवार-क़मीज़ पहने, काला दुपट्टा अपने शानों पर एक अंदाज़े-परवाही से डाले। उसका दुपट्टा उसके ख़ूबसूरत चेहरे के गिर्द एक दिलकश हाला बना रहा था।

तबले की थाप पर बंदर का नाच ज़ोर-शोर से जारी था। लड़की के दोनों हाथ ताली बजाने को उठे। हवा से लहराता हुआ उसका क़मीज़ का नर्म कपड़ा उसके सुडौल जिस्म को ढाल रहा था, और एक झोंके से उसका दुपट्टा सिर से फिसलकर एक दिलरुबाना अंदाज़ में उसके शानो पर लहराकर गिर गया। लेकिन वो ग़ैर मर्दों के सामने सिर ढका रखने के रिवाज से बेनियाज़ यूं ही नंगे सिर खड़ी रही और दुपट्टे को सिर पर डालने की कोई कोशिश न की।
पूरे मेले में सिवाय तीन बुढ़ियों के और कोई औरत दिखाई न दे रही थी। जवान लड़की का इस तरह मेले में आना और मर्दों के साथ तमाशा देखना इस इलाक़े में बहुत ग़लत समझा जाता था।

अजनबी उस ख़ूबसूरत लड़की की यह जुर्रत देखकर बहुत महज़ूज़ हुआ और हैरान भी। यह देखकर कि अब तक उसने अपना सिर ढकने की कोई ज़रूरत न समझी थी, उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आई। और वो उसे देखता ही रह गया।
उसी वक़्त सामने से एक नौजवान आता नज़र आया और लड़की के पास आकर अपना घोड़ा दरख़्त से खोलने लगा। जैसे ही अजनबी की नज़र उस पर पड़ी, उसके चेहरे पर हैरत नमूदार हुई और वो होशियार हो गया। उसने उस नौजवान के चेहरे को देखा, जो उस लड़की के चेहरे से हूबहू मुशाबा था। और फिर वो मुस्कुराते हुए सीधा खड़ा हो गया और अपना हाथ हिलाया।

सामने दरख़्त के नीचे खड़ी ज़र्री बानों के छोटे भाई जाफ़र ने झुककर अपनी बहन के कान में कुछ कहा और फिर सामने इशारा किया, जहां अजनबी खड़ा उनको देख रहा था। जाफ़र का चेहरा ख़ुशी से दमक उठा और उसने मुस्कुराते हुए अजनबी की तरफ़ ज़ोर-ज़ोर से हाथ हिलाया।
‘‘कराची से आने वाले जिन मेहमानों का हमें इंतज़ार था, वो आ गए हैं।’’ उसने अपनी बहन से कहा। और फिर उसकी तरफ़ देखकर संजीदा हो गया। ‘‘आपा, आप कुछ तो ख़्याल करें। कम-अज़-कम जब आप घर से बाहर हों तो आपका सिर ढका होना चाहिए। देखिए तो आपके बाल किस तरह बिखरे हुए हैं। आप इनको बांध क्यों नहीं सकतीं ? अच्छे ख़ानदानों की औरतों के लिए इस तरह देखा जाना ठीक बात नहीं है। सब बदमाश मर्द औरतों को घूरते रहते हैं, ख़ासतौर पर अगर वो इतनी ख़ूबसूरत हो, जैसी आप हैं। आपकी इस लापरवाही से लोगों को ग़लतफ़हमी हो सकती है। वो आपके, हमारे वालिद के और ख़ानदान के बारे में क्या सोचेंगे ? ऐसे चाल-चलन सिर्फ़ शोख़, और आवारा औरतों के होते हैं ।’’

‘‘अच्छा प्यारे जाफ़र, तुम सब कह चुके या कुछ और भी बचा है ?’’ ज़र्री बानो उसके नसीहतआमेज़ लहजे से चिढ़ गई। ‘‘अगर चंद मिनटों के लिए मेरा दुपट्टा सिर से सरक गया तो क्या आफ़त आ गई है। क्या तुमने कभी किसी के बाल नहीं देखे ?’’
‘‘अच्छा बाजी जान, मुझे आपसे यहां बहस नहीं करनी है। अब जल्दी घर चलिए। उसने आपको यहां नंगे सिर देख लिया है। यह हमारी इज़्ज़त के लिए अच्छी बात नहीं है।’’ जाफ़र अपनी बहन को जल्द-अज़-जल्द वहां से ले जाना चाहता था। उसने मुड़कर फिर अजनबी की तरफ़ देखा और हाथ हिलाया।

अजनबी ने उसकी तरफ़ सिर झुकाकर सलाम किया। उसके घने बालों की कुछ लपटें सूरज की रौशनी में चमकती हुई उसके माथे पर झूल गईं। उसकी मुस्कुराती ऩजर अब भी ज़र्री बानो पर जमी थी।
अजनबी को तेज़ नज़रों की चुभन से ज़र्री बानो मदहोश हो गई। अपने भाई को उसे पहचानते देखते उसे बहुत हैरत हुई थी। क्या यह वही है...? नहीं... वो नहीं हो सकता !’ उसके दिमाग़ में ख़्याल आया और उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। क्या वो ग़लत जगह, ग़लत वक़्त, ग़लत लोगों के सामने थी। उसने अजनबी पर एक भरपूर नज़र डाली और फिर अपने ड्राइवर को इशारा किया।

