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संस्मरण >> अनंत नाम जिज्ञासा

अनंत नाम जिज्ञासा

अमृता प्रीतम

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7400
आईएसबीएन :81-7016-395-1

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अनंत नाम जिज्ञासा

Anant Naam Jigyasa - A Hindi Book by - Amrita Pritam

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

जाने किस-किस काल के स्मरण इंसान के अंतर में समाये होते हैं, और जब कुदरत उनको किसी रहस्य में ले जाती है, तो इस जन्म की जाति और मज़हब बीच में हायल नहीं होते...

इसी से मन में आया कि जो लोग अपनी आपबीती कभी नहीं लिखेंगे, उनके इतने बड़े अनुभव, उन्हीं की क़लम से लेकर सामने रख सकूँ...

ओशो याद आये, जो कहते हैं - "अगर आप लोग मुझसे कोई प्रश्न न पूछते, तो मैं खामोश रहता, मुझे किसी को कुछ भी कहना नहीं था, यह तो आप लोग पूछते हैं, तो इतना बोल जाता हूँ..."

ओशो ने जो इतना बड़ा ज्ञान दुनिया को दिया है, वह सब उनकी खामोशी में पड़ा रहता, अगर लोग उन्हें प्रश्न-उत्तर के धरातल पर न ले आते... यही धागा हाथ में आया, तो मैंने अपनी पहचान वालों के सामने कितने ही प्रश्न रख दिए। बातचीत की सूरत में लिखने के लिए नहीं, केवल उनकी खामोशी को तोड़ने के लिए। इसीलिए मैं यहाँ कई जगह अपने किसी प्रश्न को सामने नहीं रख रही, लेकिन जवाब में जो उन्होंने कहा, या लिखकर दिया, वही पेश कर रही हूँ।

अमृता

लेखक के बारे में

जन्म : 31 अगस्त, 1919, स्थान : गुजराँवाला (अब पाकिस्तान में)
बचपन और शिक्षा : लाहौर में
अब तक प्रकाशित पुस्तकें : 80 के लगभग(काव्य संग्रह, कहानी संग्रह, उपन्यास, निबन्ध-संग्रह और आत्मकथा) कुछ पुस्तकें संसार की 34 भाषाओं में अनूदित
साहित्य अकादेमी पुरस्कार : 1956 में
पद्मश्री उपाधि : 1969 में
दिल्ली विश्वविद्यालय से डी. लिट्. की उपाधि : 1973 में
वाप्तसारोव बुलगारिया पुरस्कार : 1979 में
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार : 1982 में
जबलपुर विश्वविद्यालय से डी. लिट्. की उपाधि : 1983 में
राज्यसभा में मनोनीत सांसद : 1986 में
पंजाब विश्वविद्यालय से डी. लिट्. की उपाधि : 1987 में
फ्रांस सरकार से उपाधि : 1987 में
एस. एन. डी. टी. विश्वविद्यालय, बंबई से डी. लिट्. की उपाधि : 1989 में
पंजाबी मासिक ‘नागमणि’ का संपादन : 1966 से
एक उपन्यास पर आधारित फिल्म : कादम्बरी
कुछ उपन्यासों पर आधारित टी. वी. सीरियल : ज़िंदगी
यात्रा : सोवियत संघ, बुलगारिया, युगोस्लाविया, चेकोस्लाविया, हंगरी, मॉरीशस, इंग्लैंड, फ्रांस, नार्वे और जर्मनी
स्मृति शेष : 31 अक्टूबर, 2005


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