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शेर-ओ-सुखन - भाग 1

अयोध्याप्रसाद गोयलीय

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 1999
पृष्ठ :775
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7255
आईएसबीएन :81-263-0100-7

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प्रस्तुत है शेर-ओ-सुखन भाग-1...

Sher-O-Sukhan 1 - A Hindi Book - by Ayodhyaprasad Goyaliya

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

1. शेरोसुख़न के इस प्रथम भाग में प्रारम्भिक काल से अर्वाचीन युग (1900 ईं.) तक के केवल ग़ज़लगो शाइरों का परिचय दिया गया है। ग़ज़ल का अर्थ है–इश्क़िया शाइरी। इसलिए ग़ज़लों के अतिरिक्त जो महानुभाव इसमें–गीत, नज़्में, रुबाइयाँ, मर्सिये, क़सीदे, मसनवियाँ1 आदि खोजना चाहेंगे या दार्शनिक और नीति सम्बन्धी2 अशआर देखना चाहेंगे, अथवा राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक प्रश्नों पर विचार विनिमय चाहेंगे या किसी नेता आदि की प्रशस्ति खोजना चाहेंगे, तो वे धान के खेत में बाजरा ढूँढ़ेंगे।
 
2. पुस्तक में प्रायः उन्हीं ख्यातिप्राप्त शाइरों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें कि ऐतिहासिक महत्ता प्राप्त है। ऐसे बहुत-से शाइर छूट गये हैं, जो कहने को तो उस्ताद हुए हैं, मगर कलाम शागिर्दों से भी हलका है, अथवा जिनके न तो कलाम का नमूना मिलता है, न विशेष परिचय ही। और इससे अधिक समावेश की पुस्तक के आकार ने भी इजाज़त नहीं दी। अनुक्रमणिका में ऐसे बहुत-से शाइरों की तालिका दी गयी है, जिनका एक-एक दो-दो शेर भी दिया जाता तो पुस्तक का कलेवर दुगुना हो गया होता।

3. हमारा मुख्य लक्ष्य उत्तमोत्तम अशआर से हिन्दी भण्डार भरने का रहा है। अतः हमने शाइरों का सभी तरह का कलाम न देकर हज़ार-हा अशआर में-से गिनती के श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठ शेर देने का प्रयत्न किया है। इस चयन से शाइरों के समूचे कलाम का अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता। हमने सीपी-शंख न बटोरकर केवल मोती चुनने का प्रयत्न किया है।

4. उर्दू-शाइरी की गति विधि का परिचय देने के लिए तत्कालीन भाषा-सम्बन्धी तथा चारित्रिक उत्थान-पतन के बतौर नमूना कुछ शेर अपनी रुचि के विरुद्ध भी देने पड़े हैं, क्योंकि शाइरी के इतिहास में उनका उल्लेख लाज़िमी था।

5. शाइरों का परिचय अत्यन्त संक्षेप में यथावश्यक दिया गया है। उनके ख़ानगी झग़ड़ों, आचरणों और व्यर्थ की बातों से गुरेज़ किया गया है।

6. पुस्तक में वर्णित–मीर, दर्द, ज़ौक़, मोमिन, ग़ालिब, अमीर, दाग़ और हाली का परिचय शेरोशाइरी में दिया जा चुका था। फिर भी ऐतिहासिक क्रम को बनाये रखने के लिए इनका प्रस्तुत पुस्तक में उल्लेख अत्यन्त आवश्यक था। इनके बग़ैर इतिहास लँगड़ा-लूला रहता। अतः हमने इनका परिचय और कलाम शेरोशाइरी से सर्वथा भिन्न और नवीन दिया है। हाँ, तुलनात्मक विवेचन में, अथवा प्रसंगवश शेरोशाइरी में उल्लिखित कुछ शेर भी आ गये हैं, किन्तु उनकी संख्या 25-30 से अधिक नहीं होगी।

7. पं. दयाशंकर ‘नसीम’ के अतिरिक्त अन्य किसी हिन्दू शाइर का उल्लेख नहीं हुआ है, जब कि हिन्दुओं में भी हज़ार-हा शाइर हुए हैं। इसका कारण मुख्य तो यही है कि ग़ज़ल के लिए जैसी इश्क़िया-प्रकृति और वातावरण चाहिए, वह हिन्दुओं के लिए मुश्किल था। उनमें ज़्यादातर फ़ार्सी में लिखते रहे, कुछ गीता-रामायण आदि धार्मिक ग्रन्थों को उर्दू-पद्य का रूप देने में लगे रहे, कुछ दार्शनिक और आध्यात्मिक शाइरी करते रहे। कुछ ग़ज़ल के मैदान में उतरे भी तो योग्य उस्ताद के अभाव में, उचित प्रोत्साहन एवं पब्लिसिटी तथा अनुकूल वातावरण न मिलने के कारण कामयाब न हो सके। कुछ हुए भी तो उनके कविता-ग्रन्थ न छप सके अथवा साम्प्रदायिक मनोवृत्ति के इतिहासकारों और तज़करे नवीसों की पक्षपात नीति के कारण ऐतिहासिक महत्ता प्राप्त न कर सके। यही कारण है कि ग़ज़लगोई के मैदान में एक भी हिन्दू उस्ताद की हैसियत से मशहूर नहीं है, न उनके दीवान ही दस्तयाब हैं। हम चाहते तो 10-20 हिन्दू शाइरों का समावेश कर सकते थे, किन्तु इतिहास की परम्परा को ख़लत-मलत करना हमने उचित नहीं समझा। यदि सम्भव हो सका तो कुछ अच्छे हिन्दू शाइरों का परिचय किसी पृथक् पुस्तक में देने का प्रयत्न किया जाएगा।