‘‘मैं घर जाने के लिए तैयार हूं। तुम गाड़ी इस तरफ़ ले आओ। इधर बहुत मर्द खड़े हैं।’’
जैसे ही उसकी मोटर आई, वो अजनबी की तरफ़ से पीठ मोड़े उसमें बैठ गई। लेकिन जिस वक़्त वो काली जीप के पास से गुज़री और उसने खिड़की से बाहर झांका तो फिर उसकी आंखें अजनबी की नज़रों से टकरा गईं। झेंपकर उसने जल्दी से अपना सिर अंदर कर लिया।
मोटर के साथ आए हुए जाफ़र ने अजनबी को अपने पीछे आने का इशारा किया और ख़ुद घोड़ा बढ़ाकर बाज़ार से गुज़रता हुआ टांडा आदम की तरफ़ रवाना हो गया, जहां उसकी हवेली थी। जीप में बैठे अधेड़ आदमी की नज़रें भी सफ़ेद घोड़े पर सवार जाफ़र पर पड़ीं, उसने अपने बेटे से कहा।

‘‘सिकंदर, अगर यह उसका भाई है तो हम अंदाज़ा लगा सकते है कि उसकी बहन भी बहुत ख़ूबसूरत होगी !’’
‘‘अब्बा, वो है बहुत ख़ूबसूरत !’’ सिकंदर ने उसका चेहरा याद करते हुए आहिस्ता से कहा।
‘‘क्या मतलब ! क्या तुमने उसे देखा है ?’’ राजादीन ने एक तेज़ नज़र उस पर डाली।

‘‘जी नहीं। मैं भी सिर्फ़ अंदाज़ा लगा रहा हूं।’’ सिकंदर ने आसानी से झूठ बोला।
‘‘लेकिन बेटे, यह मत भूलो कि उनकी दो बेटियां हैं और हमें सिर्फ़ बड़ी लड़की में दिलचस्पी है। अक्सर ऐसा होता है कि एक लड़की के लिए रिश्ता दिया जाता है और दूसरी गले पड़ जाती है। हमें ग़लत लड़की नहीं चाहिए।’’

सिकंदर ने ख़ामोशी से अपने बाप की तरफ़ देखा, उसकी मुस्कुराहट, ग़ायब हो गई। ‘‘जी हां।’’ उसने कहा। ‘वो बड़ी बहन थी या छोटी ?’ उसने दिल में सोचा। मगर थी बेइंतहा ख़ूबसूरत। लेकिन क्या उसे मालूम था कि मैं कौन हूं—उसका उम्मीदवार...?
‘उसको ही बड़ी बहन होना चाहिए। बहरहाल जो कुछ भी हो, मैं उसको हासिल करके ही रहूंगा।’ उसने दिल में फ़ैसला किया।

सामने वाली गाड़ी को धूल के ग़ुबार में ग़ायब होते देखकर सिकंदर दीन को अजीब सा अहसास हुआ, जैसे पिछले चंद मिनटों में वो काले शलवार-क़मीज़ में मलबूस हसीन लड़की हमेशा के लिए उसकी ज़िंदगी से जुड़ गई है। और उसकी तक़दीर बदल गई है।

[ १ ]


हवेली में ख़ूब गहमागहमी का आलम था। ज़र्री बानो सबको यह इत्तला देती हुई कि कराची वाले मेहमान आ गए हैं, अपने कमरे में ग़ायब हो गई। और जल्दी से अपना एक और ख़ुशनुमा जोड़ा निकालकर कपड़े बदलने लगी। यह जोड़ा हल्के गुलाबी रंग का था। उसकी छोटी बहन रूबी कमरे में दाख़िल हुई और मज़ाक़ से उसका सिर से पांव तक जायज़ा लेने लगी।

‘‘अरे आपने तो कपड़े भी बदल लिए, यानी आप वाक़ई नीचे जाकर मेहमानों का सामना करेंगी। मुझे यक़ीन नहीं आ रहा है।’’ उसने बनावटी ताज्जुब से पूछा। ‘‘आमतौर पर तो आप अपना रिश्ता चाहने वाले लड़कों या उनके वालदैन से मिलने की तकलीफ़ कभी गवारा नहीं करतीं। यह ज़रूर कोई ख़ास आदमी है कि मेरी मल्लिका बहन ने उसके लिए कपड़े बदलने की कोशिश की है।’’ रूबी ने अपनी बहन के सुडौल जिस्म पर एक तारीफ़ाना नज़र डाली।

‘‘ओफ़्फ़ो रूबी। मैं अभी जाफ़र के साथ मेले में गई थी और वहां गर्मी से पसीने से सराबोर हो गई लिहाज़ा मैंने कपड़े बदल लिए। उसका यह मतलब तो नहीं हुआ कि मैं ज़रूर नीचे जाकर उससे मिलूंगी। उसकी गुस्ताख़ी तो देखो कि उसने अपनी तस्वीर तक न भेजी और ख़ुद आ धमका।’’ ज़र्री बानो ने अपनी बहन को एक प्यार भरी डांट लगाई और फिर आईने में देखकर अपनी ज़ुल्फ़ें संवारने लगी। उसने सिर के पीछे जूड़ा बनाया और कुछ लटें अपने चेहरे के दोनों तरफ़ लटकती छोड़ दीं। उसको ग़ुस्सा इस बात का था कि उसने उसे मेले में देख लिया था और शायद पहचान भी लिया। वो अनजाने में पकड़ी गई थी।

‘‘हां, ताकि तुम उसको पहले जांच सकतीं !’ रूबी ने अपनी बहन के ख़्यालात भांपकर कहा।
‘‘नहीं।’’ ज़र्री बानो झूठ बोली। अब तो दोनों ही एक-दूसरे को देख चुके थे। उसकी सुलगती हुई नज़रों को याद करके ज़र्री बानो का चेहरा शर्म और गुस्से से गर्म हो गया। जब उसकी गाड़ी जीप के पास से गुज़री थी तो उसने फिर ज़र्री बानो को नज़र भरकर देखा था जैसे वो उसकी रूह की गहराई में उतरने की कोशिश कर रहा हो।

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