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वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


मुझे एक अजीब सी सनसनी अनुभव हो रही थी। मेरी दिमाग कुछ भी सोचने के लिए तैयार नहीं था। मैं बस यही सोच रहा था कि कैसे मामी को शीशे में उतारा जाये। (कोई लड़की कैसे लड़के को शीशे में उतारती है, इसका भी अंदाजा लें।)

मैंने मामी की ओर देखते हुए आगे कुछ भी सोचे समझे बिना अपने पैंट की जिप खोली और अपने जाँघिया को नीचे दबाते हुए उत्तेजित हुए साँप की तरह तनते जा रहे कामांग को दिखलाया।
मामी ने मुश्किल से कुछ ही सेकेण्ड उसे देखा होगा कि बोली–इसे अंदर कर लो। मुझे लगा कि मामी नाराज होकर मना करने वाली है। लेकिन वह पलट कर वापस कमरे के दरवाजे से बाहर गई। एक बार बाहर झाँका और फिर!
उसने दरवाजे बंद करके कहा-लो देख लो, कैसी होती है। मैंने धीरे से साड़ी उठाई और पैन्टी उतारी और 'तसल्ली से झाड़ियों में छुपी गुलाब की पंखुड़ियों का मुआयना करने लगा।
इस पर वो बोली–ऐसे क्या देख रहे हो..?
मैं बोला–बड़ी ही सुन्दर है। क्या मैं उंगलियों से छू सकता हूँ?
वह बोली–अब तुम हद से आगे बढ़ रहे हो।
मैं बोला–आपकी तरह ही आपकी कामांग भी सुंदर है। क्या आपकी तरह कोमल भी है। बस यही देखना चाहता हूँ।

मामी कुछ क्षणों के लिए झिझकी, लेकिन फिर बोल उठी–ठीक है। छूकर देख लो। उसके तिकोन को मैंने अपनी उंगलियों और हथेली से छुआ तो वह खड़े-खड़े ही लहराने लगी। मुश्किल से तीन-चार मिनटों तक सहलाने के बाद मैंने देखा कि मामी की आँखे बंद थी और वह धीरे-धीरे थरथरा रही थी।

मैंने पहले भी कुछ लड़कियों के साथ मजे किये थे, लेकिन हमेशा सब-कुछ बहुत जल्दी-जल्दी में हुआ था। एक इतनी सुंदर लड़की को बड़े इत्मीनान से इस प्रकार छूने का मौका कभी नहीं मिला था। उसकी चिरन की त्वता इतनी कोमल थी कि मुझे अपने कामांग की त्वचा की कोमलता की याद आ गई। लेकिन अब मेरे कामांग पर न मेरा ध्यान था और न ही मामी का।

मेरा तो मन कर रहा कि उसे जी भर के चाट ही डालूँ...

मैंने मामी से कहा–क्या यहां मुँह लगा सकता हूँ?
मामी एकदम चौंक गई। बोली–तुम मुँह से क्या करोगे?
मैं बोला–पता नहीं। आपने क्या अभी थोड़ी देर पहले ही नहा करके कोई सुगंध लगाई है?
वह बोली–नहाया तो है पर सुगंध तो कोई नहीं लगाई।
मुझे इस समय उसके तिकोन से ऐसी सुगंध आ रही थी कि मैं उसके मजे में खो गया था।
मामी ने फिर पूछा–तुम मुँह लगा कर क्या करोगे?
मैं बोला–पता नहीं, पर यहाँ की कोमलता देखकर इसे चुभलाने का मन कर रहा है।

शायद मामी के साथ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। इसलिए उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह मुझे मुँह लगाने दे या नहीं।

उसके उहापोह को देखकर मैंने अपनी हथेली उसके कामांग पर एक बार फिर फिराई और इससे पहले वह या मैं दोनों इस बारे में आगे कुछ सोच पायें, जैसे नदी में हिम्मत करके डुबकी लगाई जाती है, उसी तरह मैंने अपने होठ उसके कामांग के ऊपर लगा दिये और फिर मेरी जीभ और होंठ दोनों ने मामी के महकते पर चिकने होते कामांग का एक बार ऊपर से नीचे तक मुआयना किया।

मेरा मुँह अधिक-से-अधिक पंद्रह-बीस बार ऊपर से नीचे गया होगा कि अचानक मामी ने बिलबिला कर मेरा मुँह अपने हाथों से पकड़ कर हटा दिया!

मुझे लगा कि अब सारा काम बिगड़ गया है।

पर हुआ उलटा ही, असल में अब बाँध टूट चुका था। वह दरिया में बहने के लिए उतावाली हो चुकी थी। उसने बिना पूछे ही पहले मेरी शर्ट उतारी, उसके बाद बनियान। फिर मुझे बिस्तर पर धक्का दे दिया जिससे मैं लेट गया। उसने बड़ी बेसब्री से मेरे पैंट की जिप खोल दी और पैंट समेत मेरा जाँघिया भी खींच कर उतार दिया। मेरे सारे कपड़े उतारने के बाद उसने उलटे मेरा ही काम लगा दिया। हुआ यों कि इससे पहले मैं कुछ समझ पाऊँ उसने दोनों हथेलियों के बीच मेरा कामांग कामांग थामा उसका सिरहाना अपने मुंह में लेकर मजे से चूसने लगी। पहली बार ऐसा चूसने और चुसवाने का मजा आया था। मेरा वीर्य भी उसके होंठों पर छूट गया।

शायद हम दोनों ने कोई नया ताला खोल लिया था।

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