ओशो साहित्य >> संभोग से समाधि की ओर संभोग से समाधि की ओरओशो
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संभोग से समाधि की ओर...
जैसे ही पुरुष स्त्री के प्रति गहरे प्रेम से भरता है उसके हाथ उसके स्तन की
तरफ बढ़ते है-क्यों? स्तन से क्या संबध है सैक्स का?
स्तन से कोई संबंध नहीं है। स्तन से मां और बेटे का सबंध है। बचपन से वह
जानता रहा है। बेटे का संबंध स्तन से है। और जैसे ही पुरुष गहरे प्रेम से
भरता है, वह बेटा हो जाता है।
और स्त्री का हाथ कहौ पहुंच जाता है?
वह पुरुष के सिर पर पहुंच जाता है। उसके बालों में उंगलियां चली जाती हैं। वह
पुराने बेटे की याद है। वह पुराने बेटे का सिर है, जिसे उसने सहलाया है।
इसलिए अगर ठीक से प्रेम आध्यात्मिक तल तक विकसित हो जाए तो पति आखिर में बेटा
हो जाता है। और बेटा हो जाना चाहिए। तो आप समझिए कि हमने तीसरे तल पर सेक्स
का अनुभव किया। आध्यात्म के तल पर स्प्रिचुअलटी के तल पर। इस तल पर एक संबंध
है, जिसका हमे कोई पता भी नहीं! पति-पत्नी का सबंध उसकी तैयारी है, उसका अंत
नहीं है। वह यात्रा की शुरुआत है। पहुंचा नहीं है।
इसीलिए पति-पत्नी सदा कष्ट में रहते है, क्योंकि वह यात्रा है। यात्रा सदा
कष्ट में होती है। मंजिल पर शांति मिलती है। पति-पत्नी कभी शांत नहीं हो
सकते। वह बीच की यात्रा है। और अधिक लोग यात्रा में ही खत्म हो जाते हैं,
मुकाम पर कभी पहुंच ही नहीं पाते।
इसलिए पति-पत्नी के बीच एक इनर कानफ्लिक्ट चौबीस घंटे चलती है। चौबीस घंटे एक
कलह चलती है। जिसे हम प्रेम करते हैं, उसी के साथ चौबीस घंटे कलह चलती है!
लेकिन न पति समझता, न पत्नी समझती कि कलह का कारण क्या है! पति सोचता है कि
शायद दूसरी सी होती तो ठीक हो जाता। पत्नी सोचती है कि शायद दूसरा पुरुष होता
तो सब ठीक हो जाता। यह जोड़ा गलत हो गया है।
लेकिन मैं आपसे कहता हूं कि दुनिया भर के जोड़ो का यही अनुभव हैं। और आपको अगर
बदलने का मौका दे दिया जाए तो इतना ही फर्क पड़ेगा जैसे कि कूछ लोग अर्थी को
लेकर मरघट जाते हैं। कंधे पर रखकर अर्थी को। एक कैश दुखने लगता है तो उठाकर
दूसरे कंधे पर अर्थी रख लेते, है। थोड़ी दैर राहत मिलती है। कंधा बदल गया।
थोड़ी देर बाद पता चलता है कि बोझ उतना का उतना ही फिर शुरू हो गया है।
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