8. अक्सर हर शाइर के अन्त में हमने तारीख़ दी है, ताकि लेखनकाल का पता लग सके। कई जगह-बहुत नज़दीकी तारीख़ें अंकित हैं। उतने वक़्फ़े में वह मजमून लिखा ही नहीं जा सकता। इसकी वजह यही है कि कई-कई मज़मून यथावश्यक और सुविधानुसार लिख गये, परन्तु किसी वजह से पूर्ण न हो सके और जब पूर्ण हुए तो लगातार होते चले गये और तभी मज़मून समाप्ति की तारीख़ डाल दी गईं। शाइरों का कलाम पढ़ा कभी गया, उद्धृत कभी किया गया और परिचय आदि सुविधानुसार कभी लिखा गया। कुछ स्थल सुविधानुसार आगे-पीछे लिखे गये हैं और उन्हें बाद में क्रमबद्ध कर दिया गया है।

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1. प्रसंगवश मसनवी के 2-1 शेर आ गये हैं।
2. इस तरह के अशआर भी मिलेंगे, मगर आटे में नमक के समान।

अहवाले वाक़ई


‘शेरोशाइरी’ प्रकाशित हुई तो एक उर्दू-अदीब ने फ़र्माया–‘‘इसमें कई अच्छे शुअरा रह गये हैं।’’ मैंने अर्ज़ किया–‘‘कई क्या, बहुत-से रह गये हैं, मगर मजबूरी का इलाज भी क्या1 ? फर्माइये आप किन-किन शुअरा को इसमें लाज़िमी समझते हैं, ताकि दूसरे ऐडीशन में घटाया-बढ़ाया जा सके ?’’ जवाब मिला–‘‘मीर के साथ सौदा तो जरूरी थे। मैंने कहा–‘‘उस दौर के सिर्फ़ दो शायर–मीर-ओ-दर्द–मैंने चुने हैं, फ़र्माइये आप इनमें-से किसको निकालकर सौदा को रखना चाहते हैं ?’’ बोले–‘‘इन दोनों को तो निकालना नामुमकिन है।’’ फिर बोले–‘‘इस्माइल मेरठी, नून-मीम राशिद, आरजू लखनवी भी लाज़िमी थे।’’ मैंने कहा–‘‘इनका स्थान ‘नवप्रभात’ ‘प्रगतिशील युग’ और ‘मधुरप्रवाह’ में है; आप फ़र्माएँ वहाँ से किन-किनको हटाकर इन्हें रक्खा जाय।’’ बोले–‘‘जो हैं वे तो सब लाज़िमी हैं, मगर यह भी ज़रूरी थे।’’ मैंने कहा–‘‘बन्दानवाज ! वह भी होते तो अच्छा था, यह भी होते तो मुनासिब था। फिर तो निश्चित 31 संख्या का बन्धन ही टूट जाता और पुस्तक भी इतनी बोझिल हो जाती कि हज़रते इन्सान के उठाये न उठती।’’ एक उर्दू-अख़बार ने भी इसी तरह की राय ज़ाहिर की थी।

इसी तरह एक ख्यातिप्राप्त विद्वान ने उलाहना दिया कि ‘‘आपने न तो अमुक-अमुक शाइरों का ज़िक्र किया और न महात्मा गाँधी पर नज़्में दीं।’’ मैंने पत्रोत्तर में लिखा–‘‘मैं इनको इस कोटि का शाइर ही नहीं समझता कि अपनी पुस्तक में उनका उल्लेख करता। रही महात्माजी सम्बन्धी नज़्में, सो मैंने पुस्तक में उर्दू-शाइरी का संक्षिप्त दिग्दर्शन कराया है, न कि नेताओं की प्रशस्ति प्रस्तुत की है।’’ किन्तु, मुझे इस उत्तर से सन्तोष न मिला। यूँ किस-किसका समाधान हो सकेगा। क्यों नहीं उर्दू-शाइरी का प्रारम्भ से वर्त्तमान तक का इतिहास प्रस्तुत कर दिया जाय। धीरे-धीरे यह विचार जड़ पकड़ता गया और उसकी रूप-रेखा मस्तिष्क में इस प्रकार आयी–

शेरोसुख़न भाग 1–प्रारम्भ से 1900 तक की ग़ज़ल का इतिहास।
शेरोसुख़न भाग 2–1901 से 1951 तक की ग़ज़ल का इतिहास।
शेरोसुख़न भाग 3–नज़्म और गीतों का संकलन और परिचय।
शेरोसुख़न भाग 4–उर्दू-शाइरों के बापू।
शेरोसुख़न भाग 5–उर्दू-शाइराएँ
शेरोसुख़न भाग 6–उस्तादों की इस्लाहें।

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1. इस मज़बूरी का स्पष्टीकरण ‘शेरोशाइरी’ में इस प्रकार कर दिया गया था–
‘‘शाइरों की निश्चित 31 संख्या का बंधन न होता और पुस्तक के आकार ने इजाजत दी होती तो और भी कई शाइरों का उल्लेख किया जा सकता था। 31 शाइरों में अमुक शाइर क्यों नहीं रक्खा गया, यह प्रश्न तो स्वाभाविक है, परन्तु वह किस अध्याय में, कौन से शाइर के स्थान पर रक्खा जाय, यह बताना कठिन होगा।’’

